तीन तलाक कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, याचिका दायर कर रद्द करने की मांग
नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा हाल ही तीन तलाक पर बने नए कानून को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट में केरल स्थित मुस्लिम संगठन केरल जामियतुल उलेमा ने जबकि दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील ने इस नए कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। सर्वोच्च अदालत में इस कानून के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। लिहाजा इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
समस्त केरल जामियतुल उलेमा और दिल्ली के वकील शाहिल अली ने बिल के खिलाफ याचिका दायर की है और उनका दावा है कि बिल संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है और इसे खारिज कर देना चाहिए। समस्त केरल जमीयतुल उलेमा' केरल में सुन्नी मुस्लिम स्कॉलर और मौलवियों का एक संगठन है। बता दें कि लोकसभा और राज्यसभा में कानून के पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी है और उसके अगले ही दिन इस नए बने कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई है।
संगठन की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि, कानून को दंडात्मक बनाया गया है, वह भी धार्मिक पहचान के आधार पर किसी खास वर्ग के लिए। अगर इसपर रोक नहीं लगाई गई तो यह समाज में सौहार्द खत्म करेगा और ध्रुवीकरण पैदा करेगा। धारा 4 के तहत 3 साल की सजा का प्रावधान है, जब मुस्लिम पति तीन तलाक बोलेगा। धारा 7 के तहत यह संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बताया गया है।
वहीं दिल्ली हाईकोर्ट में शाहिद अली द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह पति और पत्नी के बीच समझौता करने की सभी गुंजाइशों को खत्म कर देगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 31 जुलाई को तीन तलाक बिल को मंजूरी दे दी जिसके साथ ही तीन तलाक कानून अस्तित्व में आ गया है. यह कानून 19 सितंबर 2018 से लागू माना जाएगा. तीन तलाक बिल संसद के दोनों सदनों से पहले ही पास हो चुका है।
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