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एक नजर भारत में शिक्षा के बीई-कारखानों पर

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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इंजीनियरिंग और एमबीए करके नौकरी की तलाश करने वाले युवकों की कतारें लगातार लंबी होती जा रही हैं। शिक्षा के स्तर पर सवालिया निशान खड़ा हो रहा है। लेकिन ये कोर्सेज आज भी गरीब व्यक्ति के लिए ख्वाब ही हैं। पर, क्यों जब इन कोर्सेज को करने के बाद भी बेरोजगारी से ही जूझना है। जो हाल बेरोजगारी का है उससे साफ है कि देश के "बीई"-कारखानों में कुछ तो है, जो सही ढंग से नहीं चल रहा है। बी यानी बिजने और ई यानी इंजीनियरिंग।

'एजूकेशन या फिर व्यापार'

बीते दिनों व्यावसायिक संगठन एसोचैम की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कुछ प्रमुख बिजनेस स्कूलों को छोड़ कर बाकी संस्थानों से निकलने वाले एमबीए डिग्रीधारकों को नौकरी नहीं मिल रही है।

  • देश में लगभग साढ़े पांच हजार बिजनेस स्कूल हैं।
  • देश में महज सात फीसदी ही नौकरी के लायक हैं।
  • विभिन्न शहरों में 220 बिजनेस स्कूल बंद हो गए हैं।
  • 120 बिजनेस स्कूलों पर बंदी की तलवार लटक रही है।
  • नौकरी न मिलने की वजह से ज्यादातर युवक अवसाद में चले जाते हैं।
  • ये इंजीनियरिंग कैसी जिसमें नौकरी नहीं मिलती!

सिर्फ एमबीए नहीं बल्कि इंजीनियरिंग के मामले में भी यही स्थिति है। आंकड़ों की मानें तो हाल कुछ ऐसा है-

  • देश में हर साल 15 लाख इंजीनियर बनते हैं।
  • आधे से ज्यादा बीटेक/बीई करने वालों को नौकरी नहीं मिलती या फिर वे बेहद मामूली वेतन पर काम करते हैं।
  • डिग्री लेकर कॉलेज से निकलने वाले ज्यादातर युवकों के पास अपने पेशे से संबंधित मामूली ज्ञान भी नहीं होता।
  • बीटेक/बीई करने वालों को अच्छी नौकरी केवल 90 फीसदी अंक से ज्यादा आने पर ही मिलती है।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी और कुछ अन्य संस्थान इस मामले में अपवाद हैं।

शिक्षाविदों की राय में देश में कुकरमुत्ते की तरह उगते बिजनेस और इंजीनियरिंग कॉलेज इसकी प्रमुख वजह है। उनमें न तो आधारभूत सुविधाएं होती हैं और न ही कुशल शिक्षक। इससे वहां पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं होती। इसी वजह से इन पर निगरानी के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं होना इस स्थिति की सबसे बड़ी वजह है।

अंधे कुएं में आंख वाले भी कैसे डूब जाते हैं?

जानकारों का कहना है कि इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकारों को कड़े फैसले लेने होंगे। योग्यता के मानकों को तय करने के बाद प्रॉपर तरीके से स्टूडेंट्स का टेस्ट वगैरह करके उन्हें संबंधित कोर्स में दाखिला दिया जाए।

इसके इतर शिक्षा के स्तर को तय करना भी आवश्यक है। साथ ही नौकरी के लिए इंडस्ट्रीज आदि का चयन कर उनसे बातचीत करना जरूरी है। ध्यान रखना होगा कि जो कॉलेज महज पैसे के लालच में स्टूडेंट को दाखिला दे देते हैं उन पर सख्त कार्यवाही की जानी होगी। जिससे सुधार हो सकें।

'बढ़ता जा रहा कारोबार, नहीं मिल रहा रोजगार'

एक तरफ शिक्षा के लिए संस्थान बढ़ते जा रहे हैं और दूसरी तरफ इन प्रोफेशनल्स कोर्स को किए हुए लोगों की भीड़ में भी इजाफा होता जा रहा है। और कारोबार तो नई बुलंदियों को छू रहा है। चालू वित्त वर्ष के दौरान शिक्षा के कारोबार के 7.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है। बीते साल यह 6.4 लाख करोड़ था।

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की ओर से हुए अध्ययन के बाद जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी शैक्षणिक संस्थानों के साथ बढ़ते सहयोग की वजह से इस क्षेत्र को विकसित होने में और सहायता मिलेगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल विश्वविद्यालयों में से 29 फीसदी निजी क्षेत्र में हैं जबकि वर्ष 2008-09 में यह महज तीन फीसदी था।

तमाम पहलू हैं जिन पर सोचने की जरूरत है। क्योंकि उन तमाम बिंदुओं में मूलभूत सुधारों के बाद ही भविष्य को सुरक्षित और बेहतर किया जा सकता है। अन्यथा तेजी से कारोबार तो बढ़ता जाएगा लेकिन बेरोजगारी की कतारें इतनी गहरी हो जाएंगी कि भारत की बड़ी आबादी दूसरे देशों का रूख करेगी। और जो पैसों की किल्लत के चलते नहीं जा सकेंगे वे अवसाद की वजह से भारत के पढ़े लिखे मगर बेरोजगार देश के नमूनों में गिने जाएंगे।

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English summary
There is a huge industry of education in India and the people are running factory of B-Schools and Engineering Colleges.
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