Last Lunar Eclipse Now Completed : साल का अंतिम 'चंद्र ग्रहण' हुआ खत्म, जानिए कुछ खास बातें
Last Lunar Eclipse Now Completed : साल का अंतिम 'चंद्र ग्रहण' शाम 5 बजकर 22 मिनट पर खत्म हो गया है, ये भारतीय समयानुसार दोपहर 1 बजकर 04 मिनट पर लगा था और ये अपनी चरम स्थिति में दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर पहुंचा। ग्रहण काल 04 घंटे 21 मिनट का था, इसके बारे में नासा ने कहा था कि आज चांद धरती की बाहरी परछाई से होकर गुजरेगा और इसी वजह से यह 'पेनुमब्रल चंद्र ग्रहण' (Penumbral Lunar Eclipse) कहला रहा है।
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टाइमएंडडेट डॉट कॉम के अनुसार आज चांद तीन बार पेनुमब्रल चंद्र ग्रहण के रूप में नजर आया, ग्रहण के दौरान थोड़ी रोशनी कम हुई लेकिन इसके बाद ही सब कुछ सामान्य हो गया। नासा की वेबसाइट और timeanddate.com पर लोगों ने लाइव 'चंद्र ग्रहण' का आंनद उठाया। आज के मून को 'कोल्ड मून' या Beaver Moon कहा गया क्योंकि ये सर्दी के महीने नवंबर में दिखाई दिया।
आज के मून को दिए गए हैं बहुत सारे नाम
इसके अलावा बहुत सारे देशों में आज के चांद को फ्रॉस्ट मून (Frost Moon), विंटर मून (Winter Moon), ओक मून (Oak Moon), मून बिफोर यूले (Moon before Yule) और चाइल्ड मून (Child Moon) भी कहा गया है, लोग इस खगोलीय घटना के लिए बहुत ज्यादा उत्साहित थे। (ग्रहण को लाइव देखने के लिए यहां करें क्लिक)
क्या है 'उपच्छाया चंद्र ग्रहण'
जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आती है तो उसे 'चंद्र ग्रहण' कहते हैं, इस दौरान पृथ्वी की छाया से चंद्रमा पूरी तरह या आंशिक रूप से ढक जाता है और एक सीधी रेखा बन जाती है, इस स्थिति में पृथ्वी सूर्य की रोशनी को चंद्रमा तक नहीं पहुंचने देती है लेकिन 'उपछाया चंद्र ग्रहण' या 'पेनुमब्रल' के दौरान चंद्रमा का बिंब धुंधला हो जाता है और वो पूरी तरह से काला नहीं होता है इस वजह से चांद थोड़ा 'मलिन रूप' में दिखाई देता है। आपको बता दें कि चंद्र ग्रहण हमेशा 'पूर्णिमा' को लगता है और आज 'कार्तिक पूर्णिमा' है। इस बार ग्रहण वृषभ राशि और रोहिणी नक्षत्र में लगा इसलिए इस ग्रहण का खासा महत्व भी था।
धार्मिक कर्मकांडों की आवश्यकता नहीं
पंडित गजेंद्र शर्मा के मुताबिक मात्र उपच्छाया वाले चंद्र ग्रहण नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए हिंदू पंचांगों में भी ऐसे चंद्र ग्रहणों का वर्णन नहीं किया जाता है और ग्रहण से संबंधित कोई कर्मकांड भी नहीं किया जाता है। केवल प्रच्छाया वाले ग्रहण, जो कि नग्न आंखों से दिखाई देते हैं, धार्मिक कर्मकांडों के लिए मान्य किए जाते हैं। सभी परंपरागत पंचांग केवल प्रच्छाया वाले ग्रहण को ही सम्मिलित करते हैं। कार्तिकपूर्णिमा पर लगा ग्रहण भी मानक नहीं था इसलिए सूतक का पालन करने की भी आवश्यकता नहीं हुई।