क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भारत का आखिरी गांव जहां के लोगों ने 62 की जंग में चीन की चाल को किया था नाकाम

Google Oneindia News

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच इस वक्त तनाव चरम पर है। लद्दाख में दोनों देशों की सेना आमने-सामने बनी हुई है तो चीन अरुणाचल को लेकर भी उल्टी-सीधी बयानबाजी कर रहा है। ड्रैगन की ये हरकत कोई पहली बार नहीं है। अपने पड़ोसियों की जमीन पर कब्जा करने की उसकी पुरानी आदत रही है। यही वजह रही कि 1962 में दोनों देशों के बीच एक युद्ध भी हो चुका है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी युद्ध के दौरान जहां चीन ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था वहीं भारत का एक गांव ऐसा था जहां के लोगों ने चीन के भारी लालच और दबाव के बावजूद भारत में ही रहना मंजूर किया और चीन की चाल को नाकाम कर दिया।

देश की सीमा का आखिरी गांव

देश की सीमा का आखिरी गांव

ये गांव हैं उत्तराखंड के चमोली स्थित माणा। इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है। ये गांव उत्तराखंड स्थित प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम से तीन किमी आगे है। यह गांव समुद्रतल से 3118 मीटर (10133 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इसके कुछ दूर आगे बढ़ने पर चीन सीमा शुरू हो जाती है। ये चीन का वो इलाका है जो पहले तिब्बत हुआ करता था लेकिन चीन के कब्जे के बाद अब ये चीन हो गया है। तिब्बत में जाने के लिए तीन दर्रे हैं। नीती, माना और तुन झील ला। 1962 की जंग से पहले इसी क्षेत्र से भारत और तिब्बत के बीच व्यापार होता था लेकिन 1962 की जंग में इस गांव के लोगों के सामने विकट स्थिति आ गई।

फोटो क्रेडिट- uttarakhandtourism

दुर्गम क्षेत्र में होने के चलते गांव को भुला दिया गया

दुर्गम क्षेत्र में होने के चलते गांव को भुला दिया गया

आजादी के बाद से यह गांव भारत का हिस्सा था लेकिन दुर्गम क्षेत्र का होने के चलते इसे भुला दिया गया था। सुदूर क्षेत्र में स्थित होने के चलते सरकार इस गांव को भूल गई थी। इसी दौरान 1962 की जंग शुरू हो गई। युद्ध के दौरान चीन की तरफ से यहां के लोगों को चीन के साथ मिलने का लालच दिया जाने लगा। दरअसल यहां के निवासी भोटिया जनजाति के हैं, जिन्हें मंगोलों का वंशज माना जाता है। इन्हें चीनी समझा जाता था। प्रशासन इन गावों तक पहुंचा नहीं था और इन लोगों के पास भारतीय नागरिकता तक नहीं थी।

भारत की अपेक्षा चीन था करीब

भारत की अपेक्षा चीन था करीब

उत्तराखंड में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुके कर चुके नरेंद्र नेगी कहते हैं कि माणा के लोगों के लिए उस वक्त भारत ज्यादा दूर था जबकि चीन करीब था। इस क्षेत्र को जोड़ने के लिए कोई सम्पर्क मार्ग भी नहीं था। इस गांव के लोगों को पास के प्रमुख शहर जोशीमठ तक पहुंचने के लिए 50 किमी पैदल चलना पड़ता था। यहां के लोग भी चीनी भाषा बोलते थे। यही वजह है कि चीन की तरफ से बार-बार इस गांव के लोगों को चीन के साथ मिल जाने का लालच दिया जाने लगा था। लेकिन गांव के लोगों ने चीन के लालच को ठुकराकर भारत के साथ रहना मंजूर किया।

गांव के लोगों ने पेश की देशप्रेम की मिसाल

गांव के लोगों ने पेश की देशप्रेम की मिसाल

इस गांव के लोगों ने सारी मुश्किलों के बावजूद चीन के ऑफर को ठुकरा दिया और भारत का साथ दिया। युद्ध खत्म हुआ तो सरकार का ध्यान इस गांव की ओर गया। यहां के लोगों को नागरिकता दी गई। नरेंद्र नेगी बताते हैं कि इस गांव के लोग देशप्रेम की ऐसी मिसाल हैं जिनके बारे पूरे देश को जानना चाहिए। आज इसे सीमा के आखिरी गांव के नाम से जाना जाता है। बीआरओ ने गांव तक सड़क बना रखी है। यही नहीं इस गांव में अब पर्यटक भी बड़ी संख्या में आने लगे हैं।

लद्दाख की घटना के बीच चीन के नागरिकों की हो गई पाकिस्तानी-बांग्लादेशियों जैसी हैसियतलद्दाख की घटना के बीच चीन के नागरिकों की हो गई पाकिस्तानी-बांग्लादेशियों जैसी हैसियत

Comments
English summary
last indian village mana where people failed china's move in 1962
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X