कर्नाटक उपचुनाव में लैंड स्लाइड जीत बीजेपी को झारखंड में दिलाएगी मनोवैज्ञानिक बढ़त!
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में एनडीए सरकार वजूद में नहीं आने के बाद मीडिया और सोशल मीडिया में ऐसे मीम्स की बाढ़ आई, जिसमें यह बताया जाने लगा था कि बीजेपी के दिन अब पूरे हो गए हैं, लेकिन कर्नाटक विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने सोशल मीडिया की सारे कवायदों और विपक्ष पर मानों पानी फेर दिया है।
कर्नाटक में हुए 15 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बीजेपी ने कुल 12 सीटों पर जीत दर्ज करके कांग्रेस और जेडीस को बुरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया है। कांग्रेस को जहां 2 सीटों पर संतोष करना पड़ा और एक सीट निर्दलीय के खाते में गया जबकि जेडीएस एक भी सीट जीतने में नाकाम रही।
दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार की उठापटक के जिम्मेदार 15 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद उक्त 15 सीटों पर गत 5 दिसंबर को उपचुनाव कराए गए थे, जिन पर बीजेपी ने 15 में से 13 उन्हीं बागी विधायकों को उम्मीदवार बनाया था, जिन्होंने 14 माह पुरानी कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन सरकार को 4 महीने पहले विधानसभा में गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उपचुनाव के बाद कर्नाटक में चुने हुए विधायकों की संख्या अब 222 हो गई है और बीजेपी शासित कर्नाटक सरकार को बहुमत के लिए कम से कम 112 विधायकों की दरकार थी, लेकिन बीजेपी ने 12 सीटें जीतकर अब कर्नाटक में अब अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। बीजेपी के पास अब (105+12)117 विधायक हो चुके हैं। इनमें 1 निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं।
निःसंदेह कर्नाटक उपचुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत के हीरो मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा हैं, लेकिन बीजेपी की बड़ी जीत में कर्नाटक के शीर्ष कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का भी बड़ा रोल रहा है। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया किसी भी स्थिति में प्रदेश में दोबारा त्रिशंकु सरकार की स्थिति नहीं बनने देना चाहते थे।
क्योंकि सिद्धारमैया नहीं चाहते थे कि एक बार फिर जेडीएस नेता एचडी कुमारास्वामी फिर किंग मेकर की भूमिका में नजर आए, क्योंकि अगर ऐसा होता तो कांग्रेस फिर सरकार गठन के लालच में एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाने से नहीं हिचकती, जो सिद्धारमैया बिल्कुल नहीं चाहते थे।
हालांकि कर्नाटक उपचुनाव में बड़ी जीत से बीजेपी न केवल कर्नाटक में अपनी सरकार बचाने में कामयाब हुई बल्कि उसने पैन इंडिया में मजबूत बीजेपी का प्रदर्शन करने में सफल रही है। क्योंकि महाराष्ट्र की सत्ता से दूर हुई बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने सोशल मीडिया के माध्यम से खूब दुष्प्रचार फैलाने की कोशिश की थी।
लेकिन कर्नाटक उपचुनाव में बीजेपी की धमाकेदार जीत सभी ने सारे प्रपंचों को एक साथ उखाड़कर फेंक दिया है। इस जीत से बीजेपी न केवल अपनी मजबूती का प्रदर्शन किया है बल्कि अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज कराई हैं। इसका सकारात्मक असर बीजेपी कोझारखंड विधानसभा चुनाव के परिणामों पर मिलेगा, इससे नकारा नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस और एनसीपी ने परस्पर विरोधी शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार में शामिल हो गईं। महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर होने का तात्कालिक असर हुआ था कि 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में साथ चुनाव लड़ने वाली आजसू ने नखड़े दिखाने शुरू कर दिए।
क्योंकि आजसू ने पिछली बार की तुलना में अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की जिद में झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में बीजेपी गठबंधन से अलग हो गई है। एक सर्वे की मानें तो मुख्यमंत्री रघुबरदास के नेतृत्व में बीजेपी एक बार झारखंड में सरकार बना सकती है। सर्वे में बीजेपी झारखंड में अकेले 48 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है।
वैसे, माना यह भी जा रहा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों की तरह इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ सकते हैं। वर्ष 2019 में अब तक हुए दो विधानसभा चुनावों में कमोबेश यही हाल रहा है, जहां किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। हरियाणा और महाराष्ट्र मे पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जोरदार प्रदर्शन किया था।
हरियाणा में एक ओर जहां बीजेपी पहली बार अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही थी। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के पांच वर्ष के कार्यकाल को लेकर बीजेपी 2019 विधानसभा चुनाव में दांव खेला, लेकिन बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई थी और उसे नवोदित जेजेपी के साथ सरकार बनानी पड़ गई।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी महाराष्ट्र में पहली बार 122 के आंकड़े को छुआ था, लेकिन बहुमत से 23 सीट दूर थी इसलिए सरकार बनाने के लिए उसे शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार में शामिल होना पड़ा। शिवसेना पिछले विधानसभा चुनाव में अलग चुनाव लड़ी थी और 281 सीटों पर लड़कर महज 62 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी।
2019 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी महाराष्ट्र में 105 सीट जीतकर नंबर एक पार्टी रही, लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन होने के बावजूद शिवसेना के गच्चा दे दिया, जिससे बीजेपी सत्ता से बाहर होना पड़ा, क्योंकि शिवसेना ने बीजेपी के रोटेशनल मुख्यमंत्री की मांग रख दी, जिसे बीजेपी बुरी तरह से नकार दिया और शिवसेना परस्पर विरोधी पार्टी यानी कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना लिया।
उल्लेखनीय है 2019 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी लैंड स्लाइड जीत दर्ज करते हुए दोबारा केंद्र की सत्ता में पहुंची थी, लेकिन वर्ष 2019 में हुए दो विधानसभा चुनावों का ट्रेंड बीजेपी के अनुकूल नहीं रहा है। कर्नाटक उपचुनाव में मिली लैंड स्लाइड जीत झारखंड में बीजेपी को बहुमत तक पहुंचाने में मददगार हो सकती है।
महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 दिसंबर को आने वाले हैं। बीजेपी शीर्ष नेताओं की भाव-भंगिमाओं और झारखंड चुनाव कैंपेन में दिए गए बयानों पर नजर डाले तो लगता है कि झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे त्रिशंकु विधानसभा की ओर इशारा कर रहे हैं।
चूंकि अभी झारखंड में अभी महज दो फेज में हुए मतदान हुए हैं और तीन फेज का चुनाव होना बाकी है। इसलिए संभावना जताई जा रही है कि कर्नाटक उपचुनाव में जोरदार प्रदर्शन करने वाली बीजेपी को आंशिक फायदा झारखंड में मिल सकता है। अगर बीजेपी को 1-2 फीसदी भी वोट बढ़ता है तो झारखंड में बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हो सकती है।
झारखंड में आखिरी फेज का चुनाव 20 दिसंबर को होना है और 23 दिसंबर को वोटों की गिनती की जानी है। झारखंड में बीजेपी चुनावी कैंपेन में ऊहापोह की स्थिति तब शुरू हुई जब बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने झारखंड में एक चुनावी कैंपेन में पूर्व सहयोगी आजसू को बीजेपी को दोस्त बताया। इससे पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी आजसू को दोस्त
दरअसल, महाराष्ट्र और हरियाणा में त्रिशंकु जनादेश ने बीजेपी को निराश किया है। यही कारण है कि बीजेपी झारखंड में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में सहयोगी रही ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन से दोस्ती की पींगे बढ़ानी शुरु कर दी है।
बीजेपी आजसू को पिछले विधानसभा की तरह 8 सीट ऑफर किया था, लेकिन आजसू ने 12-15 सीटों की मांग रख दी थी, जिससे दोनों दलों के बीच चुनाव से पूर्व गठबंधन खटाई में पड़ गया, लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा के समीकरण से सबक लेते हुए बीजेपी अब आजसु से पुराने संबंध बहाल करने की जुगत में भिड़ गई है जबकि बीजेपी ने इस बार 65 पार का नारा दिया था।
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