एक आतंकी से अशोक चक्र विजेता तक, शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को मिलेगा मरणोपरांत सम्मान
नई दिल्ली। शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा। वानी को यह पुरस्कार मिलना हर युवा के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। नवंबर माह में जम्मू कश्मीर के शोपियां में हुई मुठभेड़ में वानी शहीद हो गए थे। अशोक चक्र सर्वोच्च सैन्य सम्मान है और वानी को इस सम्मान का ऐलान, उनके परिवार के लिए किसी गौरव से कम नहीं है। सेना का यह जवान कश्मीर के उस हिस्से से आता है जहां पर सबसे ज्यादा आतंकी वारदात होती हैं। इसके अलावा वानी पहले एक आतंकी थे लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदला और देश सेवा के लिए निकल पड़े। एक आतंकी से देश के लिए शहीद होने वाले वानी आने वाली कई पीढ़ियों को सेना में जाने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
वानी की शहादत को सलाम
अशोक चक्र शांति के समय सेना की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। राष्ट्रपति के सचिवालय की ओर से प्रेस रिलीज की गई है। इसमें कहा गया है, 'लांस नायक नजीर अहमद वानी ने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए दो आतंकियों को ढेर कर दिया और साथ ही उन्होंने अपने घायल साथियों को सुरक्षित बाहर निकाला और देश के लिए अपनी जान दे दी।' लांस नायक नजीर अहमद वानी, कुलगाम के गांव अश्मुजी के रहने वाले थे। अब उनकी बहादुरी ने इस गांव को नई पहचान दी है। शुरुआत में एक आतंकी रहे नजीर अहमद वानी को हिंसा निरर्थक लगने लगी थी और इसके बाद उन्होंने सेना में शामिल होने का फैसला किया।
परिवार को मिली नई पहचान
वानी इसके बाद काउंटर-इनसर्जेंसी ऑपरेशंस का हिस्सा बन गए। वानी का परिवार के हर सदस्य की आंखों में आंसू थे। सेना की मानें तो वानी ने देश और राज्य की शांति के लिए जो बलिदान दिया, उसने उनके परिवार को एक नया सम्मान दिलाया है, उसे कभी नहीं भूलाया जा सकता है।वह जब सेना का हिस्सा बने तो उन्होंने कई एनकाउंटर में अहम भूमिका अदा की। जब उनका शव तिरंगे में लिपटा हुआ उनके गांव पहुंचा था तो एक पल के लिए किसी को भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि वह अब उनके बीच नहीं हैं। वहीं तिरंगे में बेटे का शव देखकर पिता की आंखों से आंसू बहते जा रहे थे।
सेना मेडल से सम्मानित हो चुके थे वानी
जिस समय वानी का अंतिम संस्कार हो रहा था, उस समय वहां पर में 500 से 600 तक गांववाले मौजूद थे। इस शहीद को 21 बंदूकों की सलामी भी दी गई। वानी का गांव कोइनमूह जैसे इलाके से घिरा हुआ है, जो आतंकी गतिविधियों का गढ़ है। वानी साल 2004 में टेरिटोरियल आर्मी की 162वीं बटालियन के साथ जुड़े और उन्होंने सेना में अपना करियर शुरू किया। एक आर्मी ऑफिसर ने कहा, 'वानी असल में एक बहादुर थे और वह आतंक-विरोधी ऑपरेशन में बहुत उत्साह से हिस्सा लेते थे। उनके इसी उत्साह ने साल 2007 में उन्हें सेना मेडल भी दिलाया। पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया था।'
बहादुरी की मिसाल वानी
एक आर्मी ऑफिसर की मानें तो वानी बहादुरी की एक मिसाल थे क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ उन्होंने हमेशा अपना योगदान दिया, खासतौर पर साउथ कश्मीर में। उनकी बटालियन राष्ट्रीय राइफल्स के साथ अटैच थी। आर्मी ऑफिसर ने बताया कि 38 वर्षीय वानी के साथी उन्हें हमेशा बहादुरी और उनके जज्बे के लिए याद रखेंगे जिसकी वजह से उन्होंने कई ऑपरेशंस को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। वानी के घर में उनकी पत्नी और उनके दो बच्चे हैं जिनकी उम्र 20 वर्ष और 18 वर्ष है। नवंबर में साउथ कश्मीर के शोपियां के बटगुंड गांव में सुरक्षाबलों ने एनकाउंटर में हिजबुल मुजाहिद्दीन के छह आतंकियों को ढेर किया था। इस एनकाउंटर में वानी ने बहुत सक्रियता से अपनी जिम्मेदारी को पूरा किया था।