लाल बहादुर शास्त्री: 1965 में पाक से युद्ध के दौरान जिन्होंने छोड़ दिया था खाना, वेतन भी लेने से कर दिया था मना
लाल बहादुर शास्त्री: 1965 में पाक से युद्ध के दौरान जिन्होंने छोड़ दिया था खाना, वेतन भी लेने से कर दिया था मना
नई दिल्ली: Lal Bahadur Shastri Jayanti: जब भी हम भारत के सबसे साधारण लेकिन महान प्रधानमंत्री की बात करते हैं तो लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का नाम उसमें हमेशा सबसे ऊपर होगा। लाल बहादुर शास्त्री जितने साधारण व्यक्ति थे उतने ही कुशल नेतृत्व क्षमता और क्रांतिकारी व्यक्तित्व था उनका। लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी 2 अक्टूबर (2 October) को मनाई जाती है। यानी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और ल बहादुर शास्त्री का जन्म एक ही दिन हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर आइए आपको वो किस्सा बताते हैं जब 1965 में भारत- पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने खाना छोड़ दिया था और अपना वेतन भी लेने से मना कर दिया था।
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2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में जन्मे लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जिनका कार्यकाल (1964-66) तक था। इसी दौरान पाकिस्तान ने 1965 में युद्ध छेड़ दिया था। हालांकि पाकिस्तान को इस जंग में हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन 1962 और 1965 के इस जंग के बाद भारत में वित्तीय संकट गहरा गया था।
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान शास्त्री ने वेतन लेने से कर दिया था मना
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान इस वित्तीय संकट से देश को निकालने के लिए लाल बहादुर शास्त्री ने अपना प्रधानमंत्री का वेतन लेने से भी मना कर दिया था और खाना की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने उपवास रखना शुरू कर दिया था। शास्त्री हफ्ते में एक दिन का उपवास रखते थे। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि वह देशवासियों को भी ऐसा करने की प्रेरणा देना चाहते थे।
एक रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान शास्त्री जी की धोती थोड़ी सी फट गई थी, जिसे दोबारा खरीदने की बात चली तो शास्त्री ने नई धोती की जगह फटी धोती ही सिलने का आदेश दिया था।
जब शास्त्री की एक आवाजा पर लाखों भारतीयों ने छोड़ दिया था एक वक्त का खाना
लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री के हवाले से बीबीसी ने लिखा, ''1965 की जंग के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ भारत ने लड़ाई खत्म नहीं की तो हम भारत को पीएल 480 के तहत जो लाल गेहूं भेजते हैं, उसे देना बंद कर देंगे। उस वक्त भारत गेहूं के उत्पादन को लेकर निर्भर नहीं था। शास्त्री जी को ये बात काफी बुरी लगी थी...क्यों कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे।''
इसी के बाद शास्त्री जी ने देशवासियों से अपील की थी कि हम एक हफ्ते में एक वक्त का भोजन नहीं करेंगे, ऐसा करने से हमें अमेरिका से आने वाले गेहूं की आपूर्ति हो जाएगी।
अनिल शास्त्री के मुताबिक, ''देशवासियों से अपील करने से पहले उन्होंने मेरी मां ललिता शास्त्री (यानी शास्त्री जी की पत्नी) से कहा कि क्या आप ऐसा कर सकती हैं कि आज शाम हमारे यहां खाना न बने। मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना न खाने की अपील करने जा रहा हूं। इसलिए मैं ये देखना चाहता हूं कि क्या मेरा बच्चा और परिवार भूखे रह सकता है या नहीं।''
अनिल शास्त्री के मुताबिक, जब उन्होंने (शास्त्री) जी ने देख लिया कि हम लोग एक वक्त का बिना खाना खाए रह सकते हैं तो उन्होंने देशवासियों से एक हफ्ते में एक वक्त का खाना छोड़ने की अपील की थ।
कहा जाता है कि उस वक्त लाखों भारतीय ने लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की इस अपील का मान रखा और अपना एक वक्त का खाना हर हफ्ते छोड़ने के लिए तैयार हो गए थे।
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