जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बनते ही लद्दाख को मिल सकता है ये विशेषाधिकार
नई दिल्ली- आर्टिकल-370 खत्म होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर को मिलने वाले सारे विशेषाधिकार खत्म हो चुके हैं। लेकिन, लगता है कि नए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को जल्द ही अलग तरह का विशेषाधिकार मिल सकता है। दरअसल, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने लद्दाख के लोगों की मांग पर क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची के तहत 'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने की सिफारिश की है। एनसीएसटी को लगता है कि लद्दाख के लिए इस विशेष व्यवस्था से वहां की जनता को अपनी सांस्कृतिक पहचान और अपनी जमीन पर अधिकार सुनिश्चित रखने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि लद्दाख के बीजेपी सांसद पहले ही यह मांग जोरदार तरीके से उठा चुके हैं।
लद्दाख को विशेषाधिकार की सिफारिश
जानकारी के मुताबिक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के अध्यक्ष, नंद कुमार साय ने गृहमंत्री अमित शाह और जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को लद्दाख को 'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने संबंधी आयोग की सिफारिश से अवगत करा दिया है। टीओआई के मुताबिक उन्होंने दोनों मंत्रियों से कहा है कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत प्रदेश को 'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने से वहां के लोगों को 'सत्ता के लोकतांत्रिक हस्तांतरण में मदद मिलेगी; क्षेत्र की विशेष संस्कृति को सुरक्षित और सुदृढ़ करने, कृषि समेत जमीन संबंधी अधिकार को बचाने और लद्दाख क्षेत्र के तेजी से विकास के लिए तेजी से फंड भेजने में भी मदद मिलेगी।'
'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने की मांग के पीछे वजह
एनसीएसटी ने अपनी सिफारिश में तर्क दिया है कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन से पहले लद्दाख के लोगों को कुछ कृषि और जमीन संबंधी विशेष अधिकार प्राप्त थे। यहां देश के दूसरे इलाकों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे और न ही उसे अधिग्रहित किया जा सकता था। इसी तरह लद्दाख के कुछ विशेष समुदायों की खास संस्कृति है, जिसके संरक्षण और संवर्धन की बहुत ज्यादा आवश्यकता है। इनमें द्रोपका, बाल्टी और चंगपा जैसे समुदाय शामिल हैं।
लद्दाख में जनजातीय समुदाय की आबादी
भारतीय संविधान के मुताबिक लद्दाख में जनजातीयों की आबादी 79% अनुमानित है। इसके अलावा काफी संख्या में समुदाय पुराने जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत भी अधिसूचित हैं, जिन्हें अब संघ की अनुसूचित जनजाति की अनुसूची में लाने की आवश्यकता है। कुछ सुन्नी मुस्लिम समुदायों समेत और समुदाय भी हैं, जो आधिकारिक सूची में अनुसूचित जनजाति नहीं हैं, लेकिन वह यह दर्जा पाने का दावा पहले से करते आए हैं। एनसीएसटी के मुताबिक अगर इन सबको शामिल किया गया तो प्रदेश में जनजातीयों की जनसंख्या 97% को भी पार कर सकती है।
अब सरकार को क्या करना होगा
संविधान की छठी अनुसूचि में स्वायत्त जिले और रीजनल काउंसिल गठित करने के बाद उस जनजातीय क्षेत्र में विशेष प्रशासनिक व्यवस्था किए जाने का प्रावधान है, जिसपर केंद्रीय गृहमंत्रालय की ओर से विशेष ध्यान दिया जाता है। लद्दाख को 'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने की एनसीएसटी की सिफारिश से इलाके के लोगों की वर्षों पुरानी मांग को मजबूती मिली है। हालांकि, इसपर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को ही करना है। किसी भी इलाके को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए सरकार को पहले इसे कैबिनेट से पास कराना होगा, फिर संसद से उस अनुसूची में संशोधन कराना होगा। अगर लद्दाख के लिए केंद्र सरकार ने ये फैसला कर लिया तो असम के कुछ क्षेत्र, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम की 'जनजातीय क्षेत्र' की लिस्ट में लद्दाख भी शामिल हो जाएगा।
लद्दाख के चर्चित सांसद ने भी उठाई थी मांग
गौरतलब है कि पिछले महीने जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेश में विभाजित करने का फैसला किया था, तभी लद्दाख के लोकप्रिय बीजेपी सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल ने अपने क्षेत्र को 'जनजातीय क्षेत्र' घोषित करने की मांग की थी। उन्होंने भी कहा था कि 'हम चाहते हैं कि हमारे इलाके की संस्कृति और सामाजिक पहचान सुरक्षित रहे। हमारा समाज बहुत छोटा है, लेकिन बहुत ही अलग पहचान है, और हमें डर है कि अगर इसे सुरक्षित नहीं रखा गया तो जब यह ज्याद खुलेगा तो वह नष्ट हो सकती है।' उन्होंने भी दावा किया था कि लद्दाख हमेशा से ही जनजातीय बहुल क्षेत्र है और उसकी 98 फीसदी आदिवासी जनजातीय है।
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