कुंभ: 4200 करोड़ के बजट को तर्कसंगत ठहराने के लिए संख्या बढ़ाकर बताई जा रही है?
वो बताते हैं, "1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने संगम आने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर गिनती की थी. इसके अलावा रेलवे टिकट की बिक्री के आंकड़ों को भी आधार बनाकर कुल स्नान करने वालों की संख्या का आकलन किया गया था."
"1882 में 1 जनवरी से 19 जनवरी तक देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के लिए एक लाख पचीस हज़ार के क़रीब टिकट बेचे गए थे
प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में दो मुख्य स्नान हो चुके हैं और प्रशासन का दावा है कि इन दोनों स्नान पर्वों पर अलग-अलग दिन तीन करोड़ से ज़्यादा लोग संगम में डुबकी लगा चुके हैं.
लेकिन मेला क्षेत्र और प्रयागराज शहर में भीड़ की स्थिति, स्टेशनों पर भीड़ का दबाव और सड़कों पर छाए सन्नाटे को देखते हुए इन आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं.
कुंभ के पहले शाही स्नान यानी मकर संक्रांति के दिन शाम को मेला अधिकारियों की प्रेसवार्ता में स्नान करने आए श्रद्धालुओं की संख्या का जब ज़िक्र हुआ तो प्रेस कांफ्रेंस का माहौल कुछ ऐसा हो गया कि हँसी-ठहाके लगने लगे.
पत्रकारों ने व्यंग्यात्मक लहजे में सवाल किया कि "अब आंकड़ों को अंतिम माना जाए या अभी और गुंज़ाइश है बढ़ने की."
पत्रकारों के सवालों में व्यंग्य ज़रूर था लेकिन आंकड़े जारी कर रहे अधिकारियों में बेचैनी के बावजूद आत्मविश्वास बना था. उस दिन यानी मकर संक्रांति को अनुमान था कि एक करोड़ की भीड़ आएगी.
प्रशासन ने पहले इसे एक करोड़ चौरासी लाख बताया और देर शाम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संख्या को दो करोड़ के ऊपर पहुंचा दिया. वहीं 21 जनवरी को पूर्णिमा के दिन भी आंकड़े एक करोड़ से ज़्यादा बताए गए.
लेकिन सवाल उठता है कि प्रशासन ने ये आंकड़े जुटाए कैसे.
संख्या का आकलन कैसे होता है?
मेला अधिकारी दिलीप कुमार बताते हैं, "हमारे यहां विभिन्न घाटों पर हर घंटे जो लोग स्नान करते हैं उसके आधार पर आकलन किया जाता है. इसमें फ़ोटोग्राफ़ी और वीडियोग्राफ़ी की मदद भी ली जाती है."
वो कहते हैं. "साथ ही रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों, निजी वाहनों, इत्यादि से आने वालों का भी पता लगाया जाता है. लेकिन ये सब अनुमान ही होता है, अभी कोई डिजिटल मैपिंग जैसा सिस्टम नहीं है जिससे कि इस तरह का आंकड़ा बताया जाए."
प्रयागराज में इस बार हो रहे अर्धकुंभ को सरकार ने कुंभ का नाम दे दिया और इसे भव्यता देते हुए दिव्य कुंभ के रूप में जमकर प्रचारित किया.
कुंभ के लिए 4200 करोड़ रुपये का बड़ा बजट आवंटित किया गया और कुंभ में व्यवस्था को भी हर स्तर पर बेहतरीन बनाने की कोशिश की गई. पहली बार ऐसा हुआ कि राज्य के वरिष्ठ मंत्री देश भर में कुंभ का निमंत्रण पत्र लेकर लोगों के बीच गए हैं.
क्या वाक़ई आए करोड़ों लोग?
सरकार को उम्मीद थी कि बड़ी संख्या में लोग आएंगे लेकिन स्थिति ये है कि मेले में आए श्रद्धालुओं की प्रशासन द्वारा बताई गई संख्या पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है.
प्रयागराज में वरिष्ठ पत्रकार अचिंत्य मिश्र वर्षों से कुंभ मेला कवर कर रहे हैं. उनका कहना है कि दावे चाहे जो हों लेकिन भीड़ की गणना का कोई भी वैज्ञानिक तरीक़ा नहीं अपनाया गया है.
अचिंत्य मिश्र कहते हैं, "प्रशासन जो भी आंकड़ा दे रहा है वो सिर्फ़ अनुमान है और अनुमान भी फ़र्जी हैं. इनके पास न तो इतने घाट हैं जहां पर इतने लोग स्नान कर सकें. सड़कें शहर की पूरी की पूरी ख़ाली हैं, बसें ख़ाली आ रही हैं, ट्रेनें ख़ाली आ रही हैं और भीड़ इनकी बढ़ती जा रही है."
"पूर्णिमा को इनका अनुमान पचपन लाख का था और नहाने वालों की संख्या बता दी गई एक करोड़ से ऊपर. दरअसल, संख्या बड़ी दिखाकर ये लोग सिर्फ़ बजट को तर्कसंगत ठहराना चाहते हैं और कुछ नहीं."
हालांकि मेला से जुड़े अधिकारी भीड़ से उत्साहित हैं और उन्हें उम्मीद है कि ये आगे और बढ़ेगी.
राज्य के सूचना और जनसंपर्क निदेशक शिशिर सिंह कहते हैं कि पूर्णिमा के दिन प्रशासन ने तो सिर्फ़ एक करोड़ सात लाख की ही भीड़ बताया, आम लोग कह रहे थे कि ये उससे भी ज़्यादा थी. शिशिर सिंह कहते हैं, "आमावास्या यानी चार मार्च को तो ये आंकड़ा चार-पांच करोड़ की संख्या को पार कर जाएगा."
जानकारों के मुताबिक़ पिछले कुंभ में पहली बार सांख्यिकीय विधि से भीड़ का अनुमान लगाया गया था और उसके मुताबिक़ यदि सभी 35 घाटों पर लगातार 18 घंटे स्नान कर रहे लोगों की संख्या जोड़ी जाए तो ये प्रशासन के दावे से क़रीब एक तिहाई भी बहुत मुश्किल से बैठती है.
इस विधि के अनुसार, एक व्यक्ति को स्नान करने के लिए क़रीब 0.25 मीटर की जगह चाहिए और उसे नहाने में लगभग 15 मिनट का समय लगेगा. इस गणना के मुताबिक़ एक घंटे में अधिकतम 12 हज़ार 500 लोग स्नान कर सकते हैं.
कम है लोगों का हुजूम
भीड़ की गणना के लिए मेले में आने वाले यात्रियों के रास्तों, साधनों और अन्य चीज़ों को भी आधार बनाया जाता है.
पत्रकार अचिंत्य मिश्र कहते हैं कि भीड़ के सरकारी दावों पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं, "इसी सांख्यिकीय गणना के आधार पर पिछले कुंभ में भी कुछ विशेषज्ञों ने सवाल उठाया था कि जब इतनी जगह ही नहीं है और संसाधन ही नहीं हैं तो लोग नहा कैसे रहे हैं."
"इस आपत्ति के कारण ही प्रशासन ने कुंभ का क्षेत्र और घाटों की संख्या बढ़ा दी. कोई भीड़ नहीं है और सारे लोग आकर संगम पर ही नहा रहे हैं."
प्रयाराज के ही रहने वाले एक श्रद्धालु ने हमें बताया कि कुंभ में मकर संक्रांति जैसे महत्वपूर्ण पर्व के बराबर तो हर साल लगने वाले माघ मेले में भीड़ दिख जाती है. उन्होंने ये आरोप भी लगाया कि भीड़ न होने के बावजूद पर्व के दिन लोगों को अनावश्यक कई किलोमीटर पैदल चलने पर विवश किया गया.
जानकारों के मुताबिक़, यदि सभी स्पेशल ट्रेनों, स्पेशल बसों और आम दिनों में चलने वाले वाहनों से आए लोगों की संख्या भी जोड़ दी जाए तो दो करोड़ का आंकड़ा संभव नहीं दिखता.
प्रयागराज के वयोवृद्ध पत्रकार नरेश मिश्र बताते हैं कि कुंभ में आने वाले यात्रियों की गणना का काम 19वीं सदी से ही शुरू हुआ था और अलग-अलग समय पर विभिन्न तरीक़े अपनाए गए.
वो बताते हैं, "1882 के कुंभ में अंग्रेजों ने संगम आने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरियर लगाकर गिनती की थी. इसके अलावा रेलवे टिकट की बिक्री के आंकड़ों को भी आधार बनाकर कुल स्नान करने वालों की संख्या का आकलन किया गया था."
"1882 में 1 जनवरी से 19 जनवरी तक देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के लिए एक लाख पचीस हज़ार के क़रीब टिकट बेचे गए थे और इन सबके आधार पर माना गया था कि उस साल क़रीब दस लाख लोग मेले में पहुंचे थे."
बहरहाल जानकारों का कहना है कि भीड़ की संख्या का अनुमान ही लगाया जा सकता है, यथार्थ गणना तो असंभव ही है लेकिन इनका यह भी कहना है कि अनुमान तो यथार्थ के क़रीब होने ही चाहिए अन्यथा वो अनुमान की तरह ही रहेंगे, यथार्थ में तब्दील नहीं हो पाएंगे.