कुंभ मेला 2019 इलाहाबाद: शरीर पर राख, अस्त्र-शस्त्र और डुबकी से शुरू हुआ कुंभ
लेकिन पहले शाही स्नान तक कुंभ क्षेत्र के विभिन्न सेक्टरों में शौचालयों की स्थिति ठीक नहीं है. कहीं इन शौचालयों के सिर्फ़ ढांचे खड़े हैं तो कहीं कनेक्शन का काम पूरा नहीं हुआ है.
भारत में कुल चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक.
इनमें से हर स्थान पर बारहवें वें साल कुंभ होता है. प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल पर अर्धकुंभ भी होता है.
दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन कहे जाने वाले कुंभ मेले का मंगलवार को पहला शाही स्नान है और आधिकारिक रूप से इसी दिन से मेले की शुरुआत हो जाती है.
49 दिन तक चलने वाले इस मेले का समापन चार मार्च को होगा और इस बीच आठ मुख्य पर्वों पर शाही स्नान होगा.
शाही स्नान को देखते हुए प्रयागराज ज़िले के सभी स्कूल-कॉलेज तीन दिन के लिए बंद कर दिए गए हैं.
शहर की ओर आने वाले सभी रास्तों पर बैरिकेडिंग की गई है और वाहनों को शहर के बाहर बने पार्किंग स्थलों पर ही रोक दिया जा रहा है.
इन पार्किंग स्थलों से मेला क्षेत्र तक आने के लिए शटल बसें और ई-रिक्शा चलाए गए हैं.
12 करोड़ लोग आ सकते हैं कुंभ
माना जा रहा है कि 49 दिनों तक चलने वाले इस बार के कुंभ मेले में क़रीब 12 करोड़ लोगों के आने की संभावना है जिसमें 10 लाख के क़रीब विदेशी नागरिक भी होंगे.
उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ 2019 को अब तक का सबसे भव्य कुंभ बता रही है और सरकार ने इसकी ख़ूब ब्रांडिंग भी की है.
माना जाता है कि प्रयागराज में जहां पर कुंभ मेले का आयोजन होता है वहीं ब्रह्माण्ड का उद्गम हुआ था और वहीं पर पृथ्वी का केंद्र भी है. मान्यता ये भी है कि सृष्टि निर्माण से पहले ब्रह्माजी ने इसी स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ किया था.
कुंभ के ज़िलाधिकारी विजय किरण आनंद के मुताबिक़, इस बार मेला क्षेत्र क़रीब 45 वर्ग किमी के दायरे में फैला है, जबकि इससे पहले यह सिर्फ़ 20 वर्ग किमी इलाक़े में ही होता था.
क्षेत्र को फैला देने का लाभ ये हुआ है कि संगम क्षेत्र में भीड़ का दबाव बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ पाएगा और स्नान घाटों के विकल्प बढ़ जाएंगे.
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तंबुओं का अस्थायी शहर
कुंभ के दौरान प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा तंबुओं का अस्थायी शहर बस जाता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, कुंभ के आयोजन पर इस साल चार हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा ख़र्च हो रहा है.
साधु संतों के कुल 13 अखाड़ों के लिए हर पर्व पर शाही स्नान का समय और स्नान की अवधि प्रशासन की ओर से तय की जाती है.
मेला अधिकारी विजय किरण आनंद के मुताबिक़, "15 जनवरी को पहले शाही स्नान की शुरुआत सुबह 5 बजकर 15 मिनट से हुई है और हर अखाड़े को स्नान के लिए 45 मिनट का समय दिया गया है. स्नान शाम को चार बजे तक चलेगा."
शाही स्नान में विभिन्न अखाड़ों से संबंध रखने वाले साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी-घोड़े पर बैठकर संगम में स्नान के लिए पहुंचते हैं.
ये साधु-संत अपनी-अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं जिसके ज़रिए शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का संदेश देते हैं.
कुंभ मेले पर पुस्तक लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार रतिभान त्रिपाठी कहते हैं, "शाही स्नान को राजयोग स्नान भी कहा जाता है, जिसमें साधु-संत और उनके अनुयायी संगम या फिर अन्य किसी पवित्र नदी में तय समय पर डुबकी लगाते हैं. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में डुबकी लगाने से अमरता का वरदान मिल जाता है. कुंभ के दौरान शाही स्नान के बाद ही आम लोगों को संगम में डुबकी लगाने की इजाज़त होती है."
शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु-संत अपने हाथों में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लिए होते हैं, शरीर पर राख लिपटी रहती है और वे जयकारा भी लगाते रहते हैं.
कुंभ मेला: 12 करोड़ लोगों के लिए आयोजन कैसे
आज डुबकी लगाएंगे एक करोड़ लोग
कुंभ मेला अधिकारी विजय किरण आनंद ने बताया कि पहले शाही स्नान पर एक करोड़ लोगों के पहुंचने की उम्मीद है जबकि पूरे कुंभ के दौरान क़रीब 12 करोड़ लोगों के आने की संभावना जताई जा रही है.
यात्रियों की भारी संख्या को देखते हुए रेलवे ने विशेष ट्रेनें चलाई हैं और रोडवेज ने मेला स्पेशल बसें बड़ी संख्या में चला रखी हैं.
प्रशासन ने सुरक्षा के भी कड़े इंतज़ाम किए हैं.
राज्य के डीजीपी ओपी सिंह के मुताबिक़, "सुरक्षा के लिए एअर सर्विलांस और हवाई स्नाइपर्स की मदद ली जा रही है. 22 हज़ार पुलिसकर्मियों के अलावा अर्धसैनिक बलों की 80 बटालियन भी तैनात की गई हैं."
प्रशासन का दावा है कि पूरा मेला क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त है और इसे सुनिश्चित कराने के लिए सवा लाख से भी ज़्यादा शौचालय बनाए गए हैं.
लेकिन पहले शाही स्नान तक कुंभ क्षेत्र के विभिन्न सेक्टरों में शौचालयों की स्थिति ठीक नहीं है. कहीं इन शौचालयों के सिर्फ़ ढांचे खड़े हैं तो कहीं कनेक्शन का काम पूरा नहीं हुआ है.
भारत में कुल चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक.
इनमें से हर स्थान पर बारहवें वें साल कुंभ होता है. प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल पर अर्धकुंभ भी होता है.
परंपरा के अनुसार इस बार अर्धकुंभ ही पड़ रहा है लेकिन सरकार ने अर्धकुंभ का नाम बदलकर कुंभ और कुंभ का नाम महाकुंभ कर दिया है.
सरकार के इस क़दम का तमाम शास्त्रीय विशेषज्ञों ने भी विरोध भी किया है.