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BLACK BOX: विमान हादसे के बाद सबसे पहले क्यों खोजा जाता है ब्लैक बॉक्स?

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कोझीकोड। साल 2020 में कोरोना वायरस महामारी से जूझते देश को शुक्रवार को एक दर्दनाक खबर सुनने को मिली। दुबई से कोझीकोड आ रही एयर इंडिया एक्‍सप्रेस की फ्लाइट जब दुबई से केरल आ रही फ्लाइट AXB1344, B737 लैंडिंग के समय क्रैश हो गई। जिस समय हादसा हुआ उस समय प्‍लेन में 190 यात्री और छह क्रू मेंबर्स थे। अब तक 18 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। एयर क्राफ्ट एक्‍सीडेंट इनवेस्टिगेशन ब्‍यूरो (एएआईबी) को फ्लाइट का ब्‍लैक बॉक्‍स भी मिल चुका है। अब यह पता लगाया जा सकेगा कि आखिर क्रैश से पहले क्‍या हुआ था। एएआईबी, सिविल एविएशन मिनिस्‍ट्री के तहत आती है।

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क्‍या होता है ब्‍लैक बॉक्‍स

क्‍या होता है ब्‍लैक बॉक्‍स

ब्‍लैक बॉक्‍स वह इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग डिवाइस होती है जिसे प्‍लेन में इंस्‍टॉल किया जाता है। इसे फिट करने का मकसद ही यह होता है कि किसी दुर्घटना के बाद जांच में सुविधा हो और क्रैश या दुर्घटना के कारणों का पता लग सके। आपको यह जानकर हैरानी होगी ब्‍लैक बॉक्‍स, इस शब्‍द का प्रयोग कभी भी फ्लाइट सेफ्टी इंडस्‍ट्री में नहीं किया जाता है। आधिकारिक तौर पर एविएशन इंडस्‍ट्री फ्लाइट रिकॉर्डर (FDR)शब्‍द का ही प्रयोग करती है। ब्‍लैक बॉक्‍स के लिए काले रंग की मंजूरी नहीं है और यह सिर्फ नारंगी रंग का ही हो सकता है। यह रंग इसलिए तय किया गया है ताकि क्रैश के बाद इसे आसानी से रिकवर किया जा सके। इसे ब्‍लैक बॉक्‍स इसके काम करने के तरीकों की वजह से दिया गया है।

ब्‍लैक बॉक्‍स में होते हैं दो हिस्‍से

ब्‍लैक बॉक्‍स में होते हैं दो हिस्‍से

ब्‍लैक बॉक्‍स में दो अहम हिस्‍से होते हैं- फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (एफडीआर) और कॉकपिट व्‍यॉइस रिकॉर्डर (सीवीआर)। एफडीआर में फ्लाइट का सारा डाटा होता है जैसे कि ट्रैजेक्‍टरी यानी प्‍लेन किस तरह से मुड़ रहा था, किस तरह वह नीचे आ रहा था, उसकी स्‍पीड कितनी थी, फ्यूल कितना था, ऊंचाई कितनी थी, इंजन पर कितना दबाव था आदि। साथ ही इससे यह जानकारी भी मिल सकती है कि फ्लाइट क्रैश से कुछ घंटे पहले कहां पर थी। सीवीआर में कॉकपिट में जो कुछ होता है, वह सब रिकॉर्ड होता है, पायलट की बातचीत से लेकर एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) और केबिन क्रू की बातचीत भी इसमें रिकॉर्ड होती है।

प्‍लेन में कहां फिट होता है ब्‍लैक बॉक्‍स

प्‍लेन में कहां फिट होता है ब्‍लैक बॉक्‍स

ब्‍लैक बॉक्‍स को एयरक्राफ्ट की टेल यानी इसके पिछले हिस्‍से में फिट किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्‍यों‍कि यह एयरक्राफ्ट का सबसे सुरक्षित हिस्‍सा होता है और किसी भी क्रैश में इसे सबसे कम या ना के बराबर नुकसान होता है। जबकि कॉकपिट क्रैश में पूरी तरह से नष्‍ट हो सकता है। एविएशन एक्‍सपर्ट्स के मुताबिक किसी भी प्‍लेन में बहुत सी जिंदगियां होती हैं और कानून के मुताबिक ब्‍लैक बॉक्‍स बहुत जरूरी है। यह हर महत्‍वूपर्ण जानकारी को रिकॉर्ड कर सकता है और क्रैश के बाद इससे पता लगाया जा सकता है कि आखिर हादसे की वजह क्‍या थी।

जांच में लग सकते हैं 48 घंटे

जांच में लग सकते हैं 48 घंटे

शुक्रवार को हादसे का शिकार हुई फ्लाइट का ब्‍लैक बॉक्‍स मिल गया है तो एएआईबी अपनी जांच शुरू कर सकेगी। माना जा रहा है कि शुरुआती जांच में कम से कम 48 घंटे तक का समय लग सकता है। एएबी की एक टीम इसकी जांच करेगी। विशेषज्ञों के मुताबिक कोई यह नहीं जाना पाता है कि आखिर यह काम कैसे करता है, इस वजह से ही इसे ब्‍लैक बॉक्‍स भी कहा जाने लगा। कुछ केसेज में ब्‍लैक बॉक्‍स को एयरलाइन कंपनी के पास भी भेजा जाता है जो अमेरिका में है। कंपनी ब्‍लैक बॉक्‍स को डिकोड करती है। इस पूरी जांच में दो हफ्तों का समय लगता है।

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English summary
Kozhikode crash: Black box of Air India Express flight is found know what is it.
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