क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कोरबा: फेफड़ों को छलनी कर रही लाखों टन राखड़

Google Oneindia News

कोरबा। छत्तीसगढ़ में पावर का शहर कहे जाने वाला कोरबा राज्य के आधे से ज्यादा इलाकों को बिजली पहुंचा कर रौशन कर रहा है, लेकिन खुद का जीवन मानों प्रदूषण के अंधकार में समिटता जा रहा है। कोयले की वजह से लगभग पूरा शहर कालिख की चपेट में रहता है। सड़कों और इमारतों पर कालिख की परत आप आसानी से देख सकते हैं। इसी शहर में कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जहां कोयले की कालिख नहीं, बल्कि जले हुए कोयले की राख मिलती है। जी हां हम बात कर रहे हैं राखड़ की, जिसकी चपेट में कोरबा के तमाम इलाके हैं। ये वो इलाके हैं, जहां पर पावर प्लांट बने हुए हैं। पेश है एक रिपोर्ट, जिसमें हम दिखायेंगे कि किस तरह से राखड़ किस तरह से यहां के लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य को प्रभावित कर रही है। आपको बता दें कि राखड़ ही है, जिसके चलते कोरबा देश का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर है।

क्या होती है राखड़ और क्यों है यह बेहद हानिकारक

फ्लाई ऐश यानी राखड़ वह राख होती है, जो कोयले के जलाये जाने के बाद निकलती है। कोरबा में सात पावर प्लांट हैं और सभी र्थमल पावर प्लांट कोयले पर आधारित हैं। स्‍थानीय कोयले की खानों से यहां पर कोयला पहुंचाया जाता है और उसी कोयले को जलाकर ऊर्जा पैदा की जाती है। राखड़ पॉवडर की तरह होती है, जो पावर प्लांट की फरनेस के निचले भाग में एकत्र हो जाती है। इस राखड़ में आर्सेनिक, पारा यानी मरकरी, सीसा यानी लेड, वैनेडियम, थैलियम, मॉलीबेडनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़, बेरीलियम, बेरियम, एंटीमनी, एल्युमिनियम, निकेल, क्लोरीन और बोरोन जैसे तत्व पाये जाते हैं। इन्‍वॉरेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी ईपीए की रिपोर्ट के अनुसार राखड़ में से अधिकांश तत्व हेवी मेटल यानी भारी धातु हैं, जिनकी जद में निरंतर आने पर किसी भी व्यक्ति को कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती है। यानी ऐशपॉन्‍ड के आस-पास रहने वाले लोगों को हमेशा गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है।

कोरबा में ऐश पॉन्‍ड

कोरबा में ऐश पॉन्‍ड

कोरबा में जब पावर प्लांट स्‍थापित किये गये, तो प्लांट से निकलने वाली राखड़ को खुदे मैदानों में फेंक दिया जाता था। लेकिन 1999 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सख्‍त हिदायद के बाद लगभग सभी पावर प्लांट्स ने राखड़ को मैदान में छोड़ने के बजाये ऐश पॉन्‍ड बनाने शुरू कर दिये। नियम के अनुसार सभी आठ पावर प्लांट्स को राखड़ के लिये एक बड़ा सा गड्ढा बना कर उसमें राखड़ छोड़नी होती है ताकि इस राखड़ का प्रयोग ईंट व सीमेंट बनाने में किया जा सके। लेकिन कोरबा में अब भी कई प्‍लांट हैं, जहां या तो ऐश पॉन्‍ड पूरी तरह भर चुके हैं, या वहां खुले मैदान में राखड़ छोड़ दी जाती है।

हाल ही में हमने बालको पावर प्लांट के पास बने ऐश पॉन्‍ड का दौरा किया तो पाया कि पॉन्‍ड पूर तरह भर चुका है। उसमें पानी भी पूरी तरह सूख चुका था। राखड़ सूखने के बाद जब तेज़ हवा चलती है, तो ऐश पॉन्‍ड से उड़ कर आस-पास के इलाकों में फैलती है। इस राखड़ में कई ऐसे तत्व होते हैं, जो बेहद खतरनाक हैं। यही नहीं ऐश पॉन्‍ड का पानी रिसने के बाद हसदेव नहर में जाकर मिलता है। इस नहर के पानी का इस्‍तेमाल यहां के स्‍थानीय लोग नहाने, कपड़े धोने आदि के लिये करते हैं। लोगों का कहना है कि पानी में नहाने के बाद खुजली होती है, त्वचा में रैश पड़ जाते हैं, लेकिन मजबूरी है इसलिये इसमें नहाना पड़ता है।

कितनी राखड़ पैदा होती है करोबा में

कितनी राखड़ पैदा होती है करोबा में

3 नवंबर 2009 को भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार 2002 से 2003 के बीच 15 लाख टन राखड़ कोरबा के विद्युत संयंत्रों से निकली जो 2006-2007 में बढ़ कर 31.9 लाख टन हो गई। उस वक्त केंद्र सरकार ने सभी पावर प्लांट को सख्‍त निर्देश दिये कि वे इस राखड़ को ऐश पॉन्‍ड में भरें और साथ ही उसका प्रयोग ईंट, पैवलिंग टाइल्स, सीमेंट, रूफिंग शीट, प्रीकास्‍ट वस्‍तुओं, पैवलिंग ब्लॉक, कॉन्‍क्रीट मॉर्टर, भवन निर्माण में होने वाले प्‍लास्‍टर, व सड़क की व्‍हाइट टॉपिंग में किया जाये। साथ ही केंद्र ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सख्‍त निर्देश दिये कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी पावर प्‍लांट फलाई ऐश का प्रयोग इन कार्यों में कर रहे हैं या नहीं। भारत सरकार के उस निर्देश के 10 साल बाद भी आज उसका पालन पूरी तरह से नहीं किया जा रहा है। तमाम ऐश पॉन्‍ड ऊपर तक भर चुके हैं। आलम यह है कि जब गर्मी में राखड़ में मिला पानी सूख जाता है, तब यह धूल की तरह उड़ती है और बारिश में ऐश पॉन्‍ड ओवर फ्लो होने पर आस-पास के इलाकों में राखड़ पानी में मिलकर घुस जाती है।

बंजर हो रही है आस-पास की ज़मीनें

बंजर हो रही है आस-पास की ज़मीनें

ऐश पॉन्‍ड के आस-पास की ज़मीनों का हाल यह है कि जिस एक एकड़ ज़मीन पर 30 बोरी धान पैदा होना चाहिये, उसपर पैदावार महज़ 10 से 15 बोरी तक सीमित रह गई है। इससे कोरबा के सैंकड़ों किसानों का रोजगार मानो छिनता जा रहा है। तेज़ हवा चलने पर जब यह राखड़ उड़ती है, तो पेड़-पौधों पर उसकी धूल जम जाती है। इसकी वजह से पत्तियां गल जाती हैं। यही नहीं फलों का विकास भी रुक जाता है। बालको के पास रहने वाले किसान बताते हैं कि खेतों के साथ-साथ अंडरग्राउंड वॉटर यानी भूगर्भ जल पर भी इसका असर दिख रहा है। हालांकि अब तक प्रदूषण नियंत्रण बोड़ ने भूगर्भ जल के दूषित होने की पुष्टि नहीं की है।

एक और रिपोर्ट

एक और रिपोर्ट

फिज़ीशियंस फॉर सोशल रिस्पॉसिबिलिटी, यूएसए की एक कोल ऐश पर एक रिपोर्ट के अनुसार राखड़ हवा के साथ वातावरण में फैलती है तब जितनी घातक होती है, उतनी ही घातक पानी में मिलने के बाद होती है। रिपोर्ट के अनुसार गीले ऐशपॉन्‍ड के आस-पास स्थित नहरों व तालाबों में घातक तत्व होने की वजह से उसमें नहाने वालों के स्‍वास्‍थ्‍य पर गंभीर असर पड़ता है। यही नहीं अगर उस पानी को पीया तो 50 में से एक व्यक्ति को कैंसर की बीमारी निश्चित रूप से लग सकती है। राखड़ की जद में अधिक समय तक नहरे पर नर्वस सिस्‍टम कमजोर पड़ जाता है। आंतों से संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं बच्‍चों की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती हैं। किडनी व फेफड़ों को डैमेज करने में यह राखड़ बड़ी भूमिका निभाती है।

क्या कहते हैं डॉक्टर

क्या कहते हैं डॉक्टर

एनटीपीसी कोरबा के सीएमओ डा. बीके मिश्रा ने वनइंडिया से बाचतीत में कहा कि फ्लाई ऐश के कारण होने वाला प्रदूषण बेहद खतरनाक होता है। इसमें हेवी मेटल होने के कारण यहां के लोगों का इम्‍यूनिटी सिस्टम कमजोर पड़ता जा रहा है। जो बच्चे यहां पल बढ़ रहे हैं, कहीं न कहीं वे अन्य बच्‍चों की तुलना में अंदर से स्‍ट्रॉन्‍ग नहीं हैं। राखड़ में मौजूद हेवी मेटल केवल फेफड़ों पर ही नहीं बल्कि अन्य भागों पर भी बेहद बुरा प्रभाव डालते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

इस बारे में विधिक एवं पर्यावरण विशेषज्ञ लक्ष्‍मी चौहान, जो इन्‍वॉयरेन्‍मेंटल एक्टिविस्‍ट भी हैं, कहते हैं कि सरकार के निर्देशानुसार 2016 के बाद से यहां राखड़ का 100 प्रतिशत उपयोग अन्‍य कार्यों में किया जाना चाहिये। लेकिन स्थिति यह है कि इसका 25 प्रतिशत भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। 100 प्रतिशत उपयोग संभव नहीं है, लेकिन कम से कम 70 से 80 फीसदी तक तो किया जाये। पूरे कोरबा में साल भर में 100 मिलियन टन राखड़ निकलती है। इसके प्रभाव से लोगों को बचाने का एक ही रास्ता है। जिन जगहों पर माइनिंग के बाद जमीनें बंजर हो चुकी हैं वहां इसे डिस्पोस किया जा सकता है। या फिर उन खादानों को भरने में इसका प्रयोग किया जाना चाहिये, जो कोयला निकाले जाने के बाद बंजर पड़ी हैं। इसके अलावा सड़क‍ निर्माण में कियाय जाना चाहिये।

प्रदूषण में बड़ा योगदान

प्रदूषण में बड़ा योगदान

लक्ष्‍मी चौहान बताते हैं, कि पूरे देश में कोरबा एक ऐसा जिला है, जहां पूरे साल प्रदूषण खतरे के मानक से ऊपर रहता है। राखड़ में पर्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 होते हैं, जिनका साइज 2.5 माइक्रॉन से छोटा होता है। यानी ये सभी घातक तत्व जब फेफड़ों में जाते हैं तो गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि बीमारियां बढ़ रही हैं। पहले जो लोग साल में दो बार बीमारी की हालत में अस्‍पताल जाते थे, अब पांच बार जाते हैं। लेकिन समस्‍या इस बात की है कि फिलहाल हमारा सिस्‍टम ऐसा है कि बीमारियों की असली जड़ तक नहीं पहुंचता। खैर स्‍टेट हेल्‍थ रिसर्च सेंटर के साथ मिलकर हम स्‍टडी कर रहे हैं, जिसमें जल्‍द पता चल जायेगा कि राखड़ की वजह से कितने लोगों को और किस प्रकार की बीमारियां बीते वर्षों में हुई हैं या वर्तमान में हो रही हैं।

Comments
English summary
Korba is known for the coal mines. Also, it is a power hub of Chhattisgarh which supply half of the power to the state. Here we are talking about fly ash in Korba, which is more dangerous than coal smoke.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X