जानिए नागरिकता संशोधन बिल पर समर्थन देने से क्यों डर रही शिवसेना ?
बेंगलुरु। नागकिरता संशोधन बिल लोकसभा में पास होने के बाद आज मोदी सरकार के द्वारा यह बिल राज्यसभा में पेश किया जा रहा है। इस बिल को पास करने को लेकर जहां केन्द्र सरकार आश्वस्त है। वहीं सबकी निगाहें शिवसेना पर टिकी हुई हैं। महाराष्ट्र में भाजपा से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस की सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने लोकसभा में बिल के समर्थन में वोट किया। लेकिन राज्य सभा में शिवसेना इस बिल का समर्थन करने से अपने पांव पीछे खींच सकती है। लोकसभा में बिल के पास होने के कुछ समय बाद से ही शिवसेना यू टर्न के मूड में दिख रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शिवसेना की ऐसी क्या मजबूरी या डर है जिस कारण अचानक वह इस बिल पर पाला बदल रही है?
उद्धव ठाकरे ने दिया ये बयान
पहले बता दें लोकसभा में समर्थन करने वाली शिवसेना ने राज्यसभा में इस बिल के पेश होने से पहले शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अपने रुख में बदलाव करते हुए बड़ा बयान दिया। जिसमें महाराष्ट्र सीएम उद्वव ठाकरे ने कहा कि 'जब तक चीजें स्पष्ट नहीं होतीं, हम नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन नहीं करेंगे। अगर किसी नागरिक के मन में इस बिल को लेकर कोई डर है तो सबसे पहले उसकी शंकाओं को दूर किया जाना चाहिए। वे हमारे नागरिक हैं, इसलिए सरकार को उनके सवालों का जवाब देना ही चाहिए। जो भी उनसे असहमत है, वो 'देशद्रोही' है, ऐसा सोचना उनका भ्रम है। हमने राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक में बदलाव का सुझाव दिया है। यह एक भ्रम है कि केवल भाजपा को ही देश की परवाह है।'
राजनीति में अंतिम कुछ नहीं होता...चलता रहता है
उद्धव ठाकरे के इस बयान से साफ हो चुका है कि जब तक नागरिकता संशोधन बिल पर चीजें साफ नहीं हो जाती हैं, तब तक हम इसका सपोर्ट नहीं करेंगे, जबकि उनके बयान से पहले शिवसेना के सांसद संजय राउत ने ट्वीट किया था कि राजनीति में अंतिम कुछ नहीं होता...चलता रहता है। वहीं शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा था कि यह बिल हिंदुओं और मुसलमानों के 'अदृश्य विभाजन' का कारण बन सकता है। शिवसेना ने इस बिल पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या इस बिल का उद्देश्य 'वोट बैंक बनाना' है। अगर ऐसा है तो यह बिल देश के लिए ठीक नहीं है। इसके बाद लोकसभा में शिवसेना ने बिल के सपोर्ट में बिल डाला था।
इतना ही नहीं शिवसेना सांसद संजय राउत ने बुधवार को नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पेश होने से ठीक पहले कहा, 'हमें इस बिल पर अपनी शंकाओं को दूर करना है और अगर हमें संतोषजनक जवाब नहीं मिलता तो लोकसभा में जो हमारा रुख था, राज्यसभा में उससे अलग हो सकता है। वोटबैंक की राजनीति नहीं होनी चाहिए, यह सही नहीं है। देश में फिर से एक हिंदू-मुस्लिम विभाजन करने का प्रयास मत कीजिए। इसके अलावा श्रीलंका के तमिल हिंदुओं के लिए इस बिल में कुछ भी नहीं है।
शिवसेना को सता रहा ये डर
असल में शिवसेना में बिल का समर्थन करने से पीछे हटने का कनेक्शन महाराष्ट्र सरकार से जुड़ा हुआ हैं। शिवसेना को यह अच्छे से पता है कि वह इस बिल पर राज्य सभा में भी भाजपा का साथ देती है तो महाराष्ट्र में जद्दोजहेद से बनी शिवसेना की सरकार किसी भी समय भरभरा कर ढह सकती है। इसलिए सीमएम उद्वव ठाकरे को अपनी सीएम की कुर्सी को बचाने के लिए हिंदूवादी शिवसेना पार्टी के सिद्धान्तों को एक बार फिर ताख पर रख चुके हैं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि नागरिकता संशोधन बिल और महाराष्ट्र सरकार के अस्तित्व से क्या लेना देना है? असल में एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के बाद शिवसेना के लिए यह बिल बड़ी मुसीबत बना हुआ है। इस बिल को लेकर महाराष्ट्र की महाविकास अघाडी मोर्चा की सरकार में इस बिल का जमकर कर विरोध हो रहा है।
कांग्रेस शुरु से कर रही बिल का विरोध
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार का नागरिकता संशोधन विधेयक को पास करवाना एक पुराना सपना है। यह बिल बीजेपी के चुनावी वादों में से एक रहा है। इतना ही नहीं मोदी सरकार की इसके पीछे एक दूरगामी सोच भी है। भाजपा की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस है और वह नागरिकता संशोधन बिल का पुरजोर विरोध कर रही है। कांग्रेस ने बुधवार को इस बिल के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन भी कर रही है। कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक एवं संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि इसमें न केवल धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है, बल्कि यह सामाजिक परंपरा और अंतरराष्ट्रीय संधि के भी खिलाफ है।
शिवसेना को मिल चुकी है ये चेतावनी
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के नए गठबंधन सहयोगी शिवसेना द्वारा लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करने से सोनिया गांधी नाराज हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर शिवसेना के टॉप लीडरशिप को संदेश दिया और महाराष्ट्र में गठबंधन से बाहर आने की चेतवानी भी थी। कांग्रेस का कहना है कि शिवसेना का अगर यही रुख कुछ मंत्रालय हमारे लिए अहमियत नहीं रखता। इसके बाद ही शिवसेना नेता संजय राउत की तरफ़ से बयान आया कि कल जो लोकसभा में हुआ भूल जाइए, लेकिन देखना है कि राज्यसभा में शिवसेना क्या करती है। वहीं लोकसभा में बिल का समर्थन करने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से शिवसेना पर निशाना साधा। राहुल ने नाम लिए बिना ट्वीट किया कि जो इस बिल का समर्थन कर रहा है वह देश की बुनियाद पर हमला कर रहा है।
बिल को समर्थन सेक्युलर भावनाओं पर बनी सहमति के खिलाफ
बता दें शिवसेना ने लोकसभा में भाजपा द्वारा इस बिल के पेश किए जाने से पूर्व इस बिल का समर्थन करने की बात कही तभी से उनका यह फैसला कांग्रेसियों में सेक्युलर भावनाओं पर बनी सहमति के खिलाफ माना जा रहा है। यही कारण था कि कांग्रेस और एनसीपी जो सेक्युलर पार्टियां हैं वह शिवसेना को इसमें कोई भी मुरव्वत नही दे रही। इतना ही नहीं शिवसेना के सपोर्ट को लेकर कांग्रेस सीएम उद्वव सरकार को समर्थन वापास लेने की धमकी दे रही हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस के इसी दबाव के कारण शिवसेना नागरिकता संशोधन बिल पर अपना रुख बदल चुकी हैं।
उद्धव ठाकरे को करने पड़े कई समझौते
बता दें महाविकास अघाड़ी सरकार के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत उद्धव ठाकरे को कई सारे समझौते करने पड़े। यहां तक कि हिंदूवादी शिवसेना को इस सरकार में कहीं शिव का नाम भी जोड़ने का ख्याल भी त्याग दिया। लंबे समय से वीर सावरकर को भारत रत्न देने की बात हो या अल्पसंख्यक छात्रों के लिए पांच फीसदी आरक्षण देने का, कांग्रेस-एनसीपी का कार्यक्रम कबूल कर लेना कोई मामूली बात तो है नहीं, और तो और सबसे ज्यादा जोर सेक्युलर शब्द पर दिया जाना भी उद्धव ठाकरे के लिए समझौता ही रहा सवाल ये है कि क्या सत्ता के लिए बनाये गये गठबंधन का सहयोगी होना किसी दल की राजनीतिक अभिव्यक्ति पर भी पाबंदी लगा देगा?
मोदी सरकार की बिल के पक्ष में दलील
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक के पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। किसी के साथ अन्याय का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का बिल है। इस बिल ने किसी मुस्लिम के अधिकार नहीं लिए हैं. हमारे एक्ट के अनुसार कोई भी आवेदन कर सकता है। नियमों के अनुसार आवेदन करने वालों को नागरिकता दी जाएगी।
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