जानिए, घरों को लौट चुके प्रवासी श्रमिक वापस शहरों में काम पर क्यों नहीं लौटना चाहते हैं?
नई दिल्ली। कोरोना काल में मार्च से मई के दौरान दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन में लगभग 1 करोड़ बेरोजगार, भूखे और परिवार से दूर प्रवासी श्रमिक बड़े शहरों को छोड़कर भाग गए। अब जैसा कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे फिर से खुल रही है, तो बड़े पैमाने पर श्रमिकों के स्थानांतरण के प्रभाव देश में देखा जा सकता है।
शहरी उद्योगों के पास प्रोडक्शन के लिए पर्याप्त श्रमिक मौजूद नहीं हैं और ग्रामीण राज्यों को चिंता है कि शहर से भेजे जाने वाले रकमों के प्रवाह के बगैर पहले से ही गरीब परिवारों की स्थिति और भी बदतर हो जाएंगे, जिससे राज्य के खजाने पर भी एक बड़ा तनाव पड़ेगा।
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इस बीच प्रवासी श्रमिकों के शहरों में लौटने की उम्मीद नहीं है जब तक कि वायरस का संक्रमण नहीं थमता है, क्योंकि काम मिलने की संभावना अनिश्चित है। राज्य प्रोत्साहन कार्यक्रमों की शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था 40 से अधिक वर्षों में पहले संकुचन से परेशान है, और पर्याप्त नौकरियों के बिना एक अस्थिर राजनीतिक माहौल और अधिक बढ़ जाती है।
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मुंबई में एक शोध संस्था के संस्थापक वरुण अग्रवाल ने कहते हैं कि यह समय विशेष रूप से अल्पकालिक, चक्रीय प्रवासियों, जो कमजोर, गरीब और निम्न-जाति और आदिवासी पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके परिवारों के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका होगा। वहीं, देश के सबसे बड़े भुगतान बैंक का संचालन करने वाली मुंबई स्थित फिनो पेमेंट्स बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऋषि गुप्ता के अनुसार भारत के पहले 15 दिनों के लॉकडाउन में घर भेजे जाने वाले रकमों 90 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी।
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मई के अंत तक प्रवासियों द्वारा घर भेजे जाने वाली रकमों में तकरीबन 1750 रुपए तक सिमट गए, जो कि पूर्व-कोविद औसत से लगभग आधा था। गुप्ता को यकीन नहीं है कि यह कितनी जल्दी पूरी तरह की तरह ठीक हो पाएगा। गुप्ता ने कहा कि प्रवासियों को वापस आने की कोई जल्दी नहीं है, वे कह रहे हैं कि वे वापस जाने के बारे में नहीं सोच रहे हैं। वजह साफ है।
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अग्रवाल ने कहा कि अगर श्रमिक अपने गृह राज्यों में लंबे समय तक रहते हैं, तो नीति निर्धारकों को चिंता करने के लिए यह मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि अगर खपत गिरती है और लेबर ड्राइव का नया अधिशेष कम हो जाता है, तो स्थानीय अर्थव्यवस्था को दूसरे क्रम का झटका भी लगेगा। उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि कुल मिलाकर हर लिहाज से समय अच्छा नहीं है।
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गौरतलब है भारत ने मई में करीब 28 लाख करोड़ के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई और इसके बाद 700 करोड़ का कार्यक्रम बनाया गया, जिसका उद्देश्य 116 जिलों के गाँवों में प्रवासियों के लिए 125 दिनों के लिए रोज़गार पैदा करना था। अलग-अलग स्थानीय अधिकारी भी समाधान की तलाश कर रहे हैं। रविवार को अपने मासिक रेडियो संबोधन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अपनी सरकार प्रतिज्ञा को दोहराया।
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बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने इसी क्रम में कहा कि बिहार में अधिकारियों ने 2,500 एकड़ भूमि की पहचान की है जो निवेशकों को उपलब्ध कराई जा सकती है। उन्होंने कहा, हम इस संकट को सुधारों को गति देने के अवसर के रूप में उपयोग कर सकते हैंं। हालांकि निवेशकों को अभी तक मैटरलाइज्ड नहीं किया गया है और इस बीच राज्य सरकारें राष्ट्रीय कैश फॉर वर्क प्रोग्राम पर भरोसा कर रही हैं जो प्रति घर 100 दिनों के मजदूरी की गारंटी देता है।
आरआईएस के अमिताभ कुंडू कहते हैं कि कुशल श्रमिक कार्यक्रम के माध्यम से लेबर का काम नहीं करना चाहते हैं और यहां तक कि अगर वे करते हैं, तो कई श्रमिक उसे अपनी कौशलता को देखते हुए छोटा मानते हैं। भविष्यवाणी करते हुए उन्होंने कहा कि इससे सामाजिक तनाव में वृद्धि होगी, जिसमें जाति फिर से एक बड़ी भूमिका निभाना शुरू कर सकती है।
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यूपी में कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट में 30 लाख लोगों को समायोजित किया गया
उत्तर प्रदेश में कुल 32 लाख प्रवासी श्रमिक घरों को लौटे हैं, जहां कुशल श्रमिकों की सूची बनाई गई है, जिन्हें रोजगार की आवश्यकता है, सरकार उन्हें स्थानीय विनिर्माण और रियल एस्टेट उद्योग में समायोजित करने की कोशिश कर रही है। सरकार कहती है कि उसने कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट कंपनियों के साथ 30 लाख लोगों को समायोजित किया है।
बिहार ने बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में प्रवासियों को समायोजित किया
बिहार राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रमुख प्रत्यय अमृत ने बताया कि बिहार ने राज्य की बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं में लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को समायोजित किया है और यूनिफॉर्म सिलाई और सरकार द्वारा संचालित स्कूलों के लिए फर्नीचर बनाने के लिए दूसरों को काम पर रखा है।
उड़ीसा में साढ़े 4 लाख दिहाड़ी मजदूरों के लिए शहरी मजदूरी रोजगार कार्यक्रम
पूर्वी राज्य ओडिशा ने सितंबर तक काम करने के लिए 450,000 दिहाड़ी मजदूरों को रखने के उद्देश्य से एक शहरी मजदूरी रोजगार कार्यक्रम की घोषणा की है। आवास और शहरी विकास के प्रमुख सचिव जी मथिवाथन ने बताया कि इस योजना के तहत कुछ 25,000 लोगों को अब तक रोजगार मिला है।