लोकसभा में स्पीकर के समापन भाषण पर कांग्रेस में क्यों उभरे मतभेद, जानिए
नई दिल्ली- 23 नेताओं की चिट्ठी पर मचे बवाल के बाद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मेडिकल चेकअप के लिए विदेश जाने से पहले कांग्रेस संगठन में थोड़ी-बहुत बदलाव की शुरुआत की थी। उन्होंने संसद में भी पार्टी की गतिविधियां तय करने के लिए दोनों सदनों में सांसदों के अलग-अलग ग्रुपों का गठन किया था। बावजूद इसके पूरे मानसून सेशन में इनके बीच आपस में कोई समन्वय तो नजर नहीं ही आया, सत्र के अंतिम दिन आपस में मतभेद भी खुलकर सामने आ गए। यह मतभेद सत्र के अंतिम दिन संसदीय प्रक्रिया के तहत होने वाले लोकसभा अध्यक्ष के समापन भाषण को लेकर था। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता चाहते थे कि यह सरकारी कार्यक्रम नहीं होता और इसमें राष्ट्रगान के साथ सत्र की समाप्ति करने की परंपरा है, इसलिए इसमें शामिल होना ही चाहिए। लेकिन, केरल के ज्यादातर सांसदों और कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह कहकर इसका विरोध किया कि संसद के बहिष्कार का मतलब है, सबकुछ का बहिष्कार।
स्पीकर के समापन भाषण पर कांग्रेस में मतभेद
राज्यसभा के 8 सांसदों के निलंबन के खिलाफ कांग्रेस ने मानसून सत्र के आखिरी दिन लोकसभा की कार्यवाही का भी बहिष्कार किया। लेकिन, इस दौरान कांग्रेस कई मुद्दों पर आपस में ही विभाजित नजर आई। सदन में पार्टी नेतृत्व के बीच स्पीकर के समापन भाषण में शामिल होने या नहीं होने को लेकर स्पष्ट रूप से विभाजन नजर आया। इतना ही नहीं पार्टी नेतृत्व के बीच दोनों सदनों के बीच भी समन्वय में साफ कमी देखी गई। सूत्रों की मानें तो बुधवार को सुबह राज्यसभा के विपक्षी सांसदों ने संसद परिसर में जो विरोध प्रदर्शन किया, उसके बारे में लोकसभा की लीडरशिप को कुछ भी जानकारी नहीं थी। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने शाम में भी एक प्रदर्शन किया, जिसमें विपक्ष के कई सांसद गायब रहे।
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समापन सत्र के बहिष्कार पर बंटी नजर आई कांग्रेस
कांग्रेस का असल लफड़ा मानसून सत्र के अंतिम दिन लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की ओर से होने वाले समापन भाषण को लेकर देखने को मिला। पार्टी सांसदों के साथ एक बैठक में सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पार्टी को सत्र के समापन का बहिष्कार नहीं करना चाहिए। क्योंकि, यह एक परंपरा है, जिसके तहत लोकसभा अध्यक्ष सत्र के अंत में एक समापन भाषण देते हैं, जिसके बाद अनिश्चितकाल के लिए सत्र स्थगित होने से पहले राष्ट्रगान बजता है। जानकारी के मुताबिक अधीर रंजन की दलील का पार्टी के चीफ व्हीप के सुरेश ने भी समर्थन किया। लेकिन, सदन में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई और शशि थरूर जैसे कुछ सांसदों का तर्क था कि संसद का बहिष्कार करने का मतलब है पूरी तरह से बहिष्कार। सूत्रों के मुताबिक केरल के ज्यादातर सांसद इसी पक्ष में थे।
राष्ट्रगान के समय उपस्थित रहना चाहते थे अधीर रंजन चौधरी
जानकारी के मुताबिक अधीर रंजन चौधरी ने फिर भी हार नहीं मानी और सांसदों की आपत्ति के बीच ये तर्क दिया कि कांग्रेस का विरोध एक संस्था के रूप में संसद का विरोध करना नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी सांसदों को कम से कम राष्ट्रगान के समय तो जरूर उपस्थित रहना चाहिए, जिससे कि गलत संदेश ना जाए। उन्होंने पार्टी सांसदों को समझाया कि समापन सत्र सरकार की कार्यवाही नहीं है- यह 'संसदीय परंपरा' और उसकी 'रीति-नीति' है। लेकिन, चौधरी के विरोध में कहा गया कि समापन सत्र में शामिल होने का मतलब है कि संसद की कार्यवाही में शामिल होना। यही नहीं दलील ये भी दी गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उस दौरान मौजूद रहेंगे। वह राज्यसभा में भी मौजूद थे।
दोनों सदनों के कांग्रेसी सांसदों में तालमेल नहीं
गौरतलब है कि कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं की ओर से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को खत लिखे जाने के बाद पिछले महीने उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी के कार्यों के संचालन के लिए दो अलग-अलग ग्रुप बनाए थे। सोनिया ने कहा था कि जब भी जरूरत पड़ेगी दोनों ग्रुप आपस में बातचीत करेंगे। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि मानसून सत्र के दौरान पार्टी के दोनों ग्रुप में कभी भी कोई समन्वय देखने को नहीं मिला। दोनों ग्रुप ने कभी भी एकसाथ बैठक नहीं की और सत्र के अंतिम दिन दोनों सदनों के कांग्रेसी सांसदों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी अलग-अलग किया।
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