अरुणाचल को लेकर चीन इसलिए करता है शातिराना हरकत, इस जगह के लिए है छटपटाता
नई दिल्ली। शातिर चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। जब लद्दाख में भारतीय सेना की मुस्तैदी ने उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया तो चीन अब नए मुद्दे उठाकर शरारतें कर रहा है। हाल ही में चीन ने अरुणाचल को लेकर बयान दिया कि अरुणाचल प्रदेश को वह भारत का हिस्सा नहीं मानता। चीन का ये बयान उस सवाल के जवाब में था जिसमें भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश से अपहृत हुए पांच युवकों के बारे में जानकारी मांगी थी।
लद्दाख इलाके में भारत और चीन से तनाव के बीच पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश से खबर आई कि ऊपरी सुबनसिरी जिले से पांच युवक लापता हो गए हैं। इस बारे में बताया गया कि चीनी सेना ने उनका अपहरण किया है। ये जानकारी युवकों के उन दो साथियों ने दी जो किसी तरह बचकर निकल आए थे। जानकारी सामने आने के बाद भारतीय सेना ने अरुणाचल बॉर्डर पर अपने समकक्ष चीनी सेना से हॉटलाइन पर संपर्क कर इस बारे में जवाब मांगा। जवाब तो दिया नहीं उल्टा चीन के प्रवक्ता ने कह दिया कि चीन तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता। चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है।
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चीन पहले भी करता रहा है ऐसी हरकत
चीन ने ये हरकर पहली बार नहीं की है। पहले भी चीन ऐसा करता रहा है। 2019 में जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर गए थे तो चीन ने आपत्ति दर्ज कराई थी। चीन ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश विवादित हिस्सा है और यहां से भारतीय नेतृत्व किसी भी तरह की गतिविधि से हालात जटिल से हो सकते हैं।
इसके पहले तिब्बत से निर्वासित होकर भारत में रह रहे दलाई लामा के दौरे पर भी चीन ने ऐतराज जताया था। 2017 में दलाई लामा ने अरुणांचल स्थित बौद्ध मठ तवांग का दौरा किया था। चिढ़ा चीन कुछ कर नहीं पाया तो अपने मानचित्र में प्रदेश के 7 स्थानों के नाम बदल दिए थे। चीन ने इस पर भारतीय राजदूत को तलब भी किया था। जिस पर भारत ने चीन को सख्त जवाब देते हुए कहा था कि भारत वन चीन नीति का सम्मान करता है इसलिए ये जरूरी है कि चीन भी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे। इसके पहले अक्टूबर 2016 में अमेरिकी राजदूत के दौरे का भी विरोध किया था।
अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत कहता है चीन
चीन और भारत के बीच लंबे समय से सीमा विवाद है। दोनों देशों की 3488 किमी लंबी सीमाएं एक दूसरे से मिलती है। 62 में दोनों के बीच जंग भी हो चुकी है जिसमें चीन ने भारत का अक्साई चिन का 38 हजार वर्ग किमी का इलाका कब्जे में ले लिया। ये इलाका लद्दाख के पास पड़ता है। इस दौरान चीन की सेनाएं पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल के तवांग तक घुस आई थीं।
अरुणाचल प्रदेश के भारत में होने को लेकर कोई संशय नहीं है। पूरी दुनिया में भारत के जिस अंतरराष्ट्रीय मानचित्र को मान्यता मिली है उसमें अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। चीन इसे नहीं मानता। उसका कहना है कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत कहता रहा है। अरुणाचल प्रदेश का तवांग बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां बौद्ध धर्म का भारत का सबसे विशाल मंदिर है। तिब्बत के बौद्ध इसे बहुत पवित्र स्थान है और वे इसे बहुत महत्व देते हैं। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। अरुणाचल प्रदेश में तिब्बती समाज के बहुत सारे लोग रहते हैं जो दलाई लामा में आस्था रहते हैं। यह वजह भी है कि ये हिस्सा चीन की आंख में किरकिरी बना हुआ है।
1914 में पहली बार हुआ सीमा निर्धारण
भारत और चीन के बीच सीमा का निर्धारण जो रेखा करती है उसे मैकमोहन रेखा कहते हैं। चीन इसे नहीं मानता और भारत के कई हिस्सों पर अपना हक जताता है। उसका कहना है कि तिब्बत का बड़ा हिस्सा भारत के पास है। अरुणाचल प्रदेश का विवाद इसी वजह से है। प्राचीन काल में भारत और तिब्बत के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा निर्धारित नहीं थी। भारतीय और तिब्बती शासकों ने कोई बंटवारा नहीं किया था। इधर भारत पर ब्रिटिश नियंत्रण था और तिब्बत चीन के अधीन था। 1912 में तत्कालीन दलाई लामा ने चीन का अधिपत्य मानने से इनकार कर दिया और तिब्बत को एक बार फिर से स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। 1914 में पहली बार ब्रिटिश अधिकारी, तिब्बती और चीनी प्रतिनिधि सीमा निर्धारण के लिए शिमला में मिले।
तत्कालीन ब्रिटिश हिस्से ने तवांग और आस-पास के क्षेत्र को भारत का हिस्सा माना। स्वतंत्र तिब्बत ने इसे स्वीकार किया लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया। चूंकि ये हिस्सा तिब्बत से सटा हुआ था इसलिए चीनी आपत्ति का कोई मतलब नहीं था। 1935 में इसे भारत के मानचित्र में शामिल कर लिया गया। इस नक्शे को विश्व में भी मान्यता मिली।
62 की जंग में अरुणाचल के तवांग तक आ गया था चीन
शिमला समझौते बाद से 1950 तक यथास्थिति बनी रही। बाद में चीन पर कम्युनिष्ट पार्टी का शासन आया तो चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। चीन चाहता था कि तवांग भी उसके हिस्से में आ जाए। 1962 की जंग में चीन की सेनाएं लद्दाख के साथ ही अरुणांचल प्रदेश में भी घुस गई। सेनाएं तवांग तक पहुंच गई लेकिन जब युद्ध खत्म हुआ तो चीनी सेनाओं ने अक्साई चिन पर तो कब्जा जमाये रखा लेकिन अरुणांचल से वापस लौट गईं। दरअसल अरुणाचल की भौगोलिक स्थितियां भारत के अनुकूल थी इसलिए पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने वापस जाने में ही भलाई समझी। इसके बाद से ही भारत का इस इलाके पर मजबूत नियंत्रण है। भारतीय सेना भी वहां मुस्तैदी से तैनात है।
वापस हटने के बाद भी चीन इस मुद्दे को लगातार उठाता रहता है। अब तक इसे लेकर दोनों देशों में कई स्तर की वार्ता हो चुकी है। चीन ऐसे ही किसी समय पर अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता रहता है।
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