कभी हार्डवेयर की दुकान चलाते थे येदुरप्पा, अब संभालेंगे कर्नाटक की कमान
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा में जीत हासिल कर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से दक्षिण भारत में वापसी की है। कांग्रेस के हाथों से सत्ता छीन कर बीजेपी ने साबित कर दिया है कि 2014 में शुरु हुई मोदी लहर अब सूनामी बन चुकी है। 2014 में जब बीजेपी ने केंद्र में सरकार बनाई थी तो उस वक्त बीजेपी या एनडीए की सरकार केवल 8 राज्यों में थी, लेकिन अब ये आंकड़ा 21 राज्यों तक पहुंच गया है। कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने बीएस येदुरप्पा को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश किया। येदुरप्पा ने भी जी-जान लगा दी और उनकी मेहनत के बदौलत बीजेपी एक बार फिर से कर्नाटक में वापसी कर पाने में सफल हो सकी।
2008 में 'ऑपरेशन लोटस' के नायक तो 2013 के खलनायक
येदुरप्पा ने साल 2008 के विधानसभा चुनाव में ऑपरेशन लोटस के जरिए कर्नाटक में सत्ता हासिल की थी। 110 सीटें जीतकर वो किंग बन गए थे, लेकिन 2013 में वो अनी ही पार्टी के लिए खलनायक साबित हुए। भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि पर ऐसा दाग लगाया कि चुनाव में बीजेपी की करारी शिकस्त हुई और कांग्रेस सत्ता छीनने में कामयाब हुई।
कभी क्लर्क तो कभी हार्डवेयर की दुकान
येदुरप्पा का सियासी जीवन जितना उथल-पुथल से भरा रहा उनके निजी जीवन में भी ऐसे ही उतार-चढ़ाव रहे। उनका जन्म 27 फरवरी 1943 को राज्य के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर हुआ था। वो 4 साल के ही थे जब उनकी मां का देहांत हो गया। मां के जाने के बाद पिता ने ही उनकी जिम्मेदारी संभाली। पढ़ाई के साथ-साथ वो किसान के तौर पर खेतों के काम करते थे। फिर बीए पास करने के बाद उन्होंने चावल मिल के क्लर्क की नौकरी की, लेकिन वहां मन नहीं लगा तो नौकरी छोड़कर हार्डवेयर की दुकान खोल ली। इसी दौरान वो संघ के करीब आएं और उन्होंने संघ ज्वाइन कर लिया। 1972 में शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया और इस तरह उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। फिर येदुरप्पा ने थमने का नाम नहीं लिया। 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें 45 दिनों के लिए जेल भी जाना पड़ा।
सियासी सफर
लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले येदुरप्पा 1983 में पहली बार विधायक बने। उन्होंने शिकारीपुरा विधानसभा सीट से पहली बार जीत हासिल की और तब से लेकर अब तक 7 बार वहां से लगातार जीत हासिल की है। पार्टी में 1988 में उन्हें कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बनाया और तब से लेकर अब तक वो तीसरी बार पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। 1994 के विधानसभा चुनाव के बाद वे विपक्षी दल के नेता बने। साल 2008 में बीजेपी ने येदुरप्पा के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा और पार्टी की जीत दिलाई।
भ्रष्टाचार के लगे आरोप
2011 में बीएस येदुरप्पा पर रिश्वरखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। लोकयुक्त ने उनपर 40 करोड़ की रिश्वत लेने और भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाया था। न केवल येदुरप्पा बल्कि उनके बेटे और दामाद पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। लोकायुक्त ने येदुरप्पा पर इस्पात कंपनी जेएसडब्ल्यू रिश्वतखोरी और फर्जीवाड़े का आरोप लगाया। लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें अवैध खनन के मामले में दोषी पाया और कहा कि उनकी वजह से सरकारी ख़ज़ाने को 16 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक का नुक़सान हुआ। इन आरोपों की वजह से उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। साल 2012 में उन्होंने बीजेपी और विधानसभा सदस्य से अपना इस्तीफा सौप दिया। इन आरोपों के चलते उन्हें 25 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। हालांकि 2016 में उन्होंने सीबीआई की विशेष अदालत ने इन आरोपों से बरी कर दिया।