जानें कौन हैं फिरोज खान, जिनकी नियुक्ति पर बीएचयू में मचा है बवाल?
बेंगलुरु। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर घमासान मचा हुआ है। विरोध इसलिए हो रहा है कि एक मुसलमान कैसे संस्कृत पढ़ा सकता है। फिलहाल कुलपति के आश्वासन पर पर विरोध कर रहे छात्रों ने हड़ताल खत्म कर दी है। वहीं अपनी नियुक्ति के बाद हो रहे विरोध के बीच डॉ. फिरोज खान जयपुर लौट गए हैं। फिरोज खान का विरोध करने वाले छात्रों को एक बार फिरोज की संस्कृत के पीछे की गई साधना और उनके बैकग्राउन्ड को अवश्य जान लेना चाहिए।
मुस्लिम समाज और रिश्तेदारों ने तोड़ा लिया था नाता
जयपुर
के
बगरु
निवासी
फिरोज
को
संस्कृत
विषय
को
लेकर
यह
विरोध
पहली
बार
नहीं
सहना
पड़
रहा
हैं,
यह
विरोध
वह
तब
से
सह
रहे
हैं
जबसे
उन्होंने
संस्कृत
भाषा
का
चयन
किया।
आज
से
करीब
25
वर्ष
पहले
उनके
संस्कृत
पढ़ने
को
लेकर
जमकर
विरोध
हुआ
था।
उनके
पिता
रमजान
खान
ने
जब
उनका
दाखिला
बगरु
के
राजकीय
वरिष्ठ
उपाध्याय
संस्कृत
स्कूल
में
करवाया
तो
मुस्लिम
समाज
और
रिश्तेदारों
ने
उनका
बहुत
विरोध
किया।
उन लोगों का कहना था कि घर के पास बने मदरसे में फिरोज पढ़ाई करें। लेकिन रमजान खान ने तय कर लिया था कि बेटे को संस्कृत का विद्वान बनाना है। उन्होंने फिरोज के पिता रमजान और उनके परिवार से इसी वजह से रिश्तेदारों ने रिश्ता खत्म कर लिया था। लेकिन पिता रमजान ने फिरोज ही नहीं अपने चारों बेटों को संस्कृत विषय की पढ़ाई कराई।
संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान से किया गया था सम्मानित
प्रोफेसर फिरोज खान ने 5वीं कक्षा से संस्कृत पढ़ना शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत शिक्षा संस्थान से शास्त्री यानी ग्रेजुएट, आचार्य (पोस्ट ग्रेजुएट), शिक्षा शास्त्री (बीएड) की डिग्री हासिल की है। फिरोज खान को 14 अगस्त को मनाए जाने वाले संस्कृत दिवस पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य स्तरीय संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान समारोह में सम्मानित किया। उन्होंने पहले जयपुर के संस्कृत कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद संस्कृत विवि में गेस्ट फेकल्टी के रूप में पढ़ाने लगे। उन्हें शिक्षा विभाग की ओर से बेस्ट टीचर का अवार्ड भी मिला।
फिरोज के पिता मंदिरों में गाते हैं भजन
फिरोज
के
पिता
ने
संस्कृत
में
शास्त्री
योग्यता
हासिल
की
है।
इनके
परिवार
में
पीढ़ियों
से
गौसेवा
की
जाती
रही
है।
फिरोज
खान
के
दादा
गौसेवा
करते
थे
और
उनके
बाद
पिता
रमजान
खान
वर्षों
से
गौसेवा
कर
रहे
हैं।
मंदिरों
में
नियमित
हारमोनियम
बजाते
हैं
और
राम
कृष्ण
के
भजन
गाते
हैं।
रमजान
के
सभी
बच्चों
को
भजन
और
हनुमान
चालीसा
कंठस्थ
है।
माथे
पर
तिलक
भी
लगा
लेते
हैं।
बाकौल
रमजान
"फिरोज
भी
गौशाला
जाया
करते
थे।
वह
मस्जिद
भी
जाते
हैं
और
नमाज
भी
अदा
करते
हैं।
रमजान
खान
के
हिन्दू
धर्म
को
मानने
को
लेकर
स्थानीय
लोगों
और
अन्य
गांववालों
को
कभी
कोई
परेशानी
नहीं
हुई।
बहन की शादी के कार्ड पर छपी थी भगवान गणेश की फोटो
फिरोज खान के पिता रमजान खान ने बताया कि मैने मेरी बड़ी बेटी का नाम लक्ष्मी रखा तो छोटी बेटी का नाम अनीता रखा। बेटी की शादी के कार्ड पर गणेशजी की फोटो छपवाई थी। फिरोज खान और उसके तीनों भाई बचपन से ही नियमित रूप से मंदिर में जाते हैं। वे प्रतिदिन सुबह मंदिर जाते हैं तो फिर मस्जिद जाते हैं। हमारे परिवार के लिए सभी धर्म समान है।
हिंदू परंपराओं के बीच बीता पूरा बचपन
फिरोज खान ने अपना बचपन संस्कृत सीखते हुए और हिंदू परंपराओं के बीच बिताया है। हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग में किसी मुस्लिम प्रोफेसर की पहली नियुक्ति के बारे में फिरोज खान का कहना है कि संस्कृत से हमारा खानदानी ताल्लुक है। मेरे दादा गफूर खान राजस्थान में हिंदू देवी-देवताओं को लेकर भजन गाकर इतने मशहूर हो गए थे कि लोग उनको दूर-दूर से बुलाने आते थे। उन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए मैंने संस्कृत की पढ़ाई की। साथ ही जयपुर में एक गोशाला के लिए प्रचार-प्रसार करते हुए गौ-सेवा भी की। ऐसे में अब मुझे बीएचयू में संस्कृत पढ़ाने में क्या समस्या होगी?''
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