जानिए,कृषि कानून के खिलाफ कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के लाए 3 विधेयक कानून बन गए तो क्या होगा?
नई दिल्ली। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में यह दृश्य शायद यह पहली बार देखा जा रहा होगा जब उत्पादकों या विक्रेताओं का कोई समूह उसके ग्राहकों की संख्या बढ़ाने वाले कानून का विरोध हो रहा है। जी हां, पंजाब और हरियाणा के किसान जिस कृषि कानून में नए प्रावधानों के विरोध में आसमान सिर पर उठा रखा हैं, वो कानून उन्हें मंडी में अपनी उपज बेचने के बदले कहीं भी, किसी को भी अपनी फसल बेचने की आजादी देता है, लेकिन पंजाब सरकार द्वारा लाए गए तीन विधेयकों पर अगर हस्ताक्षर हो गए तो पंजाब और हरियाणा के किसान सबसे ज्यादा तकलीफ में होंगे।
केंद्रीय कृषि कानून: हंगामा क्यों है बरपा, आखिर हरियाणा और पंजाब के किसान ही क्यों भड़के हैं?
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कोई किसान और काश्तकार कृषि कानून का विरोध नहीं कर सकता है
माना जाता है कि कोई भी बुद्धिमान किसान और फसल उत्पादक काश्तकार इस कानून का विरोध नहीं कर सकता है। य़ह विरोध महज आशंकाओं और उनके बीच फैलाए गए भ्रम के चलते हो रहा है। मेरठ, करनाल और पटियाला के किसानों की मानें तो वहां ऐसा ही एक भ्रम अभी फैलाया जा रहा है कि सरकार कृषि कानून 2020 के जरिए किसानों का जमीन भी छीनने जा रही है। यह अफवाह क्यूं फैलाया जा रहा है, किसको इसका फायदा मिल सकता है, इसलिए यह पर ध्यान देना अधिक जरूरी हो गया है।
कृषि कानूनों से केवल कमीशन खोर एजेंट की दुकान उजड़ रही है
गौरतलब है कृषि कानूनों में नए प्रावधानों से कमीशन खोर एजेंट की दुकान उजड़ रही है। अकेले पंजाब में ऐसे 29,000 हजार कमीशन खोर एजेंट मौजूद हैं, जो किसानों की उपज बेंचवाने के लिए किसानों से 2.5 फीसदी कमीशन लेते हैं। अब इतनी बड़ी संख्या में किसानों का खून चूसकर जिंदा रहने वाले लोगों की दुकान उजड़ेगी, तो वो लोग चुप करके कैसे बैठेंगे। यही कारण है कि किसानों को आगे खड़ा करके अपना मतलब साधने की कोशिश हो रही है, जिसकी आग में राजनीतिक दल भी रोटियां सेंकते नजर आ रहे हैं।
कृषि कानूनों को कुंद करने के लिए पंजाब सरकार तीन विधेयक लेकर आई
पंजाब सरकार के मुखिया ने कृषि कानूनों को राज्य में कुंद करने के लिए पंजाब विधानसभा में तीन-तीन विधेयक लेकर आई है। इसके अलावा पंजाब सरकार ने एमएसपी पर किसानों की उपज नहीं खरीदने के लिए तीन साल की सजा वाला कानून भी लेकर आई है। माना जा रहा है कि अगर पंजाब सरकार के केंद्रीय कृषि कानून को काउंटर करने वाले विधेयक पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा अनुमति दे दी गई, तो पंजाब और हरियाणा देश के बाकी किसानों की तुलना में ठगा हुआ महसूस करने में देर नहीं लगेगा।
कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकारें भी कानून ला रही हैं
पंजाब सरकार ही नहीं, कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकारें भी ऐसा ही कानून ला चुकी है, जो किसानों से मंडी से इतर अपनी उपज बेचने की आजादी को छीन लेगी और किसान मंडी और कमीशनखोर एजेंट तक सिमट कर रह जाएंगे। सवाल है कि आजतक कभी ऐसा हुआ कि विक्रेताओं की संख्या बढ़ने से किसी ग्राहक का नुकसान हुआ। ऐसे माहौल में दुकानों के बीच कंप्टीशन बढ़ता है और ग्राहकों को ही फायदा होता है। यह अर्थ विज्ञान से जुड़ा हुआ मसला है, लेकिन इतना भी गूढ़ नहीं है, जो समझ न आ सके।
जो MRP पर छूट बाहर मिल जाता, वह पड़ोस की दुकान में नहीं मिलता
फर्ज कीजिए, अगर आपके पड़ोस में एक दुकान है, तो आपको किसी भी सामान की खरीदारी में निकटता का लाभ देते हुए उसे नॉर्मल दर से अधिक चुकाना पड़ता है या कह लीजिए कि जो एमआरपी पर छूट आप डिपार्टमेंटल स्टोर पर पा जाते हैं, वह पड़ोस की दुकान में पाना संभव नहीं, बल्कि एक दो रुपए एक्स्ट्रा देना पड़ता है। अब अगर आपके पड़ोस में तीन चार दुकान और खुल जाती है, तो तीनों दुकानों में मूल्यों को लेकर कंप्टीशन बढ़ना लाजिमी है, जिसका लाभ ग्राहकों को होगा।
मंडी और कमीशन खोर पर किसानों की निर्भरता खत्म हो जाएगी
कुछ ऐसी व्यवस्था सरकार ने कृषि कानून में की है, जिससे अब किसान मंडी और कमीशन खोर पर किसानों की निर्भरता खत्म हो जाएगी और वो किसी को भी अपनी उपज बेंच सकेंगे। अब अगर ऐसे में कोई आपको मंडियों और आढ़तियों के फायदे समझाता है, जो आपके उपज पर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं, तो यह तो वह खुद मूर्ख है या आपको मूर्ख बना रहा है। यही नहीं, अपनी बातों को वजन बढ़ाने के लिए वह कई आशंकाओं का बादल सिर पर घेर देता है, जैसा सीएए कानून को लेकर मुस्लिम भाईयों के मन में आशंकाएं फैला दी गईं थीं और वो सड़कों पर पहुंच गए थे।
दिल्ली सीएम केजरीवाल ने पंजाब सीएम के विधेयकों को फर्जी बताया है
किसानों के हितैषी बने कांग्रेस शासित सरकारों ने राज्य के किसानों को बरगलाने के लिए तीन-तीन विधेयक जरूर ले आई हैं, लेकिन क्या उनके कानून संवैधानिक धरातल पर टिक पाएंगे, इस पर भी सवाल खड़ा हो सकता है। पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, जो पहले ही तीन-तीन विधेयक पारित करवा चुके हैं, जो केंद्रीय कानून को पंजाब में लागू होने से रोकेंगे, जिससे पंजाब के किसानों की तकलीफ दूर हो जाएगी। लेकिन आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने पंजाब सीएम के विधेयकों को फर्जी बताकर किसानों की आड़ में खेली जा रही राजनीति का पर्दाफाश कर दिया है।
किसान आंदोलन के लिए एमएसपी का हथियार की तरह इ्स्तेमाल हुआ है
किसानों को आंदोलन के लिए तैयार करने के लिए सबसे बड़े हथियार के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का इ्स्तेमाल किया गया है। सवाल है क्या वाकई में सरकार एमएसपी को खत्म करने जा रही है। जवाब है नहीं, क्योंकि यह भी आंशकाएं और अफवाहें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई बार इस मामले में सफाई दे चुके हैं। किसान आंदोलन को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह किसानों से बातचीत के लिए आगे आने को कहा है, लेकिन बातचीत से इनकार कर दिया गया। किसान के पीछे राजनीति करने वाले दल केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कानूनों को रद्द करने पर अमादा है।
भारत में गेंहू का एमएसपी अमेरिका से अधिक 18.40 रुपए प्रति किलो है
क्या आपको पता है कि भारत में गेंहू का एमएसपी 18.40 रुपए प्रति किलो है, जबकि अमेरिका जैसे देश में जहां मजदूरी भारत से 20 गुना ज्यादा है, वहां भारत की तुलना में गेहूं की कीमत 15-16 रुपए प्रति किलो हैं। भारत अगर अमेरिका से गेहूं का आयात करे तो उसे गेहूं भारत की तुलना में 30-35 फीसदी सस्ता मिलेगा। व्यापारी अमेरिका से गेहूं आयात न करने पाए इसलिए भारत सरकार ने गेहूं आयात पर 40 फीसदी टैक्स लगाया है। अब सोचिए किसानों का हितैषी कौन है।
निजी प्लेयर आने से सरकार पर अनाज खरीदने का बोझ घटेगा
उल्लेखनीय है कृषि कानून में नए प्रावधानों से मार्केट में निजी प्लेयर आने से सरकार पर अनाज खरीदने का बोझ घटेगा, जिससे सरकार जरूरत मंदों को राशन की जगह लाभार्थियों को सहायता राशि सीधे उनके बैंक एकाउंट में भेज सकेगी। इसका सीधा फायदा होगा कि सरकारी खर्चे में बचत होगी और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मौजूद भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगा। जो पीडीएस केंद्रों से राशन गायब हो जाते हैं, वो खेल बंद होंगे, जिसका नुकसान किसे होने जा रहा है, यह आसानी से समझा जा सकता है।