जानिए, दिल्ली में केजरीवाल के दोबारा रिकॉर्ड तोड़ जीत के पीछे की असली कहानी!
बेंगलुरू। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस पार्टी ने अब तक सबसे खराब प्रदर्शन किया है, लेकिन आम आदमी पार्टी के संजोयक अरविंद केजरीवाल ने लगातार दूसरी बार रिकॉर्ड प्रदर्शन करते हुए 70 दिल्ली विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में से 62 सीट जीतने में कामयाब रही। यह दूसरी बार है महज 7 वर्ष पुरानी आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की है।
गौरतलब है वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने 70 में 67 सीटों पर कब्जा करके इतिहास रचा था। हालांकि इस बार पुराना रिकॉर्ड नहीं दोहरा पाई, लेकिन नया रिकॉर्ड भी बुरा नहीं है, जिससे एक बार 100 वर्ष अधिक पुरानी पार्टी कांग्रेस जीरो पर आउट हुई जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी 8 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई।
सवाल यह है कि क्या केजरीवाल की बड़ी जीत खुद केजरीवाल द्वारा अर्जित की हुई है, तो जवाब है नहीं। क्योंकि दिल्ली में केजरीवाल को दिल्ली का ताज दिलाने में कांग्रेस के वोट बैंक की भूमिका है, जो आज भी दिल्ली में एकमुश्त 24 फीसदी है। अगर कांग्रेस आक्रामक होकर लड़ती तो केजरीवाल 2015 ही नहीं, 2020 में भी सेकंड रनर अप आते।
कांग्रेस की रणनीतिक चाल दिल्ली में नहीं होती तो बमुश्किल केजरीवाल एंड पार्टी दिल्ली में 10-15 सीट निकालने में सफल हो पाती। वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में केजरीवाल अपने दम पर महज 28 सीट जीतने में सफल हुए थे, वह भी तब कांग्रेस के खिलाफ दिल्ली समेत पूरा देश एकजुट था।
याद कीजिए, वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल में केंद्र की सत्ता में पूर्ण बहुमत से काबिज हुई थी और कांग्रेस ऐतिहासिक 44 सीटों पर सिमट गई थी। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 लोकभा चुनाव में अकेले 281 सीटों पर जीत दर्ज की थी। बीजेपी ने दिल्ली के कुल सात सीटों पर कब्जा किया था। वर्ष 2014 चुनाव में आम आदमी पार्टी भी चुनाव में उतरी थी, लेकिन महज 4 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी।
अन्ना आंदोलन से उभरे केजरीवाल का प्रदर्शन बेहद खराब था। क्योंकि वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की तरह आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस भी नई पार्टी थी, लेकिन उसने पहली बार में ही 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यही नहीं, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी पहली बार चुनाव में उतरी थी और उसने तीन लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
इसलिए यह कहना कि दिल्ली में मिली रिकॉर्ड जीत केजरीवाल या उनके पांच साल के कामकाज की जीत है, यह महज एक मुगालता होगा। आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि दिल्ली में कांग्रेस का जनाधार नहीं खिसका है, जो वर्ष 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव से 2020 लोकसभा चुनाव तक 22-24 फीसदी बना हुआ है।
गूगल करेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस ने वर्ष 2013 में जब पूरा देश उसके खिलाफ था तब कांग्रेस 24 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर दिल्ली के सातों लोकसभा चुनाव में 22 फीसदी बना रहा है। यही नहीं, दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी उसका वोट शेयर 22 फीसदी बरकरार रहा। और तो और लोकसभा चुनाव 2019 में भी कांग्रेस का वोट शेयर 22 फीसदी वोट शेयर कोई नहीं छीन सका।
आपको याद हो या न हो, लेकिन केजरीवाल एंड पार्टी लोकसभा चुनाव 2019 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने गठबंधन करने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे,लेकिन कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया था। यह बात केजरीवाल की स्थिति दिल्ली में बताने के लिए काफी है, जो कांग्रेस के बिना कुछ नहीं हैं। कांग्रेस वोटों के जरिए केजरीवाल पहले भी दिल्ली के सूरमा बने थे और इस बार भी।
With due respect sir, just want to know- has @INCIndia outsourced the task of defeating BJP to state parties? If not, then why r we gloating over AAP victory rather than being concerned abt our drubbing? And if ‘yes’, then we (PCCs) might as well close shop! https://t.co/Zw3KJIfsRx
— Sharmistha Mukherjee (@Sharmistha_GK) February 11, 2020
क्या कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को जिताने का ठेका लिया हुआ: शर्मिष्ठा
सवाल उठता है कि जिस कांग्रेस का दिल्ली में 22 फीसदी वोट है, वो 4 फीसदी वोट पर क्यों खुश है। चुनाव नतीजे से पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने एग्जिट पोल के आधार पर ही केजरीवाल एंड पार्टी को बधाई दे दी और जब चुनाव नतीजे घोषित हुआ तो केजरीवाल एंड पार्टी के बाद कोई दूसरी पार्टी सेलिब्रेट करती हुई नजर आया तो वह थी कांग्रेस पार्टी। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पी. चिदंबरम तक ने बीजेपी को निशाना साधते हुए केजरीवाल को बड़ी जीत के लिए बधाई दी। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कांग्रेस नेताओं के बयान से दुखी होकर आरोप लगाया कि क्या कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को जिताने का ठेका लिया हुआ था। यह स्पष्ट करता है कि दिल्ली में केजरीवाल एंड पार्टी की जीत उधार की है, जो कांग्रेस कभी भी वसूल सकती है।
नगर निगम व लोकसभा चुनाव चुनाव में तीसरे नंबर पर रही थी AAP
दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में बीजेपी के वोट शेयर में तकरीबन 7.5 फीसदी की वृद्धि हुई, जो पिछले चुनाव की तुलना में 31 फीसदी से 38.46 फीसदी दर्ज की गई। इसका फायदा भी पार्टी को हुआ और बीजेपी के सीटों की संख्या 3 से बढ़कर 8 हो गई। वर्ष 2015 में भी कांग्रेस ने तयक किया था कि दिल्ली से बीजेपी को दूर रखने के लिए नवोदित आम आदमी पार्टी को सपोर्ट करेगी और इस बार भी ढुलमुल चुनावी कैंपेन से आम आदमी पार्टी को चुनाव जीतने में सहयोग किया। वरना पिछले 5 से 7 वर्षों में दिल्ली में कांग्रेस के प्रदर्शन का आकलन करेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस ने दिल्ली नगर निगम चुनाव हो या लोकसभा चुनाव दोनों चुनावों में आम आदमी पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया है।
जब राहुल गांधी के सामने गठबंधन करने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे केजरीवाल
लोकसभा चुनाव 2019 में केजरीवाल एंड पार्टी ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने गठबंधन करने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे,लेकिन कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया था। यह बात केजरीवाल की स्थिति दिल्ली में बताने के लिए काफी है, जो कांग्रेस के बिना कुछ नहीं हैं। कांग्रेस वोटों के जरिए केजरीवाल पहले भी दिल्ली के सूरमा बने थे और इस बार भी।
दिल्ली चुनाव 2015 और 2020 में कांग्रेस जानबूझकर सुस्त रही
वर्ष 2015 और 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को ऐतिहासिक जीत का कारण कांग्रेस की रणनीति थी, जो बीजेपी को दिल्ली की सत्ता से दूर रखने के लिए इस्तेमाल किया था। पिछले दो दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर क्रमश 8 फीसदी और 4 फीसदी रहा है जबकि 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव, और लोकसभा चुनाव 2014, दिल्ली नगर निगम चुनाव और लोकसभा चुनाव 2019 में केजरीवाल की मौजूदगी में भी कांग्रेस 22 फीसदी वोट शेयर हासिल किया। कांग्रेस ने जानबूझकर दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 और 2020 में सुस्त रही ताकि बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जा सके, जिससे उसके 22 से 24 वोटर केजरीवाल के खाते में चल जाए और वैसा हुआ भी, जिसके हम सब साक्षी हैं।
बीजेपी के हाथ में सत्ता नहीं जाते नहीं देखना चाहती है कांग्रेस
यह हजम नहीं होने वाली बात है, लेकिन न चाहते हुए कांग्रेस ने ऐसा मजूबरन किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस बीजेपी के हाथ में सत्ता नहीं देना चाहती है और जहां भी उसे मौका मिलता है बीजेपी के हाथों से सत्ता छीनने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रही है। खंगालेंगे तो पाएंगे कि दिल्ली में कांग्रेस का अच्छा खासा जनाधार है और अगर वह मजबूती से चुनाव मैदान में उतरती तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में 10-15 सीटों पर कब्जा करने में सफल रहती, लेकिन कांग्रेस ने खुद को फाइट वाली स्थिति से दूर रखा, क्योंकि कांग्रेस जानती है कि वह अपने बूते पर दिल्ली में सरकार बनाने में सफल नहीं होगी।
दिल्ली के चुनावी कैंपेन में कांग्रेस पार्टी ने बिल्कुल नहीं दिखाई आक्रामकता
यही कारण था कि उसने न ही उसके चुनावी कैंपेन में आक्रामकता दिखी और न ही उसने सीएम कैंडीडेट की ही घोषणा की। कांग्रेस केवल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए योजनाबद्ध तरीके से दिल्ली के अपने लगभग 22-24 फीसदी वोटों को आम आदमी पार्टी की ओर शिफ्ट करवा दिया। 2015 दिल्ली विधानसभा में भी कांग्रेस ने यही एप्रोच इस्तेमाल किया था और कांग्रेस को महज 8 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ और पार्टी जीरो पर आउट हो गई थी, लेकिन कांग्रेस बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में कामयाब रही। 2015 में केजरीवाल एंड पार्टी को कांग्रेस के सुस्त रवैये से फायदा हुआ था और केजरीवाल कांग्रेस के एकमुश्त वोट पाकर 67 सीट जीतने में कामयाब रहे और बीजेपी 31 फीसदी वोट शेयर के बाद भी 3 सीटों पर सिमट गई।
बीजेपी कॉन्फिडेंट थी कि 48 सीट जीतकर दिल्ली की सत्ता में वापसी करेगी
कांग्रेस ने एक बार यही गेम प्लान दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में चला और एक बार फिर बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा जबकि बीजेपी कॉन्फिडेंट थी कि वह 48 सीट जीतकर 20 साल बाद दिल्ली की राजनीति वापस करेगी। इसका दावा दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ही नहीं, बल्कि पूर्व बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी किया था, जिन्हें बीजेपी का चाणक्य भी पुकारा जाता है। लेकिन कांग्रेसी दांव के आगे सब दावे फेल हो गए। कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में बिल्कुल न के बराबर कैंपेन किया, जिससे कांग्रेस का वोट शेयर इस बार गिरकर 8 फीसदी से 4.34 फीसदी पहुंच गया। कांग्रेस से छिटके सारे वोट केजरीवाल के खाते में गए, जिससे पार्टी भले ही पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी, लेकिन 70 में से 62 सीटें जीतने में कामयाब हुई।
दिल्ली में हमेशा कांग्रेस का औसतन 22-24% वोट शेयर हमेशा रहा है
दिल्ली नगर निगम ( एमसीडी और एनडीएमसी) चुनाव में दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस का वोट शेयर कुल 22 फीसदी था जबकि तीसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 18 फीसदी था, क्योंकि दिल्ली नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का चुनावी कैंपेन आक्रामक था, जिसके केजरीवाल एंड पार्टी तीसरे स्थान पर पहुंच गई थी। आम आदमी पार्टी यह हाल दिल्ली उप चुनाव में भी हुआ और लोकसभा चुनाव 2019 में देखा गया। लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों जीरों पर आउट हुईं, लेकिन आक्रामक चुनावी कैंपेन के साथ कांग्रेस 22 फीसदी वोट शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि आम आदमी पार्टी एक बार 18 फीसदी वोट शेयर तीसरे स्थान पर आई थी।
बीजेपी ने 45-50 सीट जीतकर आराम से सत्ता में काबिज हो सकती थी
माना जाता है कि अगर कांग्रेस आम आदमी पार्टी के खिलाफ कैंपेन करती तो उसके वोट बैंक कांग्रेस से दूर नहीं छिटकते, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होता और बीजेपी ने 45-50 सीट जीतकर सत्ता में आराम से काबिज हो जाती, जो कांग्रेस बिल्कुल नहीं चाहती थी। यही पैटर्न हरियाणा में दिखा था जब मनोहर लाल खट्टर वाली सरकार 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में बहुत से कुछ दूर रह गई थी और कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए जेजेपी को बिना शर्त समर्थन का ऑफर कर दिया था। हालांकि वहां कांग्रेस की दाल नहीं गली और बीजेपी ने जेजेपी के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही।
बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर करने में कामयाब हो चुकी है कांग्रेस
इससे पहले, कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एनडीए सहयोगी शिवसेना को तोड़कर बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर करने में कामयाब हो चुकी है। महाराष्ट्र में पिछले 30 वर्ष से सहयोगी रही शिवसेना को एनडीए से अलग करने में कांग्रेस को एनसीपी चीफ शऱद पवार का साथ मिला, जो क्रमशः दूसरे और तीसरे नंबर की पार्टी थी। मजे की बात यह है कि कांग्रेस महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी थी और आज महाराष्ट्र में सत्ता में काबिज है जबकि बीजेपी नंबर वन पार्टी होने के बाद भी महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर है। यह कांग्रेस का गेम प्लान है और कांग्रेस जहां भी ऐसी स्थिति में होगी, बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए सब कुछ गंवाने में चूक रही है।
आम आदमी पार्टी की सुखद राजनीतिक यात्रा के लिए शुभ संकेत नहीं
चूंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की हारजीत का फैसला पहले से ही कांग्रेस ने फिक्स रखा था, इसलिए नतीजे भी उसके अनुरूप ही आए हैं। अब केजरीवाल इसमें अपनी जीत देखकर खुश हो रहे हैं तो उनका खुश हो लेना चाहिए, लेकिन अगर यह खुशी पिछले विधानसभा चुनाव 2015 की तरह पांच साल तक चलती रही तो केजरीवाल ही नहीं, आम आदमी पार्टी की सुखद राजनीतिक यात्रा के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जाएगा। क्योंकि 2024 लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह किसी को नहीं मालूम है और केजरीवाल को इसका पता तब चलेगा जब कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में आक्रामक होकर उसे फाइट देगी। हालांकि इसका आभास केजरीवाल को दिल्ली नगर चुनाव और लोकसभा चुनाव 2019 में हो चुका है।
AAP को समर्थन देने का अंजाम कांग्रेस दिल्ली नहीं, पूरे देश में भुगत रही है
याद रखिए, दिल्ली विधान सभा चुनाव में भाजपा को हमेशा ही 34-38% तक वोट मिलता आया है, जो आज भी बरकरार है। उसमें एक भी वोट कम नहीं हुआ है। यह बात कांग्रेस अच्छी तरह से जानती है। यह बात कांग्रेस वर्ष 2013 विधानसभा चुनाव में ही समझ गई थी जब 24 फीसदी से अधिक वोट शेयर के साथ कांग्रेस के हाथ 8 सीट आई थी और उसने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए उस आम आदमी पार्टी को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया, जिस पार्टी का पूरा चुनावी कैंपेन कांग्रेस के खिलाफ था, लेकिन उसने यह जोखिम लिया। हालांकि उसका अंजाम कांग्रेस दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में अभी तक भुगत रही है, लेकिन अंततः वह बीजेपी को दूर रखने में कामयाब जरूर होती रही है।