नरेंद्र मोदी से सवाल पूछने का अनुभव इंटरव्यू करने वालों से जानिए
नरेंद्र मोदी से तीखा सवाल पूछने के बारे में क्या कहते हैं स्मिता प्रकाश, विजय त्रिवेदी, राजदीप सरदेसाई और नवदीप धालीवाल?
नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाले अधिकांश लोग एक बात पर एकमत हैं कि वो वाकपटु हैं.
लेकिन क्या वो मुश्किल सवालों का सामना भी वाकपटुता से कर लेते हैं? क्या वो हर तरह के मुश्किल, प्रासंगिक और दूसरे तरह के बाक़ी सवालों का जवाब देते हैं? या वो बस वही कहते हैं जो वो कहना चाहते हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 साल के हो गए हैं. उनके अब तक के राजनीतिक करियर के दौरान उनका इंटरव्यू लेना दुर्लभ रहा है. हाल के दिनों में मीडिया में चले कई इंटरव्यू में उनसे कड़े सवालों के नहीं पूछे जाने की आलोचना हुई.
प्रधानमंत्री के शीर्ष पद को संभालने के बाद से अब तक छह साल गुज़र चुके हैं और उन्होंने एक बार भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की. इसके लिए उनकी तीखी आलोचना की जाती है.
इसलिए हमने कुछ दिग्गज पत्रकारों से संपर्क करने का फ़ैसला किया, जिन्हें नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेने का अवसर प्राप्त हुआ है.
हमने बात की स्मिता प्रकाश, विजय त्रिवेदी, राजदीप सरदेसाई और नवदीप धारीवाल से. हमने उनसे ये पूछा कि इंटरव्यू के दौरान सबसे यादगार लम्हा कौन सा था. पढ़ें उन्होंने क्या कहा...
- 'ओबामा अंग्रेज़ी में मोदी को तू कैसे कहते होंगे'
- मोदी के इस इंटरव्यू को गै़र सियासी मान लेता अगर...
- ट्रंप बोले- मोदी बहुत अच्छी अंग्रेज़ी बोलते हैं
स्मिता प्रकाश
(एएनआई न्यूज़ एजेंसी)
मैंने नरेंद्र मोदी के दो इंटरव्यू किए हैं. पहला 2014 में, जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री थे और फिर उनके प्रधानमंत्री रहते जनवरी 2019 में जब लोकसभा चुनाव होने में पांच महीने बाक़ी थे.
मैं कहूंगी कि पहला इंटरव्यू अच्छा था क्योंकि 2014 से कुछ वर्ष पहले मैं गुजरात गई थी और उनका इंटरव्यू लेना चाहती थी. लेकिन तब ये नहीं हो पाया था. इसलिए 2014 में क्या होगा ये मुझे नहीं पता था. मैं ये भी सुन रखी थी कि पत्रकारों को लेकर उन्हें कुछ शंकाएं थीं.
लेकिन वो तो मिलनसार और बुद्धिमान व्यक्ति लगे. उन्होंने मुझसे नहीं कहा कि "ये या वो नहीं पूछना है." मैं तब सिंगापुर स्थित न्यूज़ चैनल, न्यूज़ एशिया के लिए काम कर रही थी और उसके लिए मुझे कुछ साउंड बाइट्स भी चाहिए थे.
मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि नरेंद्र मोदी विदेश नीति के बारे में बहुत कुछ जानते हैं. प्रधानमंत्री बनने से पहले लोगों ने सोचा था कि वो विदेश नीति के बारे में नौसिखिया हैं. साउंड बाइट्स में उन्होंने सिंगापुर के श्रोताओं को ध्यान में रख कर बातें कहीं.
मेरे लिए वो इंटरव्यू रेटिंग को लेकर नहीं था क्योंकि वो सब्सक्राइबर्स बेस्ड है. उसे सभी के लिए प्रासंगिक होना चाहिए था. मेरा लिया इंटरव्यू करण थापर की तरह का नहीं होगा. एक एजेंसी के रूप में, मुझे लंबे साउंड बाइट्स चाहिए थे जिसमें सब्सक्राइबर्स अपने इस्तेमाल के लिए काट-छांट सकते हैं.
आप नरेंद्र मोदी से अपनी समझ से एक असहज सवाल पूछते हैं और वो इसका जवाब भी देते हैं. लेकिन वो जवाब उसी तरह देंगे जैसा कि वो चाहते हैं.
इंटरव्यू से पहले और बाद में नरेंद्र मोदी में कोई बदलाव नहीं हुआ. उस दौरान उन्होंने पानी के पीए. एक लंबे इंटरव्यू के बाद भी उन पर थोड़ी भी थकावट नहीं दिखी. वो आपसे नहीं पूछेंगे कि आपने उनसे एक ही सवाल दो-तीन बार क्यों पूछे. इंटरव्यू के बाद वो सादगी से उठे और चले गए.
2014 के इंटरव्यू के बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया था. उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि इंटरव्यू सभी चैनलों पर साथ ही चलेगा.
विजय त्रिवेदी
(नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू एनडीटीवी इंडिया के लिए किया था, अब सत्य हिंदी से जुड़े हैं)
अप्रैल 2009 में, मुझे नरेंद्र मोदी का फ़ोन आया. उन्होंने मुझे अहमदाबाद बुलाया. उस वक़्त, 20 सालों से मेरे नरेंद्र मोदी से बहुत अच्छे ताल्लुकात थे.
जब दिल्ली में वो पार्टी के महासचिव थे, मैंने कई बार उनका इंटरव्यू किया था. हर दिवाली पर वो मुझे शुभकामना देते थे. वो बहुत अच्छे मेजबान थे. वो आपका ख़याल रखते.
सुबह का वक़्त था. अहमदाबाद से हम एक छोटे हेलिकॉप्टर में निकले थे. उसमें चार लोगों की जगह थी लेकिन अंदर हम पाँच लोग थे.
तब नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करना दिलचस्प हुआ करता था. वो बेहद मज़बूती और स्पष्टता के साथ अपने विचार व्यक्त करते.
कई नेता राजनीतिक रूप से सही बातें कहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी जो कहना चाहते वो ही कहते थे. उन्होंने साफ़-साफ़ कहा था कि आडवाणी को पीएम कैंडिडेट होना चाहिए जबकि उनके पार्टी के कई लोग स्टैंड लेने के लिए तैयार नहीं थे.
हम अमरेली जा रहे थे. मोदी जी ने कहा, "यह 45 मिनट की यात्रा है और वहां से 30 मिनट और सफ़र करना होगा. आप जब भी चाहें इंटरव्यू कर सकते हैं."
मैंने इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया और उसी दौरान मैंने उनसे पूछा कि क्या वो 2002 के दंगों के लिए माफी मांगेंगे.
नरेंद्र मोदी ने उल्टा सवाल दागाः क्या सोनिया गांधी से यह पूछने की हिम्मत है कि वो 1984 के दंगों के लिए माफ़ी मांगेंगी? मैंने उनसे कहा कि जब मैं सोनिया गांधी का इंटरव्यू करूंगा तो उनसे ये सवाल पूछूंगा.
मैंने फिर अपनी वही प्रश्न दोहराया. तो उन्होंने कहा कि उन्हें जो कहना था वो कह चुके हैं. मैं एक बार फिर उनसे पूछा. इस बार वो चुप रहे और उन्होंने कैमरे के आगे अपना हाथ रख दिया. इसके बाद वो मुझे नज़रअंदाज करते हुए अपना काम करने लगे.
बाद में वो खिड़की से बाहर देखने लगे. हेलिकॉप्टर की आवाज़ के बीच अंदर खामोशी बनी रही.
जब हम हेलिकॉप्टर से उतरे तो मोदी जी ने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और मुझसे बोले, "संभवतः यह हमारी आख़िरी बातचीत है."
जब मैं पहली रैली कवर करके वापस लौटा तो उनका हेलिकॉप्टर मुझे लिए बगैर वापस जा चुका था. उनके स्थानीय सहायक ने मुझे बताया कि मोदी जी ने मेरी वापसी की यात्रा के लिए कार की व्यवस्था की है. मैंने उसे लेने से इनकार कर दिया और ट्रैक्टर से वापस लौटा.
नरेंद्र मोदी ने इस इंटरव्यू को रोकने की कभी कोशिश नहीं की. हमने इसे पूरा चलाया. बल्कि मेरे एडिटर ने इसका एक प्रोमो भी बनाया. जिसमें कहा गया 'इंटरव्यू का मतलब मौन.' मुझे नहीं पता था कि यह इंटरव्यू इतना देखा जाएगा.
उस इंटरव्यू के बाद से आज तक नरेंद्र मोदी ने मुझसे कभी बात नहीं की. मैंने उनके इवेंट कवर किए, उनके अमरीकी दौरे पर गया, लेकिन केवल एक बार जब हम दोनों एक दूसरे के सामने आ गए तो उन्होंने मुझे सार्वजनिक रूप से अभिवादन किया.
आज, मेरे पास नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं है. कभी नहीं था. लेकिन आज भी उनसे किसी मोड़ पर मुलाक़ात होगी तो उनसे वहीं सवाल दोहराऊंगा.
राजदीप सरदेसाई
(नरेंद्र मोदी का एनडीटीवी, सीएनएन-आईबीएन के लिए इंटरव्यू किया, अब इंडिया टुडे ग्रुप में कंसल्टेंट एडिटर हैं)
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने कई बार उनका इंटरव्यू किया है. लेकिन सबसे यादगार सितंबर 2012 में उनका आख़िरी इंटरव्यू था. वो ग़ुस्से में और पत्रकारों के प्रति कुछ एहतियात बरतते दिख रहे थे. आकार पटेल ने उसे पत्रकारिता का सबसे अच्छा पीस बताया था.
उनका पहला इंटरव्यू 1990 में रथ यात्रा के दौरान किया था. उन्होंने सफ़ेद कुर्ता, पायजामा पहन रखा था. वो टीवी चैनलों से आने के पहले के दिन थे. मोदी एक मज़बूत और प्रभावी वक्ता के रूप में उभर रहे थे.
2001 में 9/11 हमले के तीन या चार दिन बाद हम आतंकवाद पर एक शो कर रहे थे और प्रमोद महाजन ने उसमें आने से इनकार कर दिया था क्योंकि वो सरकार में थे. मैं शास्त्री भवन में नरेंद्र मोदी से मिला और उन्होंने तुरंत डिबेट शो के लिए हां कर दी.
उन्होंने मुझसे कहा, अच्छा है आप इस विषय को ले रहे हैं. तब नरेंद्र भाई हमेशा उपलब्ध रहते थे. उनके पास हमेशा किसी भी सवाल का जवाब होता था. उन्होंने कभी ये नहीं पूछा कि शो में क्या सवाल पूछे जाएंगे. आज के इंटरव्यू उनके पीआर शो की तरह दिखते हैं. पीआर से पहले के दौर में नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेना बहुत अच्छा लगता था.
2002 के दंगों के दौरान जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने उनका इंटरव्यू किया और जब लौट कर दफ़्तर पहुंचा तो पाया कि टेप में ख़राबी आ गई है. तो हमें उसी दिन दोबारा 11 बजे रात में उनका इंटरव्यू करना पड़ा. उन्होंने दोबारा उन्हीं सवालों के जवाब दिए. क्या आप आज किसी भी नेता के साथ ऐसा करने के लिए सोच भी सकते हैं?
नवदीप धारीवाल
(नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लिया जब वो बीबीसी न्यूज़ के लिए काम करती थीं)
मैंने नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन के दौरान लिया. वो उस सम्मेलन को लेकर बहुत उत्साहित थे. वो एनआरआई समुदाय को संदेश देना चाहते थे कि गुजरात उनके निवेश के लिए बेहतरीन राज्य है.
वे इंटरव्यू के लिए पहुंचे, हमने हाथ मिलाए. हमने थोड़ी देर के लिए शिष्टाचार में बातचीत की और फिर सीधे इंटरव्यू शुरू किया. मैं उनसे उस शिखर सम्मेलन के साथ ही गुजरात दंगों के बारे में पूछना चाहती थी.
पत्रकारिता और संपादकीय दृष्टिकोण से यह सही था. मुझे लगा कि दुनिया भर में दर्शक इसके बारे में जानना चाहते हैं और मेरे लिए भी उनसे यह सवाल पूछने का पहला मौक़ा था.
मेरा सवाल था, "आप अपने उस राज्य में लोगों से निवेश करने को कह रहे हैं जहां हज़ारों मुसलमानों का नरसंहार किया गया है..." उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने मुद्दे पर ज़ोर डाला. फिर उन्होंने अपना माइक्रोफ़ोन निकाल दिया और इंटरव्यू से उठ कर चले गए.
उनका संदेश साफ़ था- मैं वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के लिए यहां आया हूं, अन्य किसी विषय पर बात नहीं करूंगा.