काजोल के बहाने जानिए, सदफ़ का यह मुश्किल संघर्ष
"जब मेरे पति गए उस दिन से मैं अपने बच्चों के लिए अचानक बाप बन गई जो बाहर के काम करे और सारी ज़रूरतें पूरी करे. इसी बीच मेरी छह साल की बेटी कब मेरे ढ़ाई साल के बेटे की मां बन गई मुझे पता ही नहीं चला. पहले दोनों कमाते थे. ख़ुशियां तो नहीं थीं, लेकिन घर-परिवार सही चल रहा था. उनके जाने के बाद जीवन में इस तरह की परेशानी आने लगी कि कई बार बच्चों को भूखा सोना पड़ा.'' बिना रुके सदफ़ एक सांस में अपनी कहानी सुनाना शुरू करती हैं.
''ऑफिस से आने के बाद अगर बच्चे सोते हुए मिलते थे तो लगता था, शुक्र हैं सो रहे हैं.
वैसे तो हर मां का एक अपना ही संघर्ष होता है, लेकिन फ़िलहाल सिंगल मां की कहानी एक बार फिर चर्चा में है.
काजोल की आने वाली फ़िल्म 'हेलिकॉप्टर ईला'. फ़िल्म में ईला का किरदार काजोल निभा रहीं हैं, जो एक सिंगल मदर बनी हैं. यह तो सिनेमाई पर्दे पर एक सिंगल मदर के संघर्ष की कहानी है, लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ही एक वास्तविक मां की कहानी.
लखनऊ की रहने वालीं सदफ़ जफ़र ऐसी ही सिंगल मदर हैं, जो दो बच्चों की मां हैं. उनकी शादी में काफ़ी परेशानी थी.
अपना अनुभव साझा करते हुए 42 साल की सदफ़ कहती हैं, "शादी के बाद हम किराए के मकान में रहते थे. वो शुरू से ही छोटी-छोटी बात पर मार-पीट करते थे. हमारी शादी आठ साल चली. इन आठ सालों में वो हमेशा ही मार-पीट करते रहे."
सदफ़ कहती हैं, ''एक दिन उन्होंने रात भर मुझे मारा और इससे तंग आकर मैंने आत्महत्या तक करने की कोशिश की. मैंने ग़ुस्से में नींद की गोलियां खा लीं, लेकिन ग़लती से वो गोलियां नींद की नहीं थीं, वो डिप्रेशन की थीं.''
''इस तरह मैं बच तो गई लेकिन दवाओं का साइड-इफेक्ट होना शुरू हो गया. उससे मैं बहुत ही चिड़चिड़ी और छोटी-छोटी बातों पर ग़ुस्सा करने लगी. मेरे इस बर्ताव से उन्हें मारने के और बहाने मिलने लगे और मारपीट बढ़ती गई.''
इतना होने के बाद भी रिश्ता तोड़ने की मैं हिम्मत नहीं जुटा पाई. एक दिन मेरे पति ख़ुद ही हम सब को अकेला छोड़ कर अपनी मां के पास चले गए.
उनका अचानक जाना पहले तो बहुत ख़ला और मुझे मारपीट की आदत-सी भी पड़ गई थी, लेकिन धीरे धीरे मैंने जीना सीख लिया.
"जब मेरे पति गए उस दिन से मैं अपने बच्चों के लिए अचानक बाप बन गई जो बाहर के काम करे और सारी ज़रूरतें पूरी करे. इसी बीच मेरी छह साल की बेटी कब मेरे ढ़ाई साल के बेटे की मां बन गई मुझे पता ही नहीं चला. पहले दोनों कमाते थे. ख़ुशियां तो नहीं थीं, लेकिन घर-परिवार सही चल रहा था. उनके जाने के बाद जीवन में इस तरह की परेशानी आने लगी कि कई बार बच्चों को भूखा सोना पड़ा.'' बिना रुके सदफ़ एक सांस में अपनी कहानी सुनाना शुरू करती हैं.
''ऑफिस से आने के बाद अगर बच्चे सोते हुए मिलते थे तो लगता था, शुक्र हैं सो रहे हैं. कम से कम अभी खाना तो नहीं मांगेंगे. मैं केवल नौ हज़ार ही कमाती थी और उसमें घर का किराया ही छह हज़ार था. ऐसे में घर का राशन, स्कूल की फीस, दवा और दूसरे खर्चे कहां से पूरे करती.''
सदफ़ के लिए ज़िंदगी इसलिए भी ज़्यादा कठिन थी, क्योंकि मायके में भी उनका साथ देने वाला कोई नहीं था. उनके पिता नहीं थे. मां अकेले रहती थीं. भाई कभी-कभार पैसे से मदद कर देता था. लेकिन उनका भी अपना परिवार था.
पति जब सदफ़ और बच्चों को अकेला छोड़ गया तो उस समय बेटा हुमैद अली केवल ढ़ाई साल का था. बेटी कोनेन फ़ातिमा छह साल की थी. आज बेटा 10 और बेटी 14 साल की हो गई है.
दोनों को अलग हुए 8 साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक तलाक़ नहीं हुआ.
इसलिए अटकी तलाक़ की प्रक्रिया...
सदफ़ नए आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, "मुस्लिमों में अगर महिला तलाक़ की पहल करती है तो उसे कुछ नहीं मिलता. मैं अपना तो छोड़ दूंगी, लेकिन वो अपने बच्चों को भी कुछ नहीं देना चाहते. इस वजह से अभी तक तलाक़ की प्रक्रिया चल रही है."
सदफ़ अब दिल और दिमाग़ से काफ़ी मजबूत हो चुकी हैं. खाने और पहनने की नहीं, अब वो केवल बच्चों की शिक्षा के बारे में सोचती हैं.
लेकिन सदफ़ को शिकायत देश की शिक्षा व्यवस्था से भी है.
बेटे के एडमिशन के वक़्त का एक वाक़या याद करते हुए सदफ़ कहती हैं, ''मुझे लखनऊ के टॉप स्कूल में कहा गया- सॉरी, हम सिंगल मदर्स के बच्चों को एडमिशन नहीं दे सकते. मैं रोती रही, उन्हें समझाती रही, मेरी शादी नहीं चली तो इसमें मेरे बच्चों की क्या ग़लती, पर उन्होंने एक न मानी."
हालांकि बाद में सदफ़ के बेटे को एक दूसरे अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया. और बाद में उसी स्कूल में सदफ़ को नौकरी भी मिल गई.
अब सदफ़ को सिंगल मदर होने पर कोई दुख नहीं है.
लेकिन वो मानती हैं कि समाज में अकेली मां होना बहुत दर्दनाक अनुभव है.
जब कभी सदफ़ को समाज से ताना मिलता है तो वो फ़िल्म स्टार गोविंदा का एक विज्ञापन याद करती हैं. उस विज्ञापन में दिखाया गया था कि गोविंदा से किसी को धक्का लग जाता है और वो कहता है कि भाई साहेब धक्का क्यों दे रहे हो तो गोविंदा कहते हैं कि मैं तो दे रहा हूं पर आप ले क्यों रहे हैं.
सदफ़ कहतीं हैं, "मुझे लगता है कि समाज जो भी ताने दे पर अब मैं भी उनको दिल पर नहीं लेती."
फ़िल्म में ईला अपने बेटे को कहीं अकेला नहीं छोड़ती. दोस्ती के चक्कर में रिश्ता भी बिगड़ने की कगार पर आ जाता है.
लेकिन सदफ़ का कहना है कि मैं अपने बच्चों को खुला छोड़ देना चाहती हूं. उन्हें ऐसा बनाना चाहती हूं कि वो अपने फ़ैसले ख़ुद ले सके.