पाकिस्तान में 'सरफरोशी की तमन्ना...' गाकर सोशल मीडिया पर वायरल हुई ये लड़की आखिर कौन है?
लाहौर। हाल ही में पाकिस्तान के लाहौर शहर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। इस वीडियो में एक लड़की नजर आ रही थी जो एक प्रोटेस्ट के दौरान बड़े ही जोश में 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...' गाती दिखाई दी। इस दौरान ये लड़की अकेली नहीं थी बल्कि छात्रों का एक ग्रुप भी उसके समर्थन में जमकर इन लाइनों को गाता दिखाई दिया। इस वीडियो के सामने आते ही ये सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। हर किसी की जुबान बस यही था कि आखिर लाहौर में राम प्रसाद 'बिस्मिल' की लिखी ये नज्म गाने वाली लड़की कौन है। यही नहीं पाकिस्तान के एक शहर में हिंदुस्तानी शायर बिस्मिल की नज्म यूं पढ़ना वहां के कुछ लोगों को बुरा भी लगा, कई लोगों ने सोशल मीडिया पर सवाल भी खड़े किए। बावजूद इसके ये लेदर जैकेट में नजर आ रही ये छात्र नेता सुर्खियों में जरूर आ गई। हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर लाहौर में बिस्मिल का लिखा 'सरफरोशी की तमन्ना...' गाने वाली ये छात्रा कौन है? बताते हैं आगे...
'सरफरोशी की तमन्ना' गाकर सोशल मीडिया पर छाई ये छात्रा
दरअसल, पाकिस्तान के लाहौर में 'सरफरोशी की तमन्ना' गाकर सोशल मीडिया पर छा जाने वाली इस लड़की का नाम अरूज औरंगजेब है। ये लाहौर के पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा है। उसका 'सरफरोशी की तमन्ना...' गाते हुए वीडियो 17 नवंबर का है, जब लाहौर में फैज फेस्टिवल हो रहा था। इसी दौरान वहां प्रोग्रेसिव स्टूडेंट फेडरेशन और प्रोग्रेसिग स्टूडेंट कलेक्टिव के छात्र एक साथ आ गए और उन्होंने जमकर नारेबाजी की। इस दौरान जिस छात्रा ने छात्रों के ग्रुप का नेतृत्व किया वो अरूज औरंगजेब ही थीं। आखिर उन्होंने छात्रों के साथ मिलकर यूं नारेबाजी क्यों की, उनका इसके पीछे उद्देश्य क्या था? इस सब मुद्दे News 18 ने अरूज से बात की। आइये जानते हैं उन्होंने क्या कहा...
शिक्षा के मुद्दे पर अरूज औरंगजेब ने संभाला मोर्चा
जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान के कॉलेज में फीस बढ़ोतरी, उत्पीड़न की घटनाएं और कैंपस से छात्रों की गिरफ्तारी जैसे मुद्दों पर अरूज और दूसरे छात्रों ने ये आवाज बुलंद की है। उनके इस तरह से नारेबाजी करने के पीछे जो मुख्य वजह है वो यही है कि पाकिस्तान में छात्रों को बेहतर शिक्षा और स्वतंत्र-निष्पक्ष शैक्षणिक माहौल मिले। इसी मुद्दे को लेकर छात्रों ने 29 नवंबर को 50 से अधिक पाकिस्तानी शहरों में एकजुटता मार्च निकालने की तैयारी की। पाकिस्तान में छात्र संघों की बहाली समेत दूसरी मांगों को लेकर अरूज समेत कई दूसरे छात्र-छात्राएं इस मार्च में शामिल होंगी। इसी मुद्दे पर अरूज ने News 18 से बात करते हुए अपने आंदोलन से जुड़े मुद्दों को सबके सामने रखा।
'सरफरोशी की तमन्ना' वायरल होने पर क्या बोलीं अरूज
News 18 से बातचीत में अरूज औरंगजेब ने बताया कि वो लाहौर की रहने वाली हैं। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से ही मास कम्यूनिकेशन में बैचलर डिग्री ली है। वो प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स कलेक्टिव, द फेमिनिस्ट कलेक्टिव और संगत नाम के संगठनों की सदस्य हैं। लाहौर में हुए फैज फेस्टिवल में उनके गाए 'सरफरोशी की तमन्ना' के जबरदस्त तरीके से वायरल होने के मुद्दे पर जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'मुझे ये उम्मीद नहीं थी ये इस तरह से वायरल होगा। मैंने तो नियमित तरीके से ही छात्रों को एकजुट करने के लिए ये काम किया। मुझे खुशी है कि इसके जरिए किसी तरह उन लोगों तक बात पहुंची, जो मानसिक गुलामी से बीमार और थके हुए हैं।
लाहौर यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं अरूज, छेड़ रखा है बड़ा आंदोलन
अरूज ने आगे कहा, 'लेकिन मैं सतर्क और सचेत भी हूं, क्योंकि अटेंशन मिलना कई मायनों में एक बोझ है। सच कहूं तो मेरे फोन में जगह नहीं है इसलिए मैंने ट्विटर और फेसबुक डाउनलोड नहीं किया है। जब वीडियो वायरल हुआ, तो हमने इसे छात्र एकजुटता मार्च की हमारी मांगों को और आगे बढ़ाने, साथ ही हमारी शिक्षा व्यवस्था में जरूरी बदलाव के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। निजी तौर पर कहूं तो जब मैं ये वीडियो देखती हूं, तो मुझे इसमें सामूहिकता की सुंदरता दिखाई देती है। जब मैं उन नारों को लगाती हूं, तो उस समय भी आवाज सिर्फ मेरी नहीं है।'
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अरूज ने खोला पाकिस्तान के शिक्षा-व्यवस्था की पोल
अरूज ने इस दौरान कहा, 'यहां मूलभूत समस्या यह है कि हमें उन मुद्दों के बारे में भी बात करने की अनुमति नहीं है जिनका हमें कैंपस में सामना करता पड़ता है। शिक्षा का आक्रामक रूप से निजीकरण किया जा रहा है, ट्यूशन और छात्रावास शुल्क हमारे देश के इतिहास में कभी भी इतना ज्यादा नहीं रहा है। महिलाओं को लगातार परेशान किया जाता है, शिक्षा की गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, लेकिन ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिसके साथ छात्र अपनी आवाज उठा सकें और बढ़ती समस्याओं का समाधान पा सकें। हमें किसी भी निर्णय लेने वाली गतिविधि में प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता। हमें कहीं भी ध्यान में नहीं रखा जाता।
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