कैसे अभिजीत बनर्जी के नोबेल पुरस्कार ने मछली और ढोकला खाने वालों के बीच लड़ाई शुरू की
नई दिल्ली। जब इस बात की घोषणा की गई कि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में दो अन्य लोगों के साथ भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार मिला है, तो पूरे देश में खुशी की लहर छा गई। ये देश के लिए गर्व का पल था। खासतौर पर बंगाली लोगों के लिए। वह ऐसे ट्वीट करने लगे जो अभिजीत को बंगाल से जुड़ा बता रहे थे।
बंगाल के लोग ये बताने से पीछे नहीं हट रहे थे कि इससे पहले भी पांच लोगों को नोबेल मिला था और वो भी कोलकाता से जुड़े थे। जल्द ही, फेसबुक और ट्विटर फीड पोस्टों से भर गए, जिन्होंने "बंगालियों की बौद्धिक श्रेष्ठता" की प्रशंसा की। बाकी सब चीजों की तरह, यह जल्द ही 'हम तुमसे बेहतर हैं' की प्रतियोगिता में बदल गया और भोजन तक आ पहुंचा।
मंगलवार को, अर्पणा नाम की एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने "ढोकला खाने वालों" या गुजरातियों के लिए एक पोस्ट की। उनके ट्वीट में दावा किया गया कि बंगाली गुजरातियों से बेहतर हैं। किस आधार पर? हम नहीं जानते।
माना जाता है कि बंगाली मछली खाने वाले होते हैं और गुजराती ढोकला खाने वाले होते हैं। बिना किसी तथ्य के ऐसी बातें बस मान ली जाती हैं। बिना किसी देरी के ट्विटर के इस युद्ध में गुजराती भी उतर आए। अपर्णा के ट्वीट का कई लोगों ने मजाक भी उड़ाया और कहा कि वह क्षेत्रीय आधार पर भेदभाव कर रही हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर कोई भी ट्वीट केवल ट्वीट ही नहीं रहता और जल्द ही ट्रेंड में बदल जाता है। जैसे मंगलवार को ढोलका और मछली शब्द ट्रैंड कर रहे थे।
बंगाली और गुजराती दोनों अपने-अपने खाने की वकालत कर रहे थे। जबकि कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस ड्रामे का लुत्फ उठा रहे थे।