जानिए, इस चुनाव में क्या पंजाब में बड़ा उलटफेर होने जा रहा है?
नई दिल्ली- पंजाब की सभी 13 सीटों पर 19 मई को एकसाथ वोट डाले जाएंगे। अगर 2014 से तुलना करें, तो इस चुनाव में राज्य का सियासी समीकरण और मुद्दे काफी बदले हुए नजर आ रहे हैं। मोदी लहर के बावजूद 2014 में एनडीए (NDA) को यहां बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी और मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली भी अमृतसर से चुनाव हार गए थे। उस समय आम आदमी पार्टी (AAP) की बढ़त ने राज्य का राजनीतिक गुणा-भाग बिगाड़ दिया था। लेकिन, पांच साल बाद आम आदमी पार्टी (AAP) राज्य में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, जबकि दो साल पहले राज्य की सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस का उत्साह सातवें आसमान पर नजर आ रहा है। लेकिन, एनडीए को नरेंद्र मोदी के नाम का सहारा है और वो उसी नाम पर बाजी पलटना का इरादा रखती है।
मतदाताओं का अंकगणित
2 करोड़ से ज्यादा वोटरों वाले पंजाब में इसबार 2.55 लाख से ज्यादा फर्स्ट टाइम वोटर (First Time Voter) मतदान में हिस्सा लेंगे। अगर डेमेग्राफी (Demography) के हिसाब से देखें तो पंजाब में कुल कुल 57. 69 फीसदी सिख, 38.59 फीसदी हिंदू, 1.9 फीसदी मुस्लिम और 1.3 ईसाई मतदाता हैं। राज्य के 22 जिलों में से 18 जिलों में सिख बहुसंख्यक हैं।
सीटों का ब्योरा
पंजाब की 13 में से 4 लोकसभा सीटें अनुसूचित जातियों (SC) के लिए सुरक्षित हैं। ये सीटें हैं- होशियारपुर (Hoshiarpur),फरीदकोट(Faridkot),फतेहगढ़ साहिब (Fatehgarh Saheb)और जालंधर (Jalandhar)। गौरतलब है कि राज्य में अनुसूचित जातियों (SC) की जनसंख्या 31.94 फीसदी से भी ज्यादा है। इनके अलावा पंजाब की सीटों में गुरदासपुर, अमृतसर (Amritsar), खदूर साहिब (Khadoor Sahib), आनंदपुर साहिब (Anandpur Sahib), लुधियाना (Ludhiana), फिरोजपुर (Firozpur), बठिंडा (Bathinda), संगरुर (Sangrur) और पटियाला (Patiala) शामिल हैं।
पिछले चुनावों में क्या रहे नतीजे?
2014 के चुनाव में पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) और शिरोमणि अकाली दल (SAD) दोनों ने ही राज्य की 4-4 सीटों पर कब्जा किया था। जबकि, कांग्रेस को 3 और भारतीय जनता पार्टी को दो सीटें मिली थीं। शिरोमणि अकाली दल (SAD) को 26.4 फीसदी, 'आप' (AAP) को 24.4 फीसदी, कांग्रेस को 33.2 फीसदी और भाजपा को 8.8 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन, 2017 के विधानसभा आते-आते राज्य की कहानी बदल गई। तब कांग्रेस ने 38.8 फीसदी वोट के साथ 117 में से 77 सीटें झटक ली थीं। वहीं 'आप' (AAP) का वोट शेयर घटकर 23.9 फीसदी रह गया और उसे 20 सीटें मिलीं। जबकि अकाली दल-भाजपा गठबंधन को कुल 30.8 फीसदी वोट मिल पाए और उनके खाते में सिर्फ 18 सीटें ही आ पाईं।
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दिग्गज उम्मीदवार
पंजाब में जो वीआईपी उम्मीदवार इसबार अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं, उनमें बीजेपी से केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Psuri), गुरदासपुर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बॉलीवुड स्टार सनी देओल (Sunny Deol), उसी सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और धाकड़ कांग्रेसी बलराम जाखड़ के बेटे सुनील जाखड़ (Sunil jakhar), संगरूर से 'आप' (AAP)के सांसद भगवंत मान (Bhagwant Mann), खदूर साहिब से शिरोमणि अकाली दल (SAD) की बीवी जागीर कौर (Bibi Jagir Kaur), आनंदपुर साहिब से कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी (Manish Tiwari) और शिरोमणि अकाली दल (SAD) के प्रेम सिंह चंदुमाजरा (Prem Singh Chandumajra),फिरोजपुर से शिरोमणि अकाली दल (SAD)के सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) और बठिंडा से केंद्रीय मंत्री एवं शिरोमणि अकाली दल (SAD) की हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) का नाम शामिल हैं।
पंजाब चुनाव में क्या हैं मुद्दे?
इस चुनाव में एनडीए (NDA) पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक को मुद्दा बना रही है। वह कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा के 1984 सिख दंगों को लेकर दिए गए बयान पर भी राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है। वह छोटे एवं मझोले किसानों के 2 लाख तक की कर्ज माफी के कांग्रेस के विधानसभा चुनाव में किए गए वादों को भी मुद्दा बना रही है। आरोप है कि कांग्रेस ने किसानों से वादाखिलाफ की। वहीं पंजाब में करतारपुर साहिब कॉरीडोर का मुद्दा भी बहुत प्रभावी होता लग रहा है। एनडीए और कांग्रेस दोनों इसे अपने हिसाब से पेश कर रही है। वहीं कांग्रेस रोजगार, किसान और काराबारियों की परेशानियों के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरना चाहती है। लेकिन, दो साल से सरकार में रहने के कारण यहां कांग्रेस के लिए सारा दोष केंद्र पर थोपना इतना आसान भी नहीं हो पा रहा है।
सीधे मुकाबले में किसको फायदा?
पंजाब में इसबार मुख्य मुकाबला कांग्रेस और एनडीए (NDA) गठबंधन के बीच ही नजर आ रहा है। दो साल पहले ही सत्ता में आई कांग्रेस फिलहाल यहां ड्राइविंग सीट पर दिख रही है, लेकिन, मोदी फैक्टर की मौजूदगी के कारण उसकी राह इतनी आसान भी नहीं है। हो सकता है कि कुछ सीटों पर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए इससे मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं। लेकिन, नरेंद्र मोदी की राह में यहां सबसे बड़ी बाधा उसकी सहयोगी एसएडी (SAD) ही है। यहां के सिख वोटरों में अभी भी पवित्र धर्मग्रंथ को अपवित्र करने को लेकर नाराजगी है और अकाली शासन में हुई पुलिस फायरिंग को लेकर उनमें अभी भी गुस्सा है। जहां तक आम आदमी पार्टी की बात है तो, सिर्फ उसके मौजूदा सांसद भगवंत मान ही मुकाबले में दिखाई पड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी को भरोसा है कि उसके तीनों प्रत्याशी जिन शहरी सीटों पर हैं, वहां हिंदू वोट और नरेंद्र मोदी के नाम पर वह पिछलीबार से अपना रिजल्ट ज्यादा बेहतर कर सकती है। लेकिन, जिस तरह से इसबार यहां बसपा (BSP) ने भी एनडीए और यूपीए से अलग गठबंधन पंजाब डेमोक्रेटिक एलायंस के तहत 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, उससे वह किसका नुकसान या किसका फायदा करेगी कहना मुश्किल है।