जानिये आज से 30 साल पहले कैसे शुरु हुई RTI के अस्तित्व की लड़ाई
जयपुर। आधुनिक भारत में देश के नागरिकों का सबसे बड़ा हथियार माने जाने वाले राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट की नींव एक बेहद ही साधारण से छोटे गांव में पड़ी थी। आररटीआई आंदोलन की शुरुआत राजस्थान के राजमसंद जिले के भीम तहसील के डूंगरी गांव में हुई थी।
डूंगरी गांव के निवासी सुर्ख लाल बोगनवेलिया के घर से ही तकरीबन 25 साल पहले आरटीआई आंदोलन की शुरुआत हुई थी। वहीं 68 वर्षीय चुन्नी मां इस आंदोलन की शुरुआत की जीती जागती गवाह हैं। चुन्नी मां बताती हैं कि तकरीबन 30 साल पहले जब अकाल के समय लोग मजदूरी करते थे तो उन्हे सिर्फ 11 रूपए की दिहाड़ी दी जाती थी। लेकिन उसमें से भी उन्हें महज चार या छह रुपए दिये जाते थे।
चुन्नी मां के अनुसार जब उन्हें उनकी मजदूरी पूरी नहीं मिलती थी तो उन्होंने इसकी शिकायत तहसील में की और उन्होंने मजदूरी में दिये जाने कम पैसे को लेने से मना कर दिया। कम मजदूरी के खिलाफ चुन्नी मां अकेले ही पांच-छह साल तक लड़ाई लड़ती रही।
लेकिन उनकी इस लड़ाई में उन्हें मजदूर किसान शक्ति संगठन की मदद मिली। उन्होंने सरपंच के खिलाफ आवाज उठायी और कहा कि सरपंच मजदूरों का पैसा खा रहा है कोई कुछ बोलेगा। चुन्नी मां की इस पुकार ने धीरे-धीरे कई गांवों में दस्तक दी। इसके बाद यह आवाज जयपुर के कई गांवों में पहुंची।
फिर 1996 में ब्यावर के चांग गेट के चौराहे पर लोग 40 दिनों तक धरने पर बैठे रहे। 53 दिनों तक चले इस आंदोलन के बाद दिल्ली में भी इसके समर्थन में प्रदर्शन होने लगे जिसके बाद सूचना का अधिकार आखिरकार अस्तित्व में आया। मजदूर किसान शक्ति संगठन का अब दफ्तर बन गया हैं लेकिन यहां किसी भी तरह का बोर्ड आज भी नहीं लगा है।