जानिए, महामारी के खिलाफ लड़ाई में अब तक कितना तैयार हो पाया है भारत, क्या कहते हैं आंकड़े?
नई दिल्ली। भारत उन गिनती के देशों में शामिल है, जहां अब तक 42 लाख से अधिक कोरोनावायरस संक्रमितों की टेस्टिंग की जा चुकी है और अब तक 24 घंटे में 150000 से 17000 मरीजों की टेस्टिंग की क्षमता को भी विकसित कर चुका है, जिनमें पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर का योगदान क्रमश 110000 और 60000 हैं। 24 फरवरी, 2020 की तुलना में भारत में अभी टेस्टिंग लैब की संख्या में भी तेजी से विस्तार हुआ हैं और वर्तमान में भारत में 710 टेस्टिंग लैब हैं, जिनमें पब्लिक और निजी लैब की संख्या क्रमश 498 और 112 हैं।
निः संदेह हरेक भारतीय के लिए यह गर्व का विषय है, लेकिन 135 करोड़ आबादी वाले भारत में पिछले 10 दिनों में पौराणिक राक्षसिन सुरसा की मुंह की तरह बढ़ता जा रहा कोरोनावायरस संक्रमण चिंता का विषय बन चुका है। गुरूवार को भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या में ऐतिहासिक उछाल देखा गया, जब महज 24 घंटे के भीतर 9, 304 नए मामले दर्ज किए गए और इसी दौरान पूरे भारत में एक दिन में रिकॉर्ड 260 लोगों की मौत की पुष्टि हुई।
COVID-19: यूपी में तेजी से बढ़ रहा कोरोना का प्रकोप, पिछले 24 घंटे में सामने आए 348 नए केस
गुरूवार को आकंड़े बेहद भय़ावह हैं, जिससे भारत में कोरोनावायरस मरीजों की संख्या बढ़कर 2,20,000 से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और मरने वालों की संख्या बढ़कर 6,348 हो गई है। अभी तक भारत में Covid-19 मरीजों की रिकवरी दर बेहतर थी, लेकिन गुरूवार को उसमें भी गिरावट दर्ज की गई है। फिलहाल, भारत में ठीक हुए मरीजों की संख्या 109961 हैं, लेकिन तेजी से संक्रमितों की बढ़ती संख्या रिकवरी दर में गिरावट का कारण बन रही हैं।
लॉकडाउन में टूटे उपभोक्ता, भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ी गिरावट की संभावना: RBI
गौरतलब है गुरूवार को भारत में ऐतिहासिक 9, 304 संक्रमितों के मामले सामने आए थे और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के आंकड़ों के अनुसार गुरूवार को 24 घंटों के भीतर में देश में कुल 130,000 से अधिक परीक्षण किए गए और पिछले दो महीने अंतराल में अब तक पूरे देश में कुल 42,42,718 लोगों के परीक्षण किए जा चुके हैं। ICMR के मुताबिक भारत में शुरूआती दौर से अब तक टेस्टिंग की दर में 100 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है।
215 देशों में से सिर्फ 52 देशों ने आबादी के अनुपात में कम टेस्ट किया
विडंबना यह है कि पूरी दुनिया में मौजूद 215 देशों में से सिर्फ 52 ही ऐसे हैं, जिन्होंने आबादी के अनुपात में कम लोगों को टेस्ट किया है, उनमें से भारत भी हैं, जहां की आबादी 135 करोड़ से अधिक हैं। हालांकि पूरी दुनिया में कोरोनावायरस का सर्वाधिक असर शहरी क्षेत्रों में अधिक पाया गया है, कमोबेश यही स्थिति भारत में भी है। प्रति 10 लाख आबादी में परीक्षण के संदर्भ में देखा जाए तो भारत मई के अंतिम सप्ताह तक के लगभग 2,000 परीक्षण कर रहा है, जो स्पेन (लगभग 65,000), संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी (लगभग 38,000) और फ्रांस (लगभग 21,000) की तुलना में काफी कम हैं।
भारत में श्रमिक स्पेशनल ट्रेनों की शुरूआत के बाद तेजी से बढ़े मामले
भारत में श्रमिक स्पेशनल ट्रेनों की शुरूआत के बाद मामलों में तेजी से बढ़ते गए हैं, जब विभिन्न शहरों में लॉकडाउन के कारण फंसे प्रवासियों को उनके घरों में पहुंचाने के लिए रेलवे ने राज्य सरकारों की सहमति के बाद चलाने की मंजूरी दी। आंकड़े गवाह है कि गत 1 मई के बाद भारत में कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी होनी शुरू हुई है, यह वह समय था जब बंद अर्थव्यवस्था को चालू करने के लिए लॉकडाउन में छूट की शुरूआत हुई थी।
1 मई से 4 जून के बीच भारत में संक्रमित मरीजों के संख्या में भारी उछाल
1 मई से गुरूवार 4 मई के कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों के संख्या में भारी उछाल आया हैं। भारत में मिले कोरोनावायरस के पहले मामले से संक्रमित मरीजों की संख्या को 1 लाख तक पहुंचने में जहां 109 दिन लगे, वहीं, 2 लाख संक्रमितों की संख्या तक पहुंचने में महज 15 दिन का समय लगा। महज 9 दिन में ही भारत में संक्रमितों की संख्या 1 लाख से बढ़कर 1.5 लाख पहुंच गई थी। पिछले 10 दिनों का आंकड़ा देखेंगे तो हर दिन भारत 8,000 से अधकि नए मामले सामने आ रहे हैं।
भारत में तेजी से बढ़ते संक्रमण के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं?
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत में तेजी से बढ़ते संक्रमण के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। एक बार यह आसानी से कहा जा सकता है कि भारत में संक्रमितों की संख्या में तेजी का कारण टेस्टिंग और लैब क्षमता में हुई वृद्धि है। ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं, इसलिए मामले अधिक तेजी से सामने आ रहे हैं, लेकिन आंकड़ों पर गौर करने पर पता चलता है कि भारत में नए मामलों में तेजी प्रवासियों के लिए चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से घर पहुंचे लोगों से अधिक फैला है।
लॉकडाउन का उपयोग देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचा बढ़ाया गया
देश में लॉकडाउन के पीछे के उद्देश्य को समझाते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि लॉकडाउन की अवधि का उपयोग देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में किया गया और इस दौरान महामारी से लड़ने के लिए देश में करीब 3,027 विशेष अस्पताल और 7,013 देखभाल केंद्र तैयार किए गए। इस दौरान केंद्र सरकार ने 65.0 लाख व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और 101.07 लाख एन 95 मास्क राज्यों को आपूर्ति की है। करीब तीन-तीन लाख पीपीई और एन 95 मास्क का प्रतिदिन घरेलू उत्पादक विनिर्माण कर रहे हैं, जिसका पहले देश में उत्पादन नहीं होता था।
लॉकडाउन 4.0 के पहले शहरों तक सीमित रहा जानलेवा कोरोनावायरस
क्योंकि लॉकडाउन 4.0 के पहले शहरों तक सीमित रहा कोरोनावायरस अब तेजी से गांवों और रिमोट एरिया में पांव पसार चुके हैं या पसार रहे हैं, जहां शुरूआती चरण से लेकर करीब दो महीने तक एक्का-दुक्का मामले ही नजर आए थे। यह स्थिति भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में देखी गई है। केंद्र की मोदी सरकार ने शुरूआती दौर में देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर बीमारी पर नियंत्रण के लिए सख़्त क़दम उठाया है, लेकिन घनी आबादी वाले मुंबई और दिल्ली की हालत किसी से छिपी नहीीं, जहां सोशल डिस्टेंसिंग और रोकथाम के दूसरे उपायों में अनुशासन आशाजनक नहीं रहे हैं।
लॉकडाउन में देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को बढ़ाया गया
देश में लॉकडाउन के पीछे के उद्देश्य को समझाते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि लॉकडाउन की अवधि का उपयोग देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में किया गया और इस दौरान महामारी से लड़ने के लिए देश में करीब 3,027 विशेष अस्पताल और 7,013 देखभाल केंद्र तैयार किए गए। इस दौरान केंद्र सरकार ने 65.0 लाख व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और 101.07 लाख एन 95 मास्क राज्यों को आपूर्ति की है। करीब तीन-तीन लाख पीपीई और एन 95 मास्क का प्रतिदिन घरेलू उत्पादक विनिर्माण कर रहे हैं, जिसका पहले देश में उत्पादन नहीं होता था।
Covid-19 की तरह 1918 में स्पेनिश फ्लू महामारी ने हाहाकार मचाया था
ध्यान देने वाली बात यह है कि Covid-19 की तरह जब 1918 में स्पेनिश फ्लू की महामारी ने दुनिया में हाहाकार मचाया था तो उस समय भी आज की तरह चिकित्सा विज्ञान उसके रोकथाम के लिए लाचार था। उस समय अंग्रेजों का बुबोनिक प्लेग से निपटने के लिए बनाया गया महामारी रोग कानून 1897 कोरोनावायर की लड़ाई में कारगर हथियार बनकर उभरा है।
खतरनाक वायरस से बचाव के लिए एकमात्र विकल्प है सोशल डिस्टेंसिंग
चूंकि जब तक कोरोनावायरस के खिलाफ संघर्षरत वैज्ञानिक कोई वैक्सीन नहीं तैयार कर लेते हैं तब इस खतरनाक वायरस से बचाव के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में पूरे विश्व में सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सुरक्षा उपाय अमल में लाए जा रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन 4.0 के बाद अनलॉक-1 के बीच वायरस की घातकता को समझने के बाद भी जैसी लापरवाही बरती जा रही है, वह देश को महामारी के खतरनाक स्तर तक पहुंचाने के लिए काफी हैं।
सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सुरक्षा उपायों को अमलीजामा पहुंचाता है कानून
अग्रेजों के काल में भारत में बने एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 महामारी के खिलाफ सोशल डिस्टेंसिंग जैसे सुरक्षा उपायों को अमलीजामा पहुंचाने का कानून है, जिसका उपयोग अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र भारत में वर्ष 2018 में गुजरात में हैजा रोकने, 2015 में चण्डीगढ़ में डेंगू के नियंत्रण, 2009 में पुणे में स्वाइन फ्लू रोकने के लिए और मौजूदा दौर में कोरोना वायरस की महामारी रोकने के लिए अब तक किया जा रहा है और लॉकडाउन 4.0 पहले तक इसी कानून के डंडे ने भारत के संक्रमण दर को थाम रखा था।