जानिए, अपने ही चक्रव्यूह में कैसे फंस चुकी है कांग्रेस?
नई दिल्ली- कांग्रेस की चुनावी रणनीति को देखकर लगता है कि वह बड़ी उलझन में है। वह रोजगार और किसानों से जुड़े मुद्दों को तो उठाती है, लेकिन खुद ही बीजेपी को वो हथियार थमा बैठती है,जिसमें बीजेपी का मुकाबला करना उसके लिए बहुत ही मुश्किल है। राजनीति की थोड़ी भी समझ रखने वाला व्यक्ति समझ सकता है कि राष्ट्रवाद, देशभक्ति और पाकिस्तान जैसे मुद्दे बीजेपी के लिए फायदेमंद होते हैं। लेकिन, कांग्रेस जनता से जुड़े मुद्दों पर पार्टी को घेरने की बजाय उसी का मुद्दा भड़काकर खुद अपना हाथ जला बैठती है। कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए यह बड़ी चिंता की बात इसलिए है कि ऐसी हरकत पार्टी का कोई छुटभैया नेता नहीं कर रहा, बल्कि चुनावी मौसम में कुछ दिनों के भीतर ही राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर उनके बेहद करीब लोग भी इसमे शामिल हो गए हैं।
कांग्रेस खुद ही मुद्दे से भटकने लगी
पुलवामा आतंकी हमले के बाद से जैश ए मोहम्मद और उसके सरगना मौलाना मसूद अजहर के खिलाफ देश का गुस्सा चरम पर है। बालाकोट में उसके सबसे बड़े आतंकी कैंप पर हुए भारतीय वायुसेना के एयरस्ट्राइक को लेकर भी देश में एक गर्व का माहौल बना है। ऐसे में ओवरसीज कांग्रेस के चीफ सैम पित्रोदा का भारतीय एयरफोर्स की कार्रवाई की सफलता पर किसी तरह का संदेह जताना कांग्रेस को बहुत भारी पड़ सकता है। उन्होंने 26/11 के मुंबई हमले को लेकर भी जो बयान दिया है, वह भी उनके देशहित को लेकर समझ पर सवाल खड़े करता है। परिणाम यह हुआ है कि अब कांग्रेस प्रवक्ताओं को घूम-घूम कर यह सफाई देनी पड़ रही है कि पित्रोदा ने जो कुछ भी कहा, अपनी निजी हैसियत से कहा है और बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश न करे।
पित्रोदा से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी आतंकी हमले और उसके मास्टरमाइंड को लेकर देश में मौजूद राष्ट्र भावना की संवेदनशीलता को समझने से चूक गए थे। जब संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में चीन को छोड़कर बाकी सारे देश मौलाना मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने का प्रयास कर रहे थे, लगभग उसी दौरान एक चुनावी रैली में राहुल ने उस कुख्यात आतंकी को 'मसूद अजहर जी' कहकर संबोधित किया था। पार्टी में एक और चर्चित दिग्गज हैं दिग्विजय सिंह। ऐसे मामलों में विवादित बयान देकर वह पहले भी कई बार पार्टी की मिट्टी पलीद करवा चुके हैं। इसबार फिर से उन्होंने पुलवामा जैसी भयंकर आतंकी वारदात को दुर्घटना कहकर बड़े विवाद को जन्म दे दिया था। गौरतलब है कि उनकी इन्हीं आदतों की वजह से पार्टी ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान एक तरह से उनकी बयानबाजी पर अंकुश लगा रखा था।
अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को इतना भी पता नहीं है कि इस तरह की गलतियों की चुनावी राजनीति में बहुत कड़ी सजा भी मिल सकती है, तो शायद उनसे भयंकर भूल हो रही है। क्योंकि, बीजेपी जो चाहती है, कांग्रेस के नेता खुद ही वैसा माहौल भी तैयार कर रहे हैं।
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राष्ट्रवाद है बीजेपी का एजेंडा
पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए आतंकी हमले के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुख से जाहिर हो गया था कि अब आतंकवाद के खिलाफ कारगर लड़ाई बीजेपी का बहुत बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। 12 दिन के अंदर ही बालाकोट में एयरस्ट्राइक करके मोदी सरकार ने पाकिस्तान समेत सारी दुनिया को भारत का इरादा जता दिया और भारत में होने वाले आम चुनाव की पटकथा भी लिख दी। बीजेपी सरकार को मालूम था कि जनता के दबाव में विपक्ष खासकर कांग्रेस कुछ दिन भले ही चुप रह जाय, लेकिन देर सवेर गलती करेगी ही। वही हुआ भी। एयरस्ट्राइक में मारे गए आतंकियों की संख्या पूछी जाने लगी। बीजेपी को वो मुद्दा भी मिल गया, जिसका उसे इंतजार था। जितना जोर से कोई सवाल पूछा गया, बीजेपी को उतना ज्यादा हमलवार होने का मौका मिलता गया। मोदी सरकार जैसा चाहती थी, चुनाव का वैसा एजेंडा सेट हो गया। आतंकवाद और उसके खिलाफ भारत का ऐक्शन इस चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
कांग्रेस की गलतियों से बीजेपी को फायदा
जिस बात को समझने में कांग्रेस नेता अभी तक गलती करते जा रहे हैं, बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद हुए कई ओपनियन पोल ने उसकी सच्चाई सामने रख दी है। टाइम्स नाउ-वीएमआर के सबसे हालिया सर्वे के मुताबिक एयरस्ट्राइक के बाद लोकसभा चुनाव में एनडीए को 283 सीटें मिलने के आसार हैं। गौरतलब है कि इससे पिछले सर्वे में एनडीए को बहुमत से 21 सीटें दूर दिखाया गया था,जो जनवरी में हुआ था। वहीं इंडिया टीवी-सीएनएक्स के मुताबिक एयरस्ट्राइक के बाद एनडीए को कम से कम 30 सीटों का फायदा मिल सकता है। इस सर्वे की मानें तो मोदी सरकार की ओर से आतंक के खिलाफ एक्शन के बाद एनडीए को देश में कुल 285 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि एयरस्ट्राइक से पहले यह संख्या सिर्फ 255 ही दर्ज की गई थी। ऐसा ओपनियन पोल देश के अलग-अलग राज्यों के लिए भी हुआ है और सबमें बीजेपी फायदे में है। लेकिन, शायद कांग्रेस देश की जनता के मूड को समझने के लिए कत्तई तैयार नहीं है।