कर्नाटक उपचुनाव में जानिए कैसे मिली भाजपा को जीत?
कर्नाटक उपचुनाव में भाजपा ने 12 सीटों पर जीत हासिल कर चार महीने पुरानी सरकार बचा ली। जानिए आखिर कर्नाटक वोटरों ने दलबदलुओं को सज़ा के बजाय इनाम क्यों दिया?
बेंगलुरु। कनार्टक में बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली सरकार के लिए अग्नि परीक्षा के रूप में देखे जा रहे राज्य विधानसभा की 15 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा की शानदार जीत ने कांग्रेस और अन्य दलों का सफाया कर दिया। कनार्टक में मिली जीत एक तरफ जहां भाजपा के मनोबल को और मजबूत किया वहीं कर्नाटक में चार महीने पुरानी येदियुरप्पा सरकार को नया जीवन दान मिला हैं। इतना ही नहीं इस चुनाव में भाजपा में शामिल हुए दलबदलुओं को मिली जीत ने यह साबित कर दिया कि राजनीति अनिश्चित्ताओं का खेल है।
बता दें एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के पतन के बाद येदियुरप्पा ने इस वर्ष 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इन उपचुनावों में येदियुरप्पा को अपनी सरकार के लिए साधारण बहुमत हासिल करने के लिए कम से कम छह सीटों की जरूरत थी। भाजपा ने उपचुनाव में बड़ी सफलता हासिल कर राज्य में स्थायी बहुमत वाली सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर लिया है।
यह उपचुनाव कनार्टक विधानसभा के 15 अयोग्य विधायकों के राजनीतिक भाग्य के लिए भी निणार्यक था। जिनमें बीजेपी 12 सीट, कांग्रेस 2 और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी जीत चुके हैं, जबकि जेडीएस का खाता भी नहीं खुला। उपचुनाव में भारी जीत के बाद सीएम येदियुरप्पा ने कहा, 'मैं खुश हूं कि इतना अच्छा जनाधार मिला, अब बिना किसी दिक्कत के हम राज्य में एक स्थायी और जनहितकारी सरकार दे सकते हैं।'इतना ही नहीं उन्होंने जीतने वाले 12 प्रत्याशियों में से 11 को कैबिनेट मंत्री बनाने की बात भी कह डाली।
आम तौर पर उपचुनावों पर कोई भी पार्टी ज्यादा फोकस नहीं करती है लेकिन पिछले दिनों कर्नाटक में जिस तरीके से सियासी उठापटक हुई और येदियुरप्पा सरकार बनी, उसके बाद इन उपचुनावों पर सबकी नजर टिकी हुई थी। येदियुरप्पा और भाजपा ने कांग्रेस और जेडीएस से टूट कर आए विधायकों पर जिस विश्वास से उपचुनाव में दांव लगाया था और जिसमें वह कामयाब हुई। कर्नाटक उपचुनाव में कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हुए दलबलुओं की जीत ने यह साबित कर दिया है वोटर यह नहीं देखता कि कौन नेता कितना ईमानदार या बेईमान हैं, या फिर वह अपनी पार्टी के लिए कितना वफादार है?
दलबदलुओं को वोटर ने जीत का इनाम क्यों दिया
इस चुनाव परिणाम आश्चर्यचकित करने वाले हैं क्योंकि 15 सीटों पर जहाँ 2018 में विधानसभा चुनाव यानी आज से केवल डेढ़ साल पहले कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के उम्मीदवार जीते थे, उनमें से इस बार 12 में बीजेपी जीत चुकी है। गौरतलब है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डी के शिवकुमार ने कांग्रेस की इस चुनाव में हार स्वीकारतें हुए कहा कि इससे पता चलता है जनता ने दलबदलुओं को स्वीकार कर लिया है। जिस दलबदल को नैतिक दृष्टि से बुरा समझा जाता है, वह भारतीय वोटर, ख़ासकर कर्नाटक के वोटर की दृष्टि में बुरा नहीं है? ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आखिर वो कौन से कारण जिनकी वजह से जनता ने अपनी पार्टी को दगा देकर भाजपा में शामिल हुए दलबदलुओं को जीत का इनाम क्यों दिया ?
दलबदलुओं की निजी लोकप्रियता
आमतौर पर देखा जाता है कि हर चुनाव में वोटर पार्टी के आधार पर वोट करता हैं। लेकिन कर्नाटक में जिन 12 सीटों पर भाजपा को विजयी मिली उससे साफ पता चलता है कि यह सफलता दलबदलू नेताओं की जीत हैं। हर चुनाव क्षेत्र में अधिकांश वोटर पार्टी के आधार पर वोट देते हैं, जिन्हें पार्टी का ईमानदार वोटर माना जाता है। लेकिन कुछ वोट उम्मीदवार की निजी लोकप्रियता के कारण भी पड़ते हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव में जो उम्मीदवारों को वोट मिले पार्टी की अपेक्षा उनकी निजी लोकप्रियता के कारण मिले। यही कारण था कि भाजपा ने इस चुनाव में इन्हीं अन्य पार्टियों से आए दलबदलू नेताओं को ही टिकट दे कर मैदान में उतारा था। भाजपा को इनकी निजी लोकप्रियता के कारण ही उनकी जीत का पूरा भरोसा था। सीधे तौर पर कहे तो इस उपचुनाव में चुनाव में बीजेपी ने वही उम्मीदवार उतारा जिन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी में रहकर जीत हासिल की थी। इन दलबदलुओं को वो भी वोट मिल गए जो पिछले चुनाव में कांग्रेस के खाते में गए थे।
भाजपा की बढ़ी लोकप्रियता ने दिखाया कमाल
वहीं भाजपा की जीत का दूसरा कारण दलबदलू उम्मीदवार को जो अतिरिक्त वोट मिले हैं,वे उसे उसकी निजी लोकप्रियता के कारण नहीं बल्कि केन्द सरकार द्वारा लिए गए फैसलों के कारण भाजपा की बढ़ी हुई लोकप्रियता के कारण मिले हैं। बता दें कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी लेकिन महज चंद सीटों की कमी के कारण सरकार बनाने में पिछड़ गयी थी। तब कांग्रेस और जेडीएस ने फायदा उठाकर मिलकर सरकार बना ली थी और सबसे कम सीटें पाने वाली पार्टी जेडीएस के कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए थे। माना जा रहा है कि अस्थायी सरकार का डर और कांग्रेस द्वारा सरकार बनाने के लिए कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाए जाने या मिलीजुली सरकार का काम पसंद न आया हो और इस कारण बीजेपी का वोट शेयर इस बार पहले से ज़्यादा बढ़ गया हो।
वोटर को नजर आया ये हित
इन चुनाव क्षेत्रों के वोटरों को यह पहले से यह भरोसा है, दलबदलू उम्मीदवार अगर जीत गए तो मौजूदा बीजेपी सरकार में वह महत्वपूर्ण पद हासिल करेंगे। कुछ ऐसा ही संकेत उपचुनाव में मिली जीत के बाद कर्नाटक सीएम येदियुरप्पा ने भी दे चुके हैं। इतना ही नहीं इन नेताओं ने सरकार में अच्छी पोजीशन की खातिर ही तो उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया था। जनता को पता है कि सरकार में बेहतर पद के दम पर ही वह उनके इलाक़े के लिए काम कर पाएँगे। अपने इस हित या स्वार्थ को देखते हुए ही कुछ वोटरों ने जिन्होंने पहले कांग्रेस या जेडीएस को वोट दिया था, वे इस बार बीजेपी में शामिल हुए दलबदलू उम्मीदवार के साथ आ गए और इस कारण उसके और बीजेपी के हिस्से के वोट बढ़ गए हों।
ये जो पब्लिक है सब जानती है
इन परिणामों से यही समझ आ रहा है कि आज का वोटर यह नहीं देखता कि कौन नेता कितना ईमानदार या बेईमान है या वह अपनी पार्टी के प्रति कितना वफ़ादार है। वह केवल यह देखता है कि क्या वह उसका काम करा पाने की स्थिति में है या नहीं। वोटर को भी पता है कि राजनीति में सब थाली के बैगन है, जो अवसरवादी रानजीति करते हैं। इसलिए वोटर ने भी उम्मीदवार चुनने के अपने मापदंड में से ईमानदारी और नैतिकता की अनिवार्यता को हटा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा चुनाव लड़ने की दी थी इजाजत
गौरतलब है कि ये सभी बागी विधायक जो कांग्रेस-जेडीएस को छोड़कर बीजेपी में आए थे, इन लोगों ने पिछले वर्ष 14 नवंबर को सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा का दामन थाम लिया था जिसमें 13 विधायक कांग्रेस के थे और 3 जेडीएस और एक निर्दलीय विधायक थे। विधानसभा अध्यक्ष्य के आर रमेश कुमार ने 25 और 28 जुलाई को इन विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को अपने फैसले में इनकी अयोग्यता बरकरार रखते हुए इन्हें दोबारा चुनाव लड़ने की इजाजत दी थी। चुनावी मैदान में 13 वो हैं जो आयोग्य करार दिए गए थे जिन्हें भाजपा ने उपचुनाव में टिकट देकर चुनाव लड़वाया।
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