Samajwadi Party ने क्यों किया बिहार चुनाव ना लड़ने का फैसला? इन आंकड़ों से समझिए बिहार में सपा की पॉलिटिक्स
नई दिल्ली। बिहार में चुनाव की तैयारियों में जुटे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और आरजेडी (RJD) के लिए यूपी से एक अच्छी खबर आई है। उत्तर प्रदेश के प्रमुख सियासी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को समर्थन देने का ऐलान किया है। खास बात यह है कि समाजवादी पार्टी इस समर्थन के बदले कोई सीट बंटवारे जैसी मांग भी नहीं रखेगी क्योंकि पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है। समाजवादी पार्टी ने सोमवार देर रात ट्वीट कर ये जानकारी दी कि पार्टी बिहार में गठबंधन नहीं कर रही है। सपा विधानसभा चुनावों में आरजेडी उम्मीदवारों का समर्थन करेगी।
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सपा का ऐलान महागठबंधन के लिए खुशखबरी
निर्वाचन आयोग कभी भी बिहार में विधानसभा चुनाव की तिथियों का ऐलान कर सकता है। उम्मीद है कि अक्टूबर में राज्य में चुनाव कराए जा सकते हैं। इस समय सभी दल अपनी-अपनी चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं। चुनाव में मुख्य मुकाबला नीतीश के नेतृत्व में सत्तारूढ़ एनडीए और महागठबंधन के बीच है। एनडीए में जेडीयू, बीजेपी, लोजपा के साथ ही जीतन राम मांझी की हम प्रमुख पार्टी है वहीं महागठबंधन में लालू यादव की आरजेडी, कांग्रेस, रालोसपा जैसी पार्टियां प्रमुख हैं।
चुनावी सरगर्मियों के चलते महागठबंधन में कांग्रेस, आरजेडी और अन्य पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर बैठकों का दौर जारी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी की तरफ से समर्थन का ऐलान न सिर्फ आरजेडी बल्कि महागठबंधन के घटक दलों के लिए भी अच्छी खबर है।
2015 में महागठबंधन को दिया था सपा ने झटका
समाजवादी पार्टी भले ही बिहार में बहुत प्रभाव वाली पार्टी न हो लेकिन पार्टी फिर भी कोर वोट के जरिए पार्टी महागठबंधन को फायदा जरूर पहुंचा सकती है। यहां ये बात याद रखनी होगी कि यही समाजवादी पार्टी है जिसने 2015 के चुनाव में महागठबंधन को झटका दे दिया था। 2015 में सपा पहले महागठबंधन में शामिल हुई लेकिन चुनाव के पहले पार्टी ने खुद को महागठबंधन से अलग कर लिया था। हालांकि उस बार की सपा में अंतर ये है कि तब पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव हुआ करते थे जबकि अब पार्टी की बागडोर उनके बेटे युवा नेता अखिलेश यादव के हाथ में है। इस बार अखिलेश यादव ने पहले ही पार्टी को किसी भी गठबंधन का हिस्सा न बनाते हुए आरजेडी को समर्थन का ऐलान कर दिया है।
बिहार में आरजेडी के सबसे करीब है ये समीकरण
सपा चुनाव तो नहीं लड़ेगी ये क्लियर हो गया लेकिन अभी भी आपके मन में ये सवाल तो जरूर होगा कि सपा बिहार में चुनाव लड़ती भी तो कितना असर होता। पार्टी आखिर किस वोट बैंक में सेंध लगाती ? किसे फायदा कराती और किसे नुकसान होता ? ये सब सवाल उठना जितना आसान है उतने ही इनके जवाब मुश्किल। ये तो कोई भी नहीं बता सकता कि जनता जनार्दन के मन में क्या है और किसे उसका आशीर्वाद मिलेगा लेकिन राजनीति में आंकड़े और पिछले परिणामों के आधार पर ये तो पता लगाया ही जा सकता है कि पार्टी का कोर वोट बैंक क्या है और कहां दांव लगने जा रहा है।
बिहार की राजनीति की बात करें तो सबसे प्रमुख समीकरण मुस्लिम-यादव वोटों का समीकरण है जिसे आप बार-बार एमवाई के नाम से सुनते हैं। एमवाई वोट बिहार में 30 प्रतिशत हैं और ये आरजेडी का खास वोट बैंक है। अभी तक के चुनाव नतीजे तो यही बताते हैं। इनमें मुस्लिम मतदाता 16 प्रतिशत हैं और यादव हैं 14 प्रतिशत। यादवों के आरजेडी के साथ होने की खास वजह है कि पार्टी के मुखिया लालू प्रसाद खुद यादव हैं।
आरजेडी और सपा की राजनीतिक स्टैंड एक जैसा
अब जरा चुनाव में वोटिंग पैटर्न के नजरिए से देखने की कोशिश कीजिए तो बिहार के राजनीतिक गणित में जो स्थिति राष्ट्रीय जनता दल की है उत्तर प्रदेश की सियासत में वही स्थिति समाजवादी पार्टी की है। सपा का भी बेस वोट एमवाई ही है। लालू यादव अगर बिहार में यादवों के सर्वमान्य नेता बनकर खड़े हुए तो मुलायम सिंह यादव की साख इस मामले में पीछे नहीं रही। लालू ने जहां आडवाणी की रथयात्रा को रोककर मुस्लिम वोटरों में अपनी पैठ को और मजबूत किया तो अयोध्या में गोलीकांड के चलते मुलायम को विरोधियों ने मुल्ला मुलायम तक कह दिया। लेकिन इससे मुलायम ने सपा के साथ मुस्लिम वोटरों को खड़ा कर दिया। यही वजह है कि बिहार के यादव और मुस्लिम मतदाता मुलायम और अखिलेश के लिए सम्मान रखते हैं लेकिन जब बात वोट देने की आएगी तो मतदाताओं के पास प्रदेश की पहचान से जुड़ा मुद्दा जरूर सामने आएगा कि जब दोनों का स्टैंड एक ही है तो क्यों न अपने ही प्रदेश के नेता के साथ रहा जाय।
अब तक बिहार में कैसा रहा सपा का प्रदर्शन
बिहार में अगर बाहरी पार्टियों के प्रदर्शन की बात करें तो ये अब तक कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा पहले तो महागठबंधन में शामिल हुई थी लेकिन बाद में हट गई। पार्टी ने 135 सीटों पर अपने पार्टी उतारे थे लेकिन एक भी सीट पर खाता नहीं खुल सका। बिहार में सपा का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन 2005 में रहा था जब पार्टी ने 142 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। तब पार्टी को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन इसके बाद 2010 और 2015 में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल सकी। यही वजह है कि पार्टी मुखिया ने इस बार पार्टी की ताकत झोकने के बजाय आरजेडी को समर्थन देने में ही बुद्धिमानी समझी है। इससे पार्टी अपने कोर वोटर को आरजेडी के पक्ष में ट्रांसफर कराने का दावा तो कर ही सकती है।
2015 में आरजेडी को मिला था यादव मतदाताओं का साथ
सपा ने जब बिहार में चुनाव न लड़ने का फैसला किया होगा तो उसने 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर जरूर गौर किया होगा। सपा जिस वोट बैंक के भरोसे अपनी राजनीति करती है उस वर्ग ने 2015 के चुनावों में आरजेडी का जमकर साथ दिया था। 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश की 243 सदस्यीय विधानसभा में 61 यादव विधायक चुने गए थे। इनमें राष्ट्रीय जनता दल के सबसे ज्यादा 42, जेडीयू के 11, कांग्रेस के दो जबकि एनडीए की प्रमुख पार्टी भाजपा से 6 यादव विधायक चुने गए थे। यानि कि यादव प्रत्याशियों पर सबसे ज्यादा दांव आरजेडी ने लगाया तो यादवों ने भी वोट के रूप में अपना आशीर्वाद आरजेडी को दिया। यहां ये जरूर याद रखिए कि नीतीश अब भले एनडीए के साथ हैं लेकिन 2015 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन में रहकर ही लड़ा था। यानि कि जेडीयू के 11 यादव विधायकों पर भी आरजेडी का प्रभाव जरूर रहा होगा।
मुस्लिम समीकरण में भी यही रहा था हाल
आरजेडी के साथ यादव मतदाताओं का जुड़ाव तो एक वजह रही ही होगी सपा के चुनाव न लड़ने की। मुस्लिम वोटर्स का पैटर्न भी आरजेडी के साथ ही नजर आ रहा है। बिहार में मुस्लिम मतदाता लगभग 16 प्रतिशत हैं। अगर 2015 के चुनाव नतीजों की बात करें तो विभिन्न दलों से 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे। यादव (61) और अनुसूचित जाति (38) के बात ये तीसरी सबसे बड़ी संख्या थी। इनमें राष्ट्रीय जनता दल से 12, जदयू से पांच, कांग्रेस से छह और सीपीआईएमएल से 1 मुस्लिम विधायक चुने गए थे। वहीं एनडीए से एक भी मुस्लिम विधायक विधायक चुनकर विधानसभा नहीं पहुंचा। एनडीए ने 10 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इनमें से एक भी नहीं जीत सका। इससे ये भी पता चलता है कि मुस्लिम मतदाताओं ने महागठबंधन के पक्ष में ही अपना समर्थन दिया था।
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