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जानिए अमृता प्रीतम को जिनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने अपना डूडल किया उनके नाम

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नई दिल्ली। अमृता प्रीतम का नाम खुद में ही एक परिचय है। अमृता प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार, निबंधकार और 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री भी थी। आज उनकी 100वीं जयंती है। उनका जन्म 31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने एक बहुत ही प्यारा सा डूडल उन्हें समर्पित किया है।

अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम का बचपन लाहौर में बीता, शिक्षा भी वहीं हुई। बहुत कम उम्र से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। उनकी प्रतिभा आगे और निखरती ही गई। भारत-पाक विभाजन के समय वह गर्भवती थीं। उन्हें 1947 में लाहौर छोड़कर भारत आना पड़ा था और बंटवारे पर लिखी उनकी कविता 'अज्ज आखां वारिस शाह नूँ' सरहद के दोनों ओर उजड़े लोगों की टीस को एक सा बयां करती है जो यह बताती है कि दर्द की कोई सरहद नहीं होती।

अमृता प्रीतम की बात जब आती है तो उसके साथ गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी और चित्रकार इमरोज़ की भी बातें होती हैं। अमृता और साहिर का रिश्ता ताउम्र चला लेकिन किसी अंजाम तक न पहुंच न सका। इसी बीच अमृता की जिंदगी में चित्रकार इमरोज़ आए। दोनों ताउम्र साथ रहे लेकिन समाज के कायदों के अनुसार कभी शादी नहीं की। लेकिन इससे अलग अमृता की असल पहचान उनकी कलम से निकली स्त्री मन को बेहद खूबसूरती से टटोलते हुए उसके संवेदनाओं के तल तक पहुँच जाने की थी। उनकी ही लिखी एक उपन्यास पिंजर है जिसमें उन्होंने लिखा है "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुँच गई तो समझना कि पूरो की आत्मा ठिकाने पहुँच गई", यह भी विभाजन और साम्प्रदायिकता से उपजे टीस की अभिव्यक्ति है जो उनके चिंतन के मूल में हमेशा ही रही है। अमृता की ही लिखी एक कविता 'मेरा पता' है, जिसकी अभिव्यक्ति में भी बंधनों से आजादी है।

अमृता प्रीतम

आज मैंने
अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
- समझना वह मेरा घर है।

उन्होंने कुल मिलाकर लगभग सौ से ज्यादा किताबें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता उन साहित्यकारों में थीं जिनकी लिखी किताबों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चूका है और भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी।

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English summary
Know Amrita Pritam on whose 100th birth anniversary Google dedicated his doodle
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