COVID-19: सीरम इंस्टीट्यूट के बारे में सबकुछ जानिए, जहां जाने वाले हैं पीएम मोदी
नई दिल्ली। पूरा विश्व कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई से जूझ रहा है। ऐसे में सभी की उम्मीद कोविड-19 को लेकर आने वाली वैक्सीन पर टिकी हुई है। दुनिया भर के देशों के वैज्ञानिक और दवा कंपनियां इस महामारी के खिलाफ टीका विकसित करने के काम में लगे हुए हैं। इनमें कई कंपनियों के टीकों के नतीजे काफी सकारात्मक आए हैं। ऐसी ही कम्पनियों में प्रमुख कंपनी भारत स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया है जो कोविशील्ड नाम की वैक्सीन के ऊपर काम कर रही है। कंपनी कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीन के महत्वपूर्ण चरण में हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 28 नवम्बर को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जाने वाले हैं जहां वह वैक्सीन की प्रगति का जायजा लेंगे। ऐसी माना जा रहा है इस दिन वैक्सीन को लेकर कोई बड़ी घोषणा हो सकती है।
तस्वीर- कंपनी के संस्थापक सायरस पूनावाला बेटे अदार पूनावाला के साथ
1966 में पड़ी थी कंपनी की नींव
दुनिया भर में वैक्सीन की सप्लाई करने वाली सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोरोना के खिलाफ वैक्सीन को लेकर पूरी ताकत से काम में जुटी है। इसके लिए एस्टाजेंका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ वैक्सीन के विकास और निर्माण को लेकर करार किया है। साथ ही कुछ दूसरी कंपनियों के साथ ही कंपनी इस वैक्सीन पर काम कर रही है। आइए पहले जानते हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट क्यों इतना खास है कि प्रधानमंत्री यहां का दौरा करने जा रहे हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट की स्थापना की कहानी कम दिलचस्प नहीं है। 54 साल पहले एक घोड़ों का फॉर्म चलाने वाले पारसी बिजनेसमैन सायरस पूनावाला ने सस्ती दवाओं के निर्माण के लिए कुछ डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों को साथ जोड़ा और एंटी टिटनेस टीके पर काम शुरू किया। टीका तैयार हुआ तो सफलता के साथ ही इसकी खास बात इसका सस्ता होना था जिसे हाथों हाथ लिया गया। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की स्थापना की यही कहानी थी। इसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कंपनी ने अपनी नीति में हमेशा इस बात को रखा कि उसे सिर्फ दवा नहीं बेचनी है बल्कि ऐसी दवा बेचनी है जिससे आम लोगों तक उसकी दवा तक पहुंच हो। ऐसा कीमतों को कम रखकर ही किया जा सकता था। कंपनी ने ये काम किया वो भी बिना दवा की गुणवत्ता से कोई समझौता किए। यही वजह है कि सीरम इंस्टीट्यूट के मुकाबले में विदेशी दवा कंपनियां नहीं ठहर पातीं क्योंकि उनकी लागत और सीरम इंस्टीट्यूट की कीमतों में बड़ा अंतर आता है।
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कोविड-19 के लिए सिर्फ एक वैक्सीन के सहारे नहीं
कोविड-19 महामारी के आने के समय ही कंपनी के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा था कि वैक्सीन के विकास के लिए अगर सीरम इंस्टीट्यूट आगे नहीं आएगी तो कौन आएगा ? यही नहीं कंपनी भले की एस्ट्राजेंका और ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर काम कर रही है लेकिन उसने सिर्फ एक ही कंपनी पर दांव नहीं लगाया है।
कंपनी इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रही है साथ ही दूसरी कंपनियों से टीके बनाने के अधिकार और टेक्नॉलॉजी हासिल करने पर भी काम चल रहा है। महामारी को देखते हुए सीरम इंस्टीट्यूट ने 30 करोड़ डॉलर की रकम और अनुसंधान और दवाओं के उत्पादन के लिए निवेश की है। कंपनी ने एस्ट्राजेंका-ऑक्सफोर्ड से 1 अरब टीके सप्लाई करने का अनुबंध किया है वहीं अमेरिका की एक नौवावैक्स को दो अरब कोविड वैक्सीन के डोज देने का करार किया है। कंपनी ने बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ भी समझौता किया है। इसके तहत फाउंडेशन को 20 करोड़ टीकों की डोज दी जाएगी।
दुनिया की सबसे बड़ी दवा कंपनी
एक टीके के निर्माण से शुरू हुई कंपनी आज 54 वर्षों के बाद पूरी दुनिया में दवा की खुराक के उत्पादन और उन्हें बाजार में बेचने के हिसाब से विश्व में सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। कंपनी की रेंज का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके 26 टीकों को दुनिया में बेचने के लिए अनुमति दी है। दुनिया की किसी भी कंपनी के इतने टीकों को अनुमति नहीं मिली हुई है।
मानवता के लिए जब भी कंपनी की जरूरत पड़ी है तब कंपनी अपनी पूरी ताकत के साथ आगे आई है और पूरी दुनिया में अपनी दवाओं और टीकों की डोज भेजी है। कंपनी 170 देशों को अपने यहां निर्मित वैक्सीन की डोज भेजती है। जानकारी के मुताबिक कंपनी अब तक 30 अरब वैक्सीन की डोज दुनिया भर में सप्लाई कर चुकी है। वर्तमान में कंपनी प्रत्येक वर्ष 1.5 अरब डोज तैयार करती है। कंपनी जिन बीमारियों के लिए डोज तैयार करती है उनमें पोलियो, फ्लू, हेपिटाइटिस, रुबेला, टिटनस और चेचक जैसी बड़ी बीमारियों की वैक्सीन शामिल है।
जब कंपनी ने अफ्रीका के लिए बनाई सस्ती दवा
जहां दूसरी दिग्गज कंपनियां सिर्फ मुनाफे पर काम करती रहीं वहीं सीरम ने मानवता को काफी ऊपरी पायदान पर रखा। इसका सबसे ताजा उदाहरण मेनएफ्रिवैक नामक वैक्सीन थी जिसे अफ्रीका में मेनिंजाइटिस ए नामक बीमारी से लड़ाई के लिए तैयार किया गया था। अफ्रीका रेतीले इलाके में रहने वाले लोग लंबे समय से मेनिजाइटिस नामक बीमारी का कहर झेल रहे थे। इसके वायरस रेतीले तूफान के साथ उड़कर आते थे और लोगों के फेफड़े पर हमले करते थे। 1997-98 में इसके शिकार 25 हजार लोगों की मौत हुई थी।
इसके लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने सीरम से टीका बनाने के लिए कहा। दरअसल कुछ कंपनियों के पास टेक्नॉलॉजी तो थी लेकिन वे जहां भी जाते थे उनसे एक टीके के लिए 4 डॉलर की कीमत मांगी जा रही थी। अफ्रीका के गरीब देश इस कीमत पर टीका नहीं खरीद सकते थे। एजेंसियों ने सीरम को बताया कि टीका की कीमत ऐसी होनी चाहिए जो 50 सेंट के आस-पास ठहरती हो। सीरम ने इस पर काम शुरू किए और 2010 में एनएफ्रिवैक को तैयार कर दिया। टीके ने पहुंचते ही असर दिखाया और लोग इस बीमारी से ठीक होने लगे। 2015 तक अफ्रीका में 23 करोड़ से अधिक लोगों को मेनएफ्रिवैक टीका दिया जा चुका था।
वैक्सीन किंग के नाम से जाने जाते हैं पूनावाला
सीरम इंस्टीट्यूट ने अब भारत के बाहर भी अपनी पैठ जमा ली है। कंपनी ने 2012 और 2017 में दो यूरोपीय कंपनियों का अधिग्रहण कर चुकी है। इनमें नीदरलैंड की बिल्थोवन बॉयोलॉजिकल और चेक रिपब्लिक की कंपनी शामिल है। वैक्सीन किंग के नाम से मशहूर सायरस पूनावाला की कुल संपत्ति फोर्ब्स के मुताबित 11.4 अरब डॉलर है और वे दुनिया के 165वें सबसे अमीर शख्स हैं। फोर्ब्स के मुताबिक भारत में अमीरों की लिस्ट में साइप्रस छठें नंबर पर हैं। वहीं हुरुन रिसर्च की जून में आई रिपोर्ट के मुताबिक पूनावाला की संपत्ति कोरोना काल में 25 प्रतिशत बढ़ी है और वे अमीरों की लिस्ट में 86वें नंबर पर पहुंच गए हैं।
कंपनी के संस्थापक सायरस पूनावाला को आम और गरीब लोगों तक दवा पहुंचाने के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत के राष्ट्रपति ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था जो कि नागरिक श्रेणी में दिया जाने वाला देश का चौथा बड़ा सम्मान है।