जानिए, दिल्ली-मुंबई में कोरोना के नए मामलों में गिरावट का राज़? क्या इसके पीछे है हर्ड इम्यूनिटी?
बेंगलुरू। भारत में कोरोनावायरस महामारी अपनी चरमता की ओर बढ़ चुकी है। रोजाना 60000 से 62000 से अधिक नए मरीजों की पुष्टि करते हैं। 24 मार्च को शुरूआती दौर में भारत में लॉकडाउन लागू करने की घोषणा के बाद भारत को शुरूआती लाभ जरूर मिला था, लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया, भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या में वृद्धि होती चली गई,लेकिन पिछले महीने में सर्वाधिक प्रभावित दिल्ली और महाराष्ट्र में नए मामलो में कमी आई है।
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पहले नए मामलों में कमी के लिए कम टेस्टिंग को दोषी ठहराया गया
एक तरफ जहां पूरा विश्व महामारी संकट से जूझ रहा था, तो भारत में नए मामलों की संख्या में सामान्य वृद्धि के लिए टेस्टिंग की कमी को दोषी ठहराया गया और अब जब भारत में कोरोना संक्रमण में तेजी आई है तो भी टेस्टिंग में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि संक्रमण के मामलों में वृद्धि के बीच एक ऐसा दौर शुरू होता है, जिसे हर्ड इम्यूनिटी कहा जाता है, जिसमें संक्रमित व्यक्तियों में वायरस से लड़ने के खिलाफ एंटीबॉडीज खुद तैयार होने लगता है।
दिल्ली के करीब एक तिहाई लोग इम्युनिटी हासिल कर चुके हैंः केजरीवाल
इसकी तस्दीक जुलाई महीने में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान से किया जा सकता है जब वो कहते हैं कि देश की राजधानी के करीब एक तिहाई लोग इम्युनिटी हासिल कर चुके हैं। यानी जो दिल्ली कुछ हफ्ते पहले कोरोना की जबर्दस्त चपेट में थी, वहां हर्ड इम्युनिटी विकसित होने से कोरोना के मामलों में कमी आई है। दिल्ली के एक तिहाई लोगों में हर्ड इम्यूनटी यानी कोरोना प्रूफ होने की ओर बढ़ने को आधार बना कर सीएम केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो सेवा को दोबारा शुरू करने का बयान जारी कर दिया।
11 जिलों में करवाए गए सीरो सर्वे के आधार पर केजरीवाल ने दावा किया
दरअसल, दिल्ली के सभी 11 जिलों में करवाए गए सीरो सर्वे के आधार पर केजरीवाल ने दावा किया कि दिल्ली के 24 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस के प्रति ऐंटी-बॉडी मिली हैं। सीरी सर्व गत 27 जून से 10 जुलाई के बीच करवाया गया था। इससे यह पता चलता है कि एंटीबॉडी कम से कम 15 दिन पहले तैयार हो गई होंगी। सर्वे के मुताबिक दिल्ली की यह तस्वीर 10 जून की थी। इस आधार पर दिल्ली में हर्ड इम्यूनिटी का आंकड़ा 30 से 35 फीसदी पहुंच गया होगा।
केजरीवाल ने दावा किया कि दिल्ली हर्ड इम्युनिटी की ओर बढ़ रही है
सीरो सर्वे को आधार बनाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दावा किया कि दिल्ली हर्ड इम्युनिटी की ओर बढ़ रही है, जिसका अर्थ है कि मोटे तौर पर दिल्ली के 60-70 लाख लोग कोरोना के संपर्क में आकर अपने आप ठीक हो गए। इसकी पुष्टि एम्स से भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा विकसित कोवाक्सिन वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के दौरान भी हुई।
एम्स में वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के लिए पहुंचे 20 % में मिली एंटीबॉडी
एम्स में वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के लिए पहुंचे 20 फीसदी में मिली एंटीबॉडी से भी होती है, जिन्हें ह्यूमन ट्रायल से इसलिए बाहर कर दिया गया, क्योंकि उनके शऱीर में नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है और ऐसे लोगों को ट्रायल में शामिल नहीं किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ट्रायल में शामिल 20 फीसदी वालंटियर्स में एंटीबॉडी मौजूद था। यानी ह्यूमन ट्रायल के लिए चुने गए हर पांच वालंटियर्स में से 1 वालंटियर्स में रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद थी।
दिल्ली में हर्ड इम्यूनिटी से 60-70 लाख लोग खुद ब खुद ठीक हो गएः रिपोर्ट
तो समझा जा सकता है कि अगर दिल्ली में हर्ड इम्यूनिटी से 60-70 लाख लोग खुद ब खुद ठीक हो सकते हैं, तो अन्य प्रदेशों में भी हर्ड इम्यूनिटी की संभावना पैदा हुई होगी, जहां लोगों बिना लक्षणों वाले कोरोना संक्रमित होकर स्वस्थ हो चुके होंगे। यह महाराष्ट्र जैसे सर्वाधिक कोरोना प्रभावित राज्य में तेजी से घटे कोरोना मरीजों की संख्या से समझा जा सकता है, जहां अब नए मामलों में गिरावट दर्ज हो रही है। आखिर क्या है हर्ड इम्यूनिटी और कैसे यह संक्रमित मरीजों संक्रमण मुक्ति में बिना इलाज सहायक होता है?
सबसे ज्यादा प्रभावित शहर दिल्ली और मुंबई में हालात सुधरते रहे हैं
कोरोना वायरस से दो सबसे ज्यादा प्रभावित शहर दिल्ली और मुंबई में हालात सुधरते नजर आ रहे हैं, जिसमें हर्ड इम्यूटी की भूमिका को जोर-शोर से रेखांकित किया गया है। सीरो सर्वे में पता चला कि मुंबई की झुग्गियों में रहने वाले 57 फीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडीज हैं। यानी वो बिना बीमार हुए कोरोना से ठीक हो चुके हैं। यही बात दिल्ली में भी सीरो सर्वे में आए नतीजों के आधार पर हर्ड इम्युनिटी विकसित होने की बात कही गई।
हर्ड इम्यूनिटी संक्रामक बीमारी की एक अवस्था को कहा जाता है
हर्ड इम्यूनिटी किसी मेडिकल प्रक्रिया का नाम नहीं है, यह संक्रामक बीमारी की एक अवस्था को कहा जाता है जब आबादी का एक निश्चित हिस्सा वायरस के प्रति खुद ब खदु इम्यूनिटी विकसित तैयार कर लेता है। आमतौर पर हर्ड इम्यूनिटी शब्द वैक्सीनेशन के संदर्भ में यूज किया जाता है, लेकिन हर्ड इम्यूनिटी तब भी हासिल हो सकती है जबकि पर्याप्त संख्या में लोग इन्फेक्टेड होने के बाद इम्यून हुए हों।
एक निश्चित आबादी इम्यून हो जाए तो वो दूसरों को संक्रमित नहीं कर पाएंगे
कोरोना से हर्ड इम्यूनिटी के मुताबिक अगर एक निश्चित आबादी इम्यून हो जाए तो वो लोग किसी और को संक्रमित नहीं कर पाएंगे। इससे कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चेन टूट जाएगी। हालांकि 'द लांसे' में छपी एक ताजा रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना मुश्किल है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है क्या हर्ड इम्यूनिटी को कोरोना से लड़ाई के तरीके के रूप में देखा जा सकता है?
संक्रमण को रोकने के लिए 'हर्ड इम्युनिटी' पर निर्भर नहीं रहा जा सकता: रिपोर्ट
हालांकि देश में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते प्रकोप के बीच सरकार का मानना है कि देश में संक्रमण को रोकने के लिए 'हर्ड इम्युनिटी' पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। इस बारे में बात करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि कोरोना वायरस को हराने के लिए देश को पूरी तरह वैक्सीन पर निर्भर रहना होगा। एक अधिकारी ने कहा, हर्ड इम्युनिटी किसी बीमारी से अप्रत्यक्ष सुरक्षा है। यह आबादी को बीमारी से बचा लेती है, लेकिन यह तभी होती है जब कोई वैक्सीन बन जाए या अधिकतर लोग बीमार होकर ठीक हो जाएं।
वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होने में करीब 6-7 महीने लग जाएंगे
दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता पिछले कई महीनों से कोरोनावायरस का एंटी डोज बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक उसमें सफलता नहीं मिली है। कुछ शोधार्थी वैज्ञानिक मानव पर परीक्षण के स्टेज पर पहुंच चुके हैं, लेकिन सब कुछ ठीक भी रहा, वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होने में करीब 6-7 महीने लग जाएंगे। यानी कि वैक्सीन विकसित होने पर भी उसके उपयोग में आने तक दिसंबर, 2020 तक इंतजार करना होगा और तब तक महामारी से बचने के लिए सुझाए गए सुरक्षा उपायों के अनुपालन से ही अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी बचाए रखनी होगी, फिर चाहे वह आपके परिवार के सदस्य हों अथवा आम नागरिक।