कर्नाटक चुनाव: सिद्धारमैया से येदुरप्पा तक को ABCD पढ़ा चुके हैं Kingmaker देवगौड़ा, पढ़ें पूरा प्रोफाइल
सिद्धारमैया से येदुरप्पा तक ABCD पढ़ा चुके हैं Kingmaker देवगौड़ा
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। 12 मई को हुए मतदान के बाद कई चैनलों और एजेंसियों के एग्जिट पोल्स में कांग्रेस-बीजेपी की सीटों में अंतर जरूर है, लेकिन सभी अनुमानों में जनता दल-सेक्युलर (जेडी-एस) ताकवर बनकर उभरती दिख रही है। या यूं कहें कि सत्ता की चाबी इसी दल के हाथों में दिख रही है। एग्जिट पोल्स की बात करें तो करीब 8 अनुमानों में जेडी-एस को औसतन 26 सीटें मिलती दिख रही हैं। एग्जिट पोल्स में दी गईं अधिकतम सीटों की बात करें तो जेडी-एस को 35 से 43 सीटें मिल सकती हैं। किंगमेकर बनकर उभरी जेडी-एस को करीब लाने के लिए कांग्रेस ने दलित सीएम के नाम का दांव चल बीजेपी को नतीजे आने से पहले ही मुश्किल में डाल दिया है।
सिर्फ पीएम बनना नहीं, देवगौड़ा की एकमात्र उपलब्धि
दूसरी ओर जेडी-एस के शीर्ष नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी का ट्रैक रिकॉर्ड भी कांग्रेस-बीजेपी के लिए कम चिंता की बात नहीं है। ये दोनों पिता-पुत्र किंगमेकर और किंग दोनों की भूमिकाओं को निभाने में माहिर हैं। अब देवगौड़ को ही ले लीजिए, किसने सोचा था कि इतनी छोटी सी पार्टी का नेता प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो सकता है, लेकिन उन्होंने यह कर दिखाया।
किंगमेकर की भूमिका में माहिर हैं देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी
ऐसा नहीं है कि देवगौड़ा के जीवन की एकमात्र उपलब्धि देश का पीएम बन जाना है। प्रधानमंत्री का पद जाने के 7 साल बाद 2004 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव हुए थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी, जिसके पास 79 सीटें थीं। दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी, जिसे 65 सीटें मिली थीं, लेकिन तीसरे नंबर की पार्टी जेडी-एस 20 या 30 नहीं बल्कि 58 सीटें जीतकर आई थी। उस वक्त जेडी-एस ने कांग्रेस को मजबूर कर दिया था, जिसकी वजह से एन धरम सिंह को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा, जबकि पार्टी एसएम कृष्णा को सीएम बनाना चाहती थी।
कांग्रेस ही नहीं, बीजेपी को भी नाकों चने चबवा चुके हैं देवगौड़ा
जेडी-एस की कहानी सिर्फ कांग्रेस पर दबाव बनाने तक सीमित नहीं है। ये राजनीतिक किस्सा अभी और रोचक मोड़ लिए हुए है। कांग्रेस के साथ सरकार बनाते वक्त जेडी-एस ने तर्क दिया था कि वह सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखना चाहती है, लेकिन दो साल सरकार चलाने के बाद जेडी-एस ने पलटी मारी। नतीजा- देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के सीएम बन गए। जेडी-एस ने बीजेपी के साथ 'सीएम रोटेशन' का फार्मूला बनाया, जिसके तहत कुमारस्वामी 2007 तक कर्नाटक के सीएम रहे। इसके बाद बीजेपी के बीएस येदुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो जेडी-एस ने उन्हें रास्ता देने से साफ इनकार कर दिया था।
देवगौड़ा ने बेटे के लिए ले ली थी सिद्धारमैया की बलि
2004 का ही एक और किस्सा है। सिद्धारमैया जो कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के सीएम हैं, कभी जेडी-एस में देवगौड़ा की पार्टी के सदस्य हुआ करते थे। इतना ही नहीं, धरम सिंह की सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम के पद पर तैनात थे। उस वक्त कर्नाटक में जेडी-एस और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार थी। लेकिन एक वर्ष बाद ही देवगौड़ा ने सिद्धारमैया को अनुशासनहीनता के आरोप लगाते हुए हटा दिया था। दरअसल, उन्हें डर था कि सिद्धारमैया कुमारस्वामी के लिए चुनौती बन सकते हैं। हालांकि, बाद में सिद्धारमैया ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली और सीएम बनने का उनका सपना पूरा हो गया।
कर्नाटक में कैसा रहा है उसका चुनावी रिकॉर्ड
2013 के पिछले विधानसभा चुनाव की बातें करें तो इसमें जेडी-एस को 40 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में पार्टी का वोट शेयर 20 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा रहा। 2008 के चुनाव में जेडीएस ने 28 सीटें जीती थीं। हालांकि, वोट शेयर में ज्यादा अंतर नहीं था, 18.96 प्रतिशत के साथ थोड़ी गिरावट जरूर थी। 2004 के चुनाव में जेडीएस ने 59 सीटें प्राप्त की थीं और उसका वोट शेयर भी 20 प्रतिशत के आसपास था। 1999 के चुनाव में पार्टी को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली थी और उसका वोट शेयर 10 प्रतिशत के आसपास रहा था।
कर्नाटक में आखिर क्या है जेडी-एस की ताकत
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करते हैं। जेडी-एस ने यह चुनाव मायावती के साथ मिलकर लड़ा है। कर्नाटक में करीब 24 प्रतिशत दलित हैं। कर्नाटक में जेडी-एस की सबसे बड़ी ताकत है वोक्कालिगा समुदाय। इनकी आबादी करीब 12 प्रतिशत है। ओल्ड मैसूरू रीजन में इनका अच्छा प्रभाव है। 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में करीब 53 सीटें ऐसी हैं, जिन पर वोक्कालिगा समुदाय का पूरा प्रभाव है। पिछली बार कांग्रेस ने यहां 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि जेडी-एस 23 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बीजेपी को इस रीजन में सिर्फ 2 सीटें जीतने में सफलता मिली थी।