केरल डायरी: बाढ़ से हुई तबाही की आंखोंदेखी
केरल में आई बाढ़ को पिछली एक सदी की सबसे बड़ी त्रासदी बताया जा रहा है.बीते कई दिनों से बीबीसी संवाददाता प्रमिला कृष्णन, सलमान रावी और योगिता लिमये बाढ़ से जुड़ी ख़बरें कवर करने के लिए केरल में हैं.
लगभग पूरा का पूरा केरल बाढ़ से प्रभावित है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 38,000 लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.
बीते कुछ सप्ताह से केरल भारी बारिश और भूस्खलन से जूझ रहा है. बताया जा रहा है कि केरल में आई बाढ़ इस सदी के सबसे बड़ी त्रासदी है.
बीते कई दिनों से बीबीसी संवाददाता प्रमिला कृष्णन, सलमान रावी और योगिता लिमये बाढ़ से जुड़ी ख़बरें कवर करने के लिए केरल में हैं.
लगभग पूरा का पूरा केरल बाढ़ से प्रभावित है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 38,000 लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है.
राज्य की आपदा प्रबंधन टीम के प्रमुख अनिल वासुदेवन ने कहा कि वो आने वाले दिनों में अस्थायी राहत शिविरों में संभावित बीमारियों और जल संक्रमण से निपटने की तैयारी कर रहे हैं.
बीबीसी संवाददाता केरल में विभिन्न ज़िलों में बाढ़ के असर और राहत कार्यों से जुड़ी ख़बरें कवर कर रहे हैं. उनके बीते कुछ दिनों की आंखों-देखी पढ़िए यहां.
बीबीसी तमिल सेवा की प्रमिला कृष्णन और प्रवीण अनामलाई 12 अगस्त से केरल में हैं.
प्रमिला कृष्णन, बीबीसी संवददाता, तमिल सेवा
मेरे पिता ने सोमवार को मुझसे कुछ ऐसा कहा जो मेरे दिल को छू गया. उन्होंने कहा कि केरल में हुई त्रासदी को दुनिया के सामने लाने के लिए तुम्हें चुना गया है, ये ईश्वर का आशीर्वाद है.
बीते आठ दिनों में मैं अपने सहयोगी वीडियो पत्रकार प्रमीण अनामलाई के साथ कई राहत शिविरों और बाढ़ प्रभावित जगहों पर गई हूं. हम लोग ख़ुद कोच्चि में एक होटल में तीन दिन फंस गए थे. पूरे शहर में पानी भर गया था और मुझे एहतियात बरतते हुए होटल से न निकलने की हिदायत दी गई थी.
मेरे साथ होटल में आस-पास के इलाके से कुछ 120 लोग भी थे जो उनके घरों में बाढ़ का पानी घुसने से शरण लेने के लिए यहां पहुंचे थे.
लेकिन अब बाढ़ का पानी उतरने होने लगा है और बारिश भी कम होने लगी है. मुझे एक चीज़ दिख रही है जो सभी के लिए समान है, वो ये कि केरल का हर एक व्यक्ति इस बाढ़ से प्रभावित है.
सोमवार को मैं कोच्चि से तिरुवनंतपुरम के लिए निकली, रास्ते में एक राहत शिविर में कुछ देर रुकना हुआ. यहां मेरी मुलाक़त कई लोगों से हुई जिनके घर बारिश के कारण क्षतिग्रस्त हुए हैं.
इनमें से कई लोग ये देखने के लिए वापस गए थे कि उनके घर सही सलामत हैं भी या नहीं, लेकिन वो अब उन इलाकों को पहचान भी नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके घरों के नामोंनिशान तक मिट गए हैं.
जिन लोगों के घरों के भीतर पानी ठहर गया था उनके दिलों में अब सांपों का डर है.
40 साल के जोकहते हैं, "हमारे घर में बड़े-बड़े सांप छिपे हुए हैं. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे अपने बच्चों को लेकर उस घर में वापस जाऊं जहां हमने अपनी ज़िंदगी गुज़ार दी. वे (बच्चे) भी डरे हुए हैं."
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मैं देख पा रही हूं कि 'गॉड्स ओन कंट्री' यानी ईश्वर का राज्य कहे जाने वाले केरल में अच्छे मॉनसून की यादें अब लोगों के मन से धुल गई सी लगती हैं.
एक राहत शिविर में 70 साल की अपुकुट्टम रो रही हैं. उन्होंने अपनी दो दोस्तों को खो दिया है.
वो कहते हैं, "हमारे गांव कारुवट्टा के सभी लोग राहत शिविर में हैं. हमारे पास कुछ नहीं बचा है. अब हम सामान्य ज़िन्दगी कैसे जी पाएंगे? हमें उस बोझ के साथ ही जीना पड़ेगा जो हमें इस त्रासदी से मिला है."
कारुवट्टा गांव के 3000 लोगों ने एक राहत शिविर में शरण ली है.
अपुकुट्टम अपने आंसू रोक नहीं पा रहे. हमने उन्हें चाय की पेशकश की. उन्होंने अपने कांपते हाथों में मेरे हाथों को पकड़ा और कहा, "धन्यवाद."
राहत शिविर में हमारी मुलाक़ात रतनम्मल से हुई जिनके पास सात गायें थीं.
उनकी सभी गायें बाढ़ के प्रकोप से तो बच गई हैं लेकिन अब उनके सामने दूसरी बड़ी समस्या मुंह बाये खड़ी है. इन हालात में वो अपनी गायों के लिए चारा कहां से लाएं.
वो असहाय दृष्टि से हमें देखती हैं और कहती हैं, "वो भूखी और प्यासी हैं. वो बाढ़ से तो बच गई हैं लेकिन उनके लिए ज़िंदा रहना मुश्किल हो रहा है. मैं बस ये प्रार्थना कर रही हूं कि उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी ना हो."
तिरुवनंतपुरम जाने के रास्ते में मुझे सड़क के दोनों तरफ टूटे-फूटे घर दिखे. एक घर की सामने की दीवार खड़ी दिख रही थी जिसमें एक टूटा आधा-खुला दरवाज़ा लटक रहा था. घर की बाकी दीवारें और छत पानी अपने साथ बहा ले गई थी.
रास्ते में लोग कतारें बाधें अपनी ज़रूरतों के लिए खड़े थे. वो खाना, पानी, कपड़े, अंत:वस्त्र और साबुन के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे.
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पानी से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए कई गांवों और शहरों में मेडिकल कैंप लगाए गए हैं. इन सबसे बीच हमें इक्का-दुक्का उत्तर भारतीय कामगार भी दिखे जो अब काम के बारे में सोच रहे हैं.
नित्यानंद परमान बीते दो सालों से केरल में काम कर रहे हैं. वो कहते हैं, "हमें अच्छा वेतन पाने के लिए एक या दो महीने तक इंतजार करना होगा. सारी दुकानें तबाह हो चुकी हैं. मैं खाली हाथ वापस बंगाल नहीं जा सकता. बंगाल में भी बाढ़ आई थी, लेकिन केरल में मैंने जो तबाही देखी वो सबसे बुरी थी."
फिलहाल कहूं तो पानी कम होने के साथ राहत का सामान ले जा रही गाड़ियां चलनी शुरू हो गई हैं. साथ ही बसें, रेल सेवाएं जैसे सार्वजनिक परिवहन भी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगे हैं.
एर्नाकुलम से बीबीसी संवाददाता सलमान रावी
एर्नाकुलम के मुट्टकुन्नम इलाके में बारिश सोमवार को बंद हो गई है और पानी भी उतरना शुरू हो गया है. स्थानीय लोगों ने बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने की कोशिशों को बढ़ा दिया है.
यहां के लोगों के लिए, छह दिनों के लंबे इंतजार के बाद उम्मीद की किरण नज़र आई है. कई लोग अपने घरों में फंसे हुए थे जहां 15 फीट तक ऊंचा पानी भर गया था.
अलूवा, इदुकी और अलापुज़ा में पानी का स्तर कम होना तो शुरू हुआ है लेकिन, स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है. एनडीआरएफ और सेना की टीमों ने सबसे अधिक प्रभावित और दूर बसे इलाकों में बचाव मिशन को और तेज़ किया है.
स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि बाढ़ के कारण अब भी 5000 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं.
मुट्टकुन्नम इलाके में स्थानीय मछुआरों ने फंसे लोगों तक पहुंचने के लिए अपनी नाव और ड्रम निकाले और अपने स्तर पर बचाव कार्य चलाया.
स्थानीय मछुआरों और राहत कर्मियों की मदद से मैं और मेरे सहयोगी कैमरामैन दीपक जसरोटिया मुट्टकुन्नम के कुछ भीतरी इलाकों तक पहुंचे. हमने देखा कि लोग कॉमर्शियल इमारतों में शरण ले रहे हैं और पूरे इलाके में लबालब पानी भरा हुआ है.
जब उन्हें पानी की पहली बोतल मिली और खाने का पैकेट मिला तो मुझे उनके चेहरे पर खुशी नज़र आई.
बचाए गए कुछ लोगों को छोटे पिकअप वैन की मदद से पास में मौजूद राहत शिविरों में ले जाया गया.
जैसे-तैसे राहतकर्मी उन जगहों पर पहुंच रहे हैं जो अछूते थे या फिर बाढ़ के कारण उनसे सड़क संपर्क टूट गया था, राहत शिविरों में लोगों की संख्या बढ़ रही है.
केरल के त्रिशूर और एर्नाकुलुम में लोगों की कमाई का एक बड़ा ज़रिया मध्यपूर्व से आने वाला पैसा है.
सवाब अली दुबई में काम करते हैं और फिलहाल छुट्टियां बिताने के लिए अपने घर आए हुए थे. वो कहते हैं कि गाड़ियों, संपत्ति और जानवरों का अधिक नुक़सान हुआ है.
हालांकि एनडीआरएफ की टीमें और स्थानीय कार्यकर्ता कुछ जानवरों को बचाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन कई पानी के तेज़ बहाव के साथ बह गए हैं.
मारे गए जानवरों के शवों के कारण स्थानीय अधिकारियों ने पानी से फैलने वाली बीमारियों के बारे में चेतावनी जारी कर दी है और लोगों को हिदायत दी है कि जहां भी पानी जमा हुआ है वो उससे दूर रहें.
योगिता लिमये, बीबीसी संवाददाता, कुज़ीप्पुरा
केरल के उत्तर में है शहर कुज़िपुरम. यहां शहर से सटी नदी सप्ताह भर पहले अपने किनारों को तोड़ती हुई शहर में दखिल हो गई.
नदी के दोनों तरफ करीब एक किलोमीटर के दायरे में घरों में पानी घुस आया कि पूरा इलाका ही डूब गया.
दिखने के लिए बाकी रहा तो केवल घरों के छतें या केले के पेड़ों के कुछ पत्ते. ढीठ बच्चों की तरह नारियल के पेड़ पानी के ऊपर अपना सिर निकाले हुए हैं.
कुछ दिन पहले शहर के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया था, लेकिन उनमें से कुछ लोग अपने घरों का हाल देखने के लिए वापस आए हैं.
कुछ तैरकर पर अपने घरों तक पहुंचे और हर वो चीज़ बचाने की कोशिश कर रहे हैं जो वो बचा सकते हैं. एक आदमी अपने घर की छत पर बैठा दिखा, उन्होंने एक सीलिंग फैन को पकड़ रखा था.
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राज्य में ज्यादातर मौतों का कारण बाढ़ ही है लेकिन भारी बारिश ने यहां लोगों के लिए और मुश्किलें पैदा की हैं. मलप्पुरम में भूस्खलन के कारण एक मकान ध्वस्त हो गया था और करीब नौ लोग मारे गए.
केरल का अधिकतर हिस्सा पहाड़ियों से भरा है जिस कारण राहत और बचाव कार्य करना और मुश्किल हो जाता है.
बाढ़ के कारण अभी भी वहां हज़ारों लोग फंसे हैं और भारत की वायुसेना, नौसेना, एनडीआरएफ़, तट रक्षक बल, स्थानीय मछुआरे अधिक से अधिक लोगों को बचने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.
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