केजरीवाल का ये पैंतरा एक बार फिर उन्हें बना सकता है दिल्ली का बॉस!
बेंगलुरू। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार दिल्ली के वोटरों को लुभाने के लिए नई-नई योजनाओं की घोषणा कर रहे है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के मद्देनजर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली युवाओं को टारगेट करते हुए ग्रेजेएट और नॉन ग्रेजुएट कर्मचारियों के लिए संशोधित न्यूनतम मजदूरी का प्रस्ताव दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दिखा दी है।
संशोधित न्यूनतम मजदूरी प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी देते हुए दिल्ली सरकार को न्यूनतम वेतन की अधिसूचना जारी करने का आदेश जारी कर दिया है। केजरीवाल सरकार द्वारा अधिसूचना जारी होते ही सांगठनिक और गैर सांगठनिक किसी भी फर्म को अब ग्रेजुएट्स को नौकरी के लिए प्रस्तावित 19, 572 रुपए वेतन देना होगा।
गौरतलब है दिल्ली सरकार ने अनस्किल्ड लेबर को 14,842 और स्किल्ड लेबर को 17,991 रुपए महीने की न्यूनतम मजदूरी तय की है। वहीं, सेमी स्किल श्रमिकों के लिए 16,341 रुपए प्रति महीना तय किया गया है जबकि ग्रेजुएट कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी 19,572 रुपए प्रति महीना तय की गई है।
वहीं, नॉन-मैट्रीकुलेट को 16,341 रुपए प्रति महीना और मैट्रीकुलेट और बिना ग्रेजुएट वालों को 17,991 रुपए प्रति महीना वेतनमान तय गया है। जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट से प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के बाद केजरीवाल सरकार जल्द ही इसके लिए अधिसूचना जारी कर सकती है, जिसका उसे आगामी विधानसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है।
लोकसभा चुनाव 2019 में बुरी तरह हुई पार्टी की फजीहत के बाद से आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने खुद को दिल्ली में सीमित कर लिया है और उनका पूरा फोकस अभी दिल्ली की सत्ता में पुर्नवापसी है। केजरीवाल सरकार मई, 2019 के बाद से लगातार दिल्ली के वोटरों को लुभाने के लिए नई-नई घोषणाएं कर रहे हैं और चुनावी तैयारियों के मद्देनजर विभिन्न प्रचार माध्यमों से लगातर चुनावी कैंपेन चला रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी के हाथों बुरी तरह परास्त हुई आम आदमी पार्टी को दिल्ली लोकसभा की सातों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। आम आदमी पार्टी सातों लोकसभा सीटों में से केवल दो लोकसभा सीटों दूसरे नंबर पर रही थी जबकि 5 लोकसभा सीटों पर उसे तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था जबकि पार्टी दिल्ली में कम से कम 4 लोकसभा सीटों पर जीत की उम्मीद कर रही थी। यही कारण है कि केजरीवाल एंड पार्टी दिल्ली की सत्ता गंवाने का डर सता रहा है और लोकसभा चुनाव के बाद से ही पूरी पार्टी दिल्ली की तैयारी में जुट गई है।
लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो दिल्ली लोकसभा सीट की सातों सीटों पर बीजेपी ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। दो तिहाई सीटों पर तीसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी को 18.10 फीसदी वोट मिले थे, जो कि पूरे देश में मिले वोटों के तुलना में पार्टी का सर्वाधिक वोट शेयर था। यूपी में आम आदमी पार्टी को महज 00.1 फीसदी वोट, हरियाणा में 0.36 फीसदी वोट, पंजाब में 7.38 फीसदी वोट, चंडीगढ़ में 3.02 फीसदी वोट, बिहार में 0.06 फीसदी वोट, अंडमान एंड निकोबार में 1.37 फीसदी वोट, गोवा में 3.01 फीसदी वोट और ओडिशा में महज 0.03 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
मुख्यमंत्री केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली लोकसभा की सातों सीटों पर पराजय ज्यादा बड़ी थी, क्योंकि आम आदमी पार्टी 2015 विधानसभा चुनाव में 70 विधानसभा सीटों में 67 सीटों पर धमाकेदार जीत दर्ज की थी। आम आदमी पार्टी की वजह से कांग्रेस का दिल्ली की प्रदेश राजनीतिक से सूपड़ा साफ हो चुका था और बीजेपी को महज 3 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी।
वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 54.6 फीसदी रहा था, लेकिन 2019 लोकसभा में AAP का वोट शेयर गिरकर 18.10 रह गया जबकि वर्ष 2015 लोकसभा में 9.7 फीसदी वोट शेयर वाली कांग्रेस ने बढ़िया प्रदर्शन करते हुए 22.5 फीसदी वोट शेयर हासिल कर लिया।
यही वजह है कि आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता को बचाने के लिए अब युवाओं को टारगेट करने के लिए ग्रेजेुएट और नॉन ग्रेजुएट कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनमान में वृद्धि के लिए प्रस्ताव पारित कराया। सुप्रीम कोर्ट प्रस्ताव को मिली हरी झंड़ी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए तुरूप का इक्का साबित हो सकता है।
माना जा रहा है कि दिल्ली सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी की अधिसूचना जारी होने के बाद विभिन्न सांगठनिक और गैर सांगठनिक संस्थाओं में काम कर रहे युवा कर्मचारियों के वेतनमान में एकाएक वृद्धि हो जाएगा। ऐसा होते ही युवा वोटरों का वोट आम आदमी पार्टी के लिए पक्का हो सकता है। यही उम्मीद आम आदमी पार्टी को भी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भी है।
उल्लेखनीय है केंद्र में मोदी सरकार के दो कार्यकालों में युवा वोटरों का बड़ा हाथ रहा है। केजरीवाल संभवतः इस बात को जानती है, इसलिए वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान केजरीवाल ने केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल का नारा बुलंद किया था।
युवा वोटरों के जरिए दिल्ली के रथ पर एक बार फिर बैठने की तैयारी में जुटे केजरीवाल को इसका फायदा मिलता भी दिख रहा है, लेकिन केजरीवाल के लिए बड़ा सिरदर्द अधिसूचना को गैर-सांगठनिक संस्थाओं में लागू करवाना होगा। मजीठिया वेजबोर्ड का उदाहरण दिल्ली सरकार के लिए एक नजीर हो सकता है, जो अभी तक किसी संस्थान ने लागू नहीं किया है, जिसके चलते युवा कामगारों को कम सैलरी में काम करना पड़ा रहा है।
केजरीवाल सरकार अगर युवा वोटरों को लुभाने वाले के लिए प्रस्तावित न्यूनतम वेतन वृद्धि को लागू करवाने में सफल रही तो दोबारा उसको दिल्ली का बॉस बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। क्योंकि गैंर सांगठनिक क्षेत्रों में ग्रेजेएट और नॉन ग्रेजुएट युवा कर्मचारियों को वर्तमान समय में पूर्व प्रावधानित न्यूनतम सैलरी से भी कम मिल पाता है। प्रस्ताव और अधिसूचना से आगे बढ़कर केजरीवाल सरकार अगर प्रस्तावित नए न्यूनतम वेतन वृद्धि को लागू करवाने में सफल हुई तो दिल्ली का युवा ही नहीं, युवा कामगार का परिवार भी एक बार केजरीवाल को अपना मसीहा मानकर चुनकर दिल्ली में बिठा सकता है।
हालांकि केजरीवाल सरकार पिछले छह महीने से दिल्ली के वोटरों को लुभाने के लिए लगातार लुभाने योजनाए लेकर आ रही है। इनमें 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त योजना प्रमुख है। माना जाता है कि पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने उनके मुफ्त योजनाओं की घोषणाओं के चलते चुना था।
यह अलग बात है कि केजरीवाल सरकार वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव से पूर्व चुनावी कैंपेन के दौरान किए किए अधिकांश घोषणाओं को लागू करने में अभी तकर विफल रही है। ऐसा माना जाता है कि भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के खिलाफ चुनकर दिल्ली की गद्दी पर बैठी आप सरकार को पिछले पांच वर्षो में सबसे अधिक फजीहत दिल्ली के मुखिया केजरीवाल के यू टर्न से हुआ है, जिससे उम्मीद की नजर से केजरीवाल की ओर देख रही जनता बेहद नाराज है, जिसका असर युवा वोटरों को साधकर केजरीवाल कुछ हद तक कम करने में कामयाब हो सकते हैं।
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दिवाली से पहले शीर्ष अदालत से आई खुशखबरी!
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि दिल्ली में विभिन्न कामों की श्रेणियों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित 3 मार्च 2017 की अधिसूचना को लागू करे। इसके साथ ही कोर्ट ने इस बारे में दायर की गई विभिन्न अपीलों को त्वरित सुनवाई पर लगाने का आदेश दे दिया। इस अधिसूचना में अधिसूचित रोजगारों को न्यूनतम वेतन तय किया गया है। दिवाली से पहले शीर्ष अदालत के इस फैसले से अकुशल, अर्धकुशल, कुशल श्रमिकों और अनुबंध पर काम करने वाले करीब 50 लाख कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। हालांकि, जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने साफ किया है कि कर्मचारियों को कोई एरियर नहीं दिया जाएगा।
3 मार्च, 2017 को दिल्ली सरकार ने बढ़ाई थी न्यूनतम मजदूरी
दिल्ली सरकार ने तीन मार्च 2017 को न्यूनतम मजदूरी में 11.1 फीसदी तक बढ़ोतरी की थी। इसके विरोध में कुछ लोग उच्च न्यायालय चले गए थे। न्यायालय ने चार सितंबर 2018 को दिल्ली सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। इसके खिलाफ दिल्ली सरकार उच्चतम न्यायालय पहुंच गई, जो करीब दो साल से यह मामला अदालतों में लंबित था। सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत से दिल्ली सरकार जल्द ही इसे अधिसूचित करेगी, जिससे कामगार युवाओं को सीधा लाभ मिलेगा, जो दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी की एक और जीत का टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है।
छह श्रेणियों में 11.1 फीसदी तक वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव
उच्चतम न्यायालय के आदेश पर ही दिल्ली सरकार के श्रम विभाग ने न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने के लिए चार सदस्यीय मूल्य संग्रह समिति का गठन किया था। समिति ने सभी छह श्रेणियों में 11.1 फीसदी तक वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव दिया। आपत्ति और सुझाव के बाद 31 जनवरी को यह रिपोर्ट अदालत में रखी गई थी। इसके चलते महंगाई भत्ते बढ़ाने पर भी रोक लगी थी।
अधिसूचना के बाद किसको मिलेगा कितना वेतन?
अकुशल कामगार को कम से कम 14,842 रुपए प्रतिमाह देने होंगे, अर्धकुशल 16341 रुपए प्रतिमाह, कुशल 17991 प्रतिमाह। वहीं, क्लर्क और सुपरवाईजरी स्टाफ का वेतन बढ़ेगा। इससे नॉन मैट्रिक 16341 प्रतिमाह, मैट्रिक लेकिन गैर ग्रेजुएट 17991 रुपए प्रतिमाह और ग्रेजुएट और उससे ऊपर 19572 रुपए प्रतिमाह मिलेगा।