केजरीवाल नहीं भी देंगे मंजूरी तब भी कन्हैया के खिलाफ चलेगा राष्ट्रद्रोह का मुकदमा!
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बेंगलुरू। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारेबाजी करने के आरोपी और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को राजनीतिक शरण देने पर अमादा है। गत 14 जनवरी , 2019 को करीब तीन साल बाद मामले की जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने 1200 पन्नों में दाखिल अपनी चार्जशीट में कन्हैया, उमर खालिद और अनिर्बान के साथ ही सात कश्मीरी छात्रों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दायर किया, लेकिन पिछले 8 महीने से दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय में धूल खा रही फाइल को दिल्ली सरकार ने मंजूरी नहीं दी और अब अचानक शुक्रवार को सीएम केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी सरकार कन्हैया कुमार के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी देने के पक्ष में नहीं है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव तक राजनीतिक नफा-नुकसान को देखते हुए अरविंद केजरीवाल ने दिए बयान में कहा है कि गृह विभाग सभी तथ्यों पर विचार-विमर्श के बाद मामले में उचित निर्णय लेगी। यानी कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ राष्ट्रद्रोह के मुकदमे को मंजूरी को केजरीवाल सरकार ने सिरे से खारिज नहीं किया है, क्योंकि केजरीवाल सरकार जानती है कि उसके मंजूरी नहीं दिए जाने के बाद भी कोर्ट कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ मुकदमे में आगे बढ़ेगी।
दरअसल, मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दीपक सहरावत ने मामले में अभियोजन के लिए दिल्ली सरकार से मंजूरी नहीं मिलने की सूरत में भी मुकदमें में आगे बढ़ने की बात कह चुकी है। मजिस्ट्रेट सहरावत ने मामले के दौरान दिल्ली पुलिस कहा था कि आरोप पत्र दायर करने में ही तीन साल बीत गए हैं और अब वह दिल्ली सरकार मंजूरी के लिए तीन साल और इंतजार नहीं करेगी। दिल्ली सरकार द्वारा मंजूरी दी गयी हो या नहीं, कोर्ट मामले में आगे बढ़ेगी। यही कारण है कि केजरीवाल सरकार कन्हैया कुमार के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी देकर एक साथ दो निशाने साध रही है।
गौरतलब है 9 फरवरी, वर्ष 2016 को संसद भवन पर हुए हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने की बरसी पर राजधानी दिल्ली में स्थित जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारेबाजी लगाने के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया था और काफी हो-हल्ले के बाद दिल्ली पुलिस को उसे छोड़ना पड़ा था।
करीब तीन साल मामले की जांच के बाद दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी, 2019 को कन्हैया कुमार समेत कुल 10 लोगों के खिलाफ चार्ज सीट दाखिल किया। राष्ट्रद्रोह केस में दायर मुकदमे में दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार के साथ छात्र नेता उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को मुख्य आरोपी बनाया।
दिल्ली पुलिस पर आरोप लगा कि उसने मुकदमा दायर करने से पूर्व दिल्ली सरकार की अनुमति नहीं ली। कोर्ट के फटकार के बाद दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार की मंजूरी के लिए फाइल दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय में भिवजा दी, लेकिन 8 माह बाद भी केजरीवाल सरकार फाइल पर कुंडली मारकर बैठी रही।
अभियोग की मंजूरी के लिए तब से दिल्ली पुलिस केजरीवाल सरकार के चक्कर काट रही थी और केजरीवाल सरकार कान में तेल डालकर बैठी रही और अचानक शुक्रवार को केजरीवाल जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के ऐनवक्त कन्हैया कुमार और अन्य के खिलाफ अभियोजन के लिए मंजूरी नहीं देने का फैसला कर लिया।
केजरीवाल ने जारी बयान में कहा कि दिल्ली सरकार का गृह विभाग सभी तथ्यों पर विचार-विमर्श के बाद उचित निर्णय लेगी। मुख्यमंत्री केजरीवाल इस दौरान यह कहने से चूके कि मामले में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। मामले पर दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने कहना है कि मामले में दिल्ली पुलिस ने जो सबूत पेश किए हैं उनके आधार पर देशद्रोह का मामला नहीं बनता है। कारण स्पष्ट है कि केजरीवाल सरकार कन्हैया कुमार और अन्य खिलाफ राष्ट्रद्रोह के अभियोजन के लिए मंजूरी देकर अपने हाथ नहीं जलाना चाहती है।
क्योंकि 2020 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऊंच किस करवट बैठेगा यह केजरीवाल को भी नहीं मालूम है और अगर ऊंट ने करवट बदल लिया तो दिल्ली की सरकार बनाने के लिए उसे गैर-भाजपा साथी की जरूरत होगी। इसमें उसके काम कांग्रेस आ सकती है, क्योंकि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू में लगे राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के बाद भी कन्हैया कुमार के साथ खड़े हुए थे, जिससे विधानसभा चुनाव में उसको गैर बीजेपी वोटर्स का उसको नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा।
केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस के पारंपरिक वोटर्स और बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाले वोटरों को पार्टी से छिटकने से बचाने के लिए कन्हैया कुमार के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने का जोखिम ले रहे हैं। हालांकि मजबूरी में ही सही केजरीवाल कन्हैया कुमार को पहले भी समर्थन कर चुके हैं।
वर्ष 2016 में जेएनयू में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार हुए कन्हैया कुमार को जब रिहा किया गया तो कन्हैया जेएनयू लौटकर एक राजनीतिक भाषण दिया था। स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए कन्हैया ने कहा था कि उन्हें भारत से नहीं बल्कि भारत में आजादी चाहिए। आपको याद हो या न हो, लेकिन तब केजरीवाल ने बाकायदा ट्वीट करके अपना स्टैंड को हद तक क्लीयर कर दिया था और उसकी परिणित कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलाने को लेकर केजरीवाल की आनाकानी के रूप में देखी जा सकती है।
अरविंद केजरीवाल ने कन्हैया कुमार के जेएनयू में भाषण के बाद किए ट्वीट में कहा था कि उन्हें नहीं पता कन्हैया ने देशद्रोह किया है या नहीं, उसकी जांच क़ानून विभाग कर रहा है। लेकिन दूसरी तरफ केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट करते हुए लिखते हैं कि मोदी जी ने दिल्ली के बच्चों के स्कूल रोके, अस्पताल रोके, CCTV कैमरे रोके, मोहल्ला क्लीनिक रोके, दिल्ली को ठप्प करने की पूरी कोशिश की, क्या ये देशद्रोह नहीं है? सूत्रों के मुताबिक़ लंबे समय तक फ़ाइल को टरकाने के बाद दिल्ली सरकार ने मामले में मंजूरी नहीं दने का मन बना लिया है।
उल्लेखनीय है कन्हैया कुमार और अन्य आरोपी छात्रों ने 9 फरवरी, 2016 को जेएनयू कैंपस के अंदर बिना जेएनयू प्रशासन के मंजूरी के रैली आयोजित की और रैली के दौरान 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह-इंशाअल्लाह', 'भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी, 'तुम कितने अफ़ज़ल मारोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेंगे'' जैसे नारे लगे थे।
जेएनयू कैंपस में लगे देशविरोधी नारों का वीडियो फुटेज भी जारी हुआ था, जिसे जेएनयू कैंपस में उक्त नारेबाजी करते हुए लोग दिखाई भी दिए थे, जिसे लैब टेस्ट के बाद पुलिस ने भी सही पाया गया, लेकिन केजरीवाल सरकार ने कोई बयान जारी नहीं किया। यहां तक कि जब दिल्ली विधानसभा में बीजेपी नेताओं द्वारा टुकड़े-टुकडे गैंग का मामला उठाया गया तो उन्हें मार्शलों से निकलवा कर बाहर कर दिया गया।
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