केदारनाथ में ढूंढे नहीं मिला प्रसाद, गौरीकुंड में पानी की बूंद तक नहीं
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आपदा के बाद से प्रशासन और सरकार सुविधाजनक केदारनाथ यात्रा के दावे कर रहे हैं। प्रशासन ने दावा किया था कि श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन पहले ही दिन श्रद्धालुओं को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रविवार को केदारनाथ के कपाट खुले तो स्थानीय और बाहरी श्रद्धालु पहले ही केदारनाथ पहुंच गए थे।
हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले ही केदारनाथ में प्रसाद की दुकानें सज जाती थी। व्यापारी और तीर्थ पुरोहित यात्राियों के लिए प्रसाद की व्यवस्था कर देते थे। लेकिन आपदा के बाद पहली बार कपाट खुले, लेकिन वहां प्रसाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। श्रद्धालुओं ने प्रसाद के लिए इधर-उधर चक्कर लगाए। बाद में उन्हें बिना प्रसाद के ही भगवान केदारनाथ के दर्शन करने मंदिर में प्रवेश करना पड़ा।
जिन श्रद्धालुओं केदारनाथ में प्रसाद चढ़ाने की मन्नत मांग रखी थी उन श्रद्धालुओं को काफी निराशा हाथ लगी। इससे साफ अंदाजा लगाया जा रहा है कि भले ही प्रशासन केदारनाथ में सुरक्षा के पूरे दावे कर रहा है, लेकिन स्थानीय व्यापारियों और पुरोहितों में आपदा का डर आज भी बना हुआ है। यहीं कारण है कि पहले दिन केदारनाथ में प्रसाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। प्रशासन की ओर से भी प्रसाद की कोई व्यवस्था नहीं की थी।
ठीक
से
नहीं
कर
पाए
दर्शन
-
रविवार
को
आपदा
के
बाद
केदारनाथ
के
कपाट
खोले
गए।
पहले
दिन
पिछले
वर्षो
की
तुलना
में
कम
भीड़
दिखाई
दी।
ऐसे
में
जितने
श्रद्धालु
केदारनाथ
पहुंचे
थे
उन्हें
उम्मीद
थी
कि
इस
बार
भीड़
कम
होने
के
चलते
उन्हें
मंदिर
में
ठीक
से
दर्शन
करने
का
मौका
मिल
जाएगा,
लेकिन
ऐसा
नहीं
हुआ।
इस
बार
मंदिन
में
प्रशासनिक
अधिकारी
पहले
से
ही
मौजूद
थे।
वह
श्रद्धालुओं
को
कुछ
देर
के
लिए
भी
मंदिर
में
नहीं
ठहरने
दे
रहे
थे।
ऐसे
में
श्रद्धालु
ठीक
से
भगवान
केदारनाथ
के
दर्शन
भी
नहीं
कर
पाए।
रहने
की
नहीं
थी
समुचित
व्यवस्था
-
आपदा
के
बाद
से
ही
प्रशासन
दावे
कर
रहा
था
कि
केदारनाथ
कपाट
खुलने
से
पहले
श्रद्धालुओं
के
लिए
सभी
व्यवस्था
हो
जाएगी।
उन्हें
किसी
तरह
की
कोई
दिक्कत
नहीं
होने
दी
जाएगी।
लेकिन
रविवार
को
ठहरने
को
लेकर
प्रशासन
के
सारे
दावे
धरे
रह
गए।
केदारनाथ
में
श्रद्धालुओं
के
ठहरने
की
कोई
व्यवस्था
नहीं
थी।
प्रशासन ने जो टेंट लगाए हुए थे उसमें मात्र 250 ही श्रद्धालु ठहर सकते हैं। जबकि पहले दिन केदारनाथ में करीब एक हजार श्रद्धालु पहुंचे। ऐसे में श्रद्धालुओं को ठंड में ठिठुरना पड़ा। मजबूरन एक टेंट में जरूरत से ज्यादा श्रद्धालुओं को ठहराना पड़ा।
सटल
सेवा
के
दावे
भी
हवाई
साबित
-
केदारनाथ
पहुंचने
वाले
श्रद्धालुओं
के
वाहन
सोनप्रयाग
में
रोके
जा
रहे
है।
यहां
से
किसी
भी
श्रद्धालु
का
व्यक्तिगत
वाहन
या
बस
आगे
के
लिए
नहीं
भेजी
जा
रही
थी।
यहां
से
श्रद्धालुओं
को
गौरीकुंड
पहुंचना
पड़ता
है।
यहां
की
दूरी
करीब
5
किमी
है।
ऐसे
में
प्रशासन
ने
दावा
किया
था
कि
सोनप्रयाग
से
गौरीकुंड
तक
सटल
सेवा
शुरू
की
जाएगी।
जिसके
तहत
प्रशासन
स्वयं
अपने
वाहनों
में
श्रद्धालुओं
को
गौरीकुंड
छोड़ने
की
व्यवस्था
करेगा।
लेकिन पहले दिन सोनप्रयाग में मात्र एक या दो ही वाहन दिखाई दिए। यह वाहन भी कुछ ही श्रद्धालुओं को लाकर बंद हो गए। ऐसे में सोनप्रयाग में बैठे श्रद्धालु वाहनों का इंतजार करते रहे। बाद में उन्हें गौरीकुंड तक पैदल सफर करना पड़ा।
गौरीकुंड
में
पानी
को
तरसे
श्रद्धालु
-
गौरीकुंड
से
केदारनाथ
तक
पहुंचने
के
लिए
करीब
18
किमी
चढ़ाई
चढ़नी
पड़ती
है।
इससे
लिए
श्रद्धालु
पहले
गौरीकुंड
में
कुछ
समय
के
लिए
ठहरकर
चढ़ाई
शुरू
करते
हैं।
लेकिन
इस
बार
गौरीकुंड
में
श्रद्धालुओं
के
लिए
पीने
के
पानी
की
कोई
व्यवस्था
नहीं
थी।
श्रद्धालु
पीने
के
पानी
के
लिए
इधर-उधर
भटकते
रहे।
लेकिन
प्रशासन
ने
अंत
तक
कोई
व्यवस्था
नहीं
की
थी।
कुछ ऐसे ही जख्मों पर मरहम लगाने में लगी सरकार, प्रशासन और स्थानीय कार्यकर्ता जी जान से भले ही जुटे हों, पर बीते साल की तबाही का भय अब तक दिल में बैठा हुआ है। अव्यवस्थाएं तो दूर की जा सकती हैं, पर अफसोस भय नहीं। उम्मीद यही की जा रही है कि वक्त् जल्द ही सारे घाव भर देगा।