कठुआ मामला: कहां पहुँची पीड़ित और दोषी परिवार की ज़िंदगी
तीन साल पहले जम्मू के कठुआ में एक आठ साल की बच्ची का गैंगरेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी.
तक़रीबन तीन साल पहले (जनवरी, 2018) जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक आठ साल की बच्ची के साथ गैंगरेप करने और फिर उसकी हत्या करने का मामला सामने आया था. आज भी बच्ची का परिवार बेहद ग़म में है और इस बात को लेकर डरा हुआ है कि आगे क्या होगा.
आठ साल की बच्ची की मां ने बीबीसी से कहा, "हमारी ज़िंदगी नहीं बदली है. जैसी दो साल पहली थी वैसी आज भी है. बकरियों को चराकर ही हम अपनी ज़िंदगी बिता रहे हैं लेकिन हम अपनी बेटी को नहीं भूल सकते हैं. यह एक आग की तरह है जो मेरे पूरे शरीर को छू लेती है. हम कैसे अपनी बेटी को भूल सकते हैं. हम अपनी बेटियों को अब कहीं नहीं भेजते हैं. हमारी बेटी के साथ हुई घटना हमें डराती रहती है."
जनवरी 2018 में जम्मू के कठुआ के एक गांव में ख़ानाबदोश मुस्लिम बकरवाल समुदाय की एक लड़की का अपहरण हो गया था और 11 दिनों बाद उसका शव बरामद हुआ था.
जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने अपनी जाँच में कहा था कि 'लड़की का अपहरण हुआ था, उसे नशीली दवाइयां दी गई थीं फिर उसका गैंगरेप करके हत्या कर दी गई थी.'
पुलिसा का कहना था, "लड़की को गांव के स्थानीय मंदिर के अंदर रखा गया था."
इस मामले में पुलिस ने गांव से आठ अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया था.
तीन लोगों को हुई थी उम्रक़ैद
इस मामले के सामने आने के बाद देश में काफ़ी हँगामा हुआ था.
जून 2019 में पंजाब के पठानकोट की एक अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए छह अभियुक्तों को दोषी पाया था.
अदालत ने तीन लोगों को उम्रक़ैद और बाक़ियों को पाँच साल की सज़ा सुनाई गई थी.
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इस मामले के सामने आने के बाद जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था. दक्षिणपंथी हिंदू समूहों की माँग थी कि इस मामले में निष्पक्ष जाँच हो और वे अपने समुदाय के लोगों की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे थे.
सत्तारुढ़ पार्टी बीजेपी के दो मंत्री चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने अभियुक्तों के समर्थन में तिरंगा रैली भी निकाली थी जिसकी कड़ी आलोचना हुई थी.
कश्मीर में पीड़ित लड़की को न्याय दिलाने की माँग को लेकर भी विरोध प्रदर्शन हुए थे.
दो साल बाद शोर ज़रूर थम गया है लेकिन ग़म कम नहीं हुए हैं.
'रिश्तेदार भी हमारा हाल नहीं पूछते'
लड़की के पिता ने बीबीसी से कहा, "मेरी पत्नी बहुत सदमे में है. वो अभी भी बात नहीं कर सकती. वो (बेटी) मेरा ख़ून थी. मेरी बेटी के क़त्ल ने मुझे बुरी तरह प्रभावित किया है. मैं जानता हूं कि मेरे साथ क्या बीता है."
जब इस तरह की ख़बरें सामने आती हैं तो इस परिवार का दर्द और बढ़ जाता है.
वो कहते हैं, "मुझे ख़ुशी है कि पिछले साल दोषियों को उम्रक़ैद की सज़ा दी गई. लेकिन यह दुखद है कि इस तरह की घटना लगातार हो रही हैं. मैं सुनता रहता हूं कि एक लड़की की उत्तर प्रदेश में हत्या हो गई, दूसरी लड़की की कहीं और हत्या हो गई. यह नहीं होना चाहिए. सरकार को यह सब रोकना चाहिए. मैं उन माता और पिता का दर्द जानता हूं जिनकी बेटियों के साथ ऐसा होता है."
लड़की के पिता महसूस करते हैं कि जब इस घटना को काफ़ी दिन बीत गए तो हर किसी ने उनका साथ छोड़ दिया.
लड़की के पिता बेहद मायूस होकर कहते हैं, "इस घटना के बाद हमारे रिश्तेदार कभी नहीं पूछते कि हमारे साथ क्या हुआ था. सिर्फ़ मीडिया के लोग आकर पूछते हैं कि हमारी क्या दिक़्क़तें हैं. वे कभी नहीं पूछते कि हम कैसें है? हमारे साथ क्या हुआ था? वे सिर्फ़ नाम के रिश्तेदार हैं."
अभी भी डर के साए में हैं लड़की के पिता
आप जानते हैं कि हमलोग डरे हुए हैं. ये बताते हुए पीड़िता के पिता ने कहा, "हम कुछ ही मुसलमान यहां हैं, हमारी दायीं और बायीं ओर हिंदू हैं. हमलोग काफ़ी डरे हुए हैं."
पीड़िता की बहन ने बताया कि उस हादसे के बाद उन लोगों की दुनिया ही बदल चुकी है. उन्होंने बताया, "जब वह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुआ था, तब मैं कई महीनों तक स्कूल नहीं जा सकी थीं. मैं काफ़ी डरी हुई थी, जब मेरी बहन जीवित थी, तब दूसरी ही दुनिया थी."
कौन हैं बकरवाल
जम्मू-कश्मीर में बकरवाल हर साल गर्मियों और सर्दियों में ख़ानाबदोश जातियों की तरह अपने ठिकाने बदलते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर में एक लाख 31 हज़ार बकरवाल रह रहे थे, जो पूरे इलाक़े में फैले हुए थे.
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बकरवाल अपनी आजीविका का बड़ा हिस्सा भेड़ और बकरियां पालकर जुटाते हैं. इनमें से अधिकांश सुन्नी मुसलमान होते हैं. परपंरागत तौर पर वे अपनी भेड़ और बकरियों के साथ गर्मी और सर्दी आने पर कश्मीर घाटी और जम्मू के क्षेत्र में आते जाते रहे हैं.
दोषियों के परिवार का क्या है कहना
वहीं दूसरी ओर, दोषियों के परिवार वालों को भी लगता है कि इस हादसे के बाद उन पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा है.
इस मामले में उम्रक़ैद की सज़ा भुगत रहे सेवानिवृत राजस्व कर्मचारी सांझी राम की बेटी मधु ने कहा, "यह मामला हम लोगों पर क़ुदरत का क़हर बनकर टूटा. हम नहीं जानते कि हम लोग कैसे बचे हैं. हमें केवल यह मालूम है कि हम ज़िंदा हैं. परिवार चला रहा शख़्स अचानक से जेल में डाल दिया जाता है, ऐसे में आप अंदाज़ा भर लगा सकते हैं कि कैसे उसका परिवार ख़र्चे जुटाता होगा और दूसरे काम करता होगा. हम लोगों ने मामला सामने आने पर महीनों भूख हड़ताल करके सीबीआई जाँच की माँग की. कई दिनों तक हम सिर्फ़ पानी पर ज़िंदा रहे लेकिन सब व्यर्थ गया. किसी ने हमारी नहीं सुनी."
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राजनीतिक दलों की आलोचना करते हुए मधु कहती हैं कि उन्होंने सिर्फ़ राजनीतिक फ़ायदा उठाना चाहा.
वो कहती हैं, "न बीजेपी, न कांग्रेस और न ही किसी और पार्टी ने हमारी मदद की. हमारा सभी ने शोषण किया."
मधु कहती हैं कि उनकी मां तीन साल से सच सामने आने का इंतज़ार कर रही हैं कि किसी दिन सच सामने आएगा.
वो कहती हैं, "हम नहीं जानते कि किस दिन सच सामने आएगा लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन आएगा."
मधु मानती हैं कि उनके पिता को दोषी ठहराने के पीछे पुलिस की मनगढ़ंत कहानी ज़िम्मेदार है.
'हम सड़क पर आ गए हैं'
मधु दावा करती हैं कि इस मामले के सामने आने के बाद उनके घर पर कई बार पत्थरबाज़ी हुई. वो कहती हैं कि कुछ लोगों ने उनसे जीने के अधिकार को छीन लेने की क़सम खाई हुई है.
मधु कहती हैं कि इस केस ने उन्हें एक तरह से सड़क पर ला दिया है क्योंकि लोग आते हैं और उनके परिवार के ख़र्चे के लिए कुछ पैसे देकर चले जाते हैं.
अपने आंसुओं को पोंछते हुए वो कहती हैं, "मुझे यह बात किसी को बतानी नहीं चाहिए लेकिन आप एक मीडिया पर्सन हैं तो मैं आपके साथ ज़रूर साझा करूंगी. हमारी पिता की गिरफ़्तारी के बाद हमारी परिस्थितियां ख़राब हो गईं. लोग हमारे घर आते हैं और कुछ पैसे देकर चले जाते हैं. कोई पाँच हज़ार देता है तो कोई एक हज़ार. हम अपने खाने की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं."
मधु के चेहरे पर ग़ुस्सा है. वो कहती हैं कि व्यक्तिगत और राजनीतिक फ़ायदे के लिए हम जैसे ग़रीबों का इस्तेमाल किया जाता है.