मोदी सरकार के रहते हल हो पाएगी कश्मीर समस्या?
आख़िर सरकार कश्मीर के मसले पर क्या करना चाहती है?
मंगलवार को चरमपंथियों ने श्रीनगर के एक अस्पताल पर हमला कर अपने एक साथी को पुलिस की क़ैद से छुड़ा लिया.
पुलिस के मुताबिक हमला पाकिस्तानी चरमपंथी समूह लश्कर-ए- तैयबा ने किया, छुड़ाए गए नवेद जट को साल 2014 में पकड़ा गया था और उसे चेक-अप के लिए श्रीनगर के अस्पताल में लाया गया था.
हमले में पुलिस के दो जवानों की मौत हो गई.
राज्य में उसी भारतीय जनता पार्टी की साझा सरकार है जो चरमपंमथियों को नाको चने चबवाने की हुंकार भरती रही है.
उसी सरकार की पुलिस के नाक के नीचे से चरमपंथी, राजधानी के एक हाई-सिक्यूरिटी ज़ोन में हमला कर, अपने साथी को ले भागने में क़ामयाब हो गए?
शायद ही कोई दिन हो जब राज्य में बढ़ती हिंसा की ऐसी ख़बर न आती हो.
भारतीय समाचार माध्यम कह रहे हैं कि 2017 में इन हमलों में हुई मौतों की तादाद 343 थी, जो साल 2010 के बाद से सबसे बड़ी संख्या है. मारे गए लोगों में 55 आम नागरिक भी शामिल थे.
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क्या है इसकी वजह?
कश्मीर मामले पर वार्ताकार रह चुकीं राधा कुमार इसके लिए मोदी सरकार की नीति को ज़िम्मेदार ठहराती हैं.
राधा कुमार कहती हैं, "हमारी सरकार ने इस मामले पर दोतरफ़ा रणनीति अपनाई है: एक तरफ़ वो आतंकवाद पर कड़े से कड़े क़दम की बात करते हैं.
दूसरी तरफ़ वो बातचीत की बात कहते हैं. लेकिन सच्चाई है कि इसमें से एक नीति का दूसरी पर नकारात्मक असर होगा."
मोदी सरकार अलगाववादी नेताओं से बात करने से मना करती है, पाकिस्तान को बातचीत में शामिल करना नहीं चाहती और ज़ाहिर है जिनके हाथों में बंदूक़ है उन तक उसकी पहुंच नहीं हो सकती, तो बात कैसे और किससे होगी?
एक गुप्तचर एजेंसी के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर के लिए वार्ताकार नियुक्त किया गया है. उन्होंने ख़ुद कहा है कि 'बातचीत किस तरह हो, इस पर उन्हें कोई सीधा दिशा-निर्देश नहीं दिया गया है.'
जानकारों का कहना है कि 'बातचीत के लिए नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी बंद होना ज़रूरी है और चरमपंथियों तक भी उस मैसेज को पहुंचाना होगा.'
'लेकिन ऐसा करने के लिए बीजेपी को अपनी सोच में बदलाव लाने की ज़रूरत है. पार्टी को समझना होगा कि ये एक राजनीतिक समस्या है और इसका हल बंदूक़ से नहीं निकलेगा.'
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अलगाववादी नेताओं पर केस
राजनीतिक विश्लेषक भारत भूषण कहते हैं कि "अब तक हो रही कार्रवाई साफ़ करती है कि सरकार क्या चाहती है, पूरी हुक़ूमत इस बात को स्थापित करने में लगी है कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है वो पाकिस्तान की वजह से हो रहा है, जैसे उसके कोई आंतरिक और ऐतिहासिक कारण हो ही नहीं. कश्मीरी अलगाववादियों को, चरमपंथियों को पाकिस्तानी कह कर बाक़ी भारत में राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिश की जा रही है."
भारत भूषण का मानना है कि 'जो कुछ कश्मीर में किया जा रहा है वो वहां के लिए नहीं बल्कि मुल्क के दूसरे हिस्से के लोगों को दिखाने के लिए किया जा रहा है.'
अलगाववादी नेताओं पर हवाला से आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले दर्ज किए गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ जो चार्ज शीट उनके खिलाफ़ दायर की गई है उसमें सबूत के तौर पर यूट्यूब और व्हाट्सऐप के मैसेजों का हवाला दिया जा रहा है.
अलगाववादी नेता शब्बीर शाह ने मुझसे बात करते हुए एक बार कहा था कि 'कश्मीर पर जो हो रहा है उसमें भारत सरकार एक ख़तरनाक़ खेल खेल रही है.'
राजनीतिक विश्लेषक पुष्प सर्राफ़ कहते हैं, "जब एनआईए ने ये केस दाख़िल किया है तो ज़रूरी है कि वो इसे साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत लाये."
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बीजेपी-आरएसएस की नीति
लेकिन क्या कश्मीर को लेकर ये मोदी सरकार की मजबूरी है या इसका वो दूसरी जगह इसका राजनीतिक फ़ायदा उठाना चाहते हैं?
भारत भूषण कहते हैं, "धारा 370 को कश्मीर से हटवाना ये बीजेपी-आरएसएस का पुराना एजेंडा रहा है. चूंकि अभी सूबे में उनकी पीडीपी के साथ साझा सरकार है तो वो ये नहीं कर सकते. वो अब इस धारा को कमज़ोर करने की कोशिश में हैं. इसके लिए धारा 35ए को चैलेंज करने की कोशिश हो रही है."
इस मामले की सुनवाई फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.
पुष्प सर्राफ़ हालांकि चेतावनी देते हैं कि धारा 370 पर जम्मू क्षेत्र में भी ये राय नहीं है कि उसे जल्द समाप्त कर दिया जाए और वो भारत सरकार को इस मामले पर सचेत रहने की सलाह देते हैं.
क्या निकल पाएगा हल?
तो क्या इन हालात में ये उम्मीद की जा सकती है कि आम कश्मीरी जनता इस समय दिल्ली में सत्तासीन सरकार पर भरोसा कर पाएगी? या मोदी सरकार के रहते कश्मीर समस्या का ईमानदार हल ढूंढा जा सकेगा?
कश्मीर के दौरे के बीच आपको बहुत से लोग मिल जायेंगे जो अटल बिहारी वाजपेयी की इंसानियत की पॉलिसी और भरोसा जगाने के दूसरे पहलूओं और पहलों को याद कर रहे होंगे.
लेकिन ये मोदी हुक़ूमत है जहां कश्मीर, पाकिस्तान और उस जैसे मामलों को महज़ एक रंग के चश्मे से देखा जाता है.