Mediation in Kashmir: इमरान खान को कभी माफ नहीं कर पाएंगे डोनाल्ड ट्रंप
बंगलुरू। दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बड़बोलेपन और झूठ बोलने की आदत के लिए बेहद मशहूर हो चुके हैं। वाशिंगटन पोस्ट ने तो डोनाल्ड ट्रंप के झूठ का काला चिट्ठा तक तैयार करके भी सार्वजिनक कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप अलग-अलग मंच से 10 हजार से अधिक झूठ चुके हैं।
ट्रंप के झूठ बोलने की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया जब उन्होंने कश्मीर की मध्यस्थता के लिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी को घसीट लाए। यह सफेद झूठ था, जिसका खंडन भारत के विदेश मंत्रालय ने तुरंत कर दिया और मामले पर काफी हो-हल्ला मचा तो ट्रंप ने तुंरत कश्मीर की मध्यस्थता से खुद को पीछे खींचते हुए पाकिस्तान को भारत से द्विपक्षीय बातचीत से मसला सुलझाने की नसीहत दे डाली।
गौरतलब है अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान पाकिस्तानी पीएम इमरान खान और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त रूप से प्रेस को संबोधित किया था। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ट्रंप ने बड़बोले ट्रंप सफेद झूठ बोलते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें एक मुलाकात के दौरान कश्मीर पर मध्यस्थता के लिए कहा था।
ट्रंप का बयान जारी होते ही भारत की विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया। विपक्ष ने पीएम मोदी से सदन में आकर ट्रंप के दिए गए बयान पर सफाई देने का आग्रह किया। हालांकि ट्रंप के कश्मीर पर झूठा बयान देने पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बयान देकर सरकार का पक्ष रख दिया, लेकिन कांग्रेस सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के बयान को लेकर सदन में अड़ी रही।
हालांकि हो-हल्ले के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने बयान जारी कर साफ कर दिया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का एक द्विपक्षीय मामला है और इसमें अमेरिकी का मध्यस्थ्ता सवाल ही नहीं है। ट्रंप के बयान के बाद भारतीय विपक्ष भी शांत हुआ। हालांकि डोनाल्ड को अपने बयान को लेकर एक बार फिर बड़ी फजीहत का सामना करना पड़ा।
ऐसा कहा जा सकता है कि परिणाम स्वरुप अमेरिका ने केरी लूगर बर्मन एक्ट के तहत पाकिस्तान को दी जाने वाली प्रस्तावित आर्थिक मदद में 44 करोड़ डॉलर की कटौती कर दी है। आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे पाकिस्तान को कटौती के बाद अब 4.1 अरब डॉलर की धनराशि ही दी जाएगी। पाकिस्तान अमेरिका से यह आर्थिक मदद पाकिस्तान एन्हांस पार्टनरशिप एग्रीमेंट (पेपा) 2010 के जरिए हासिल करता है।
अमेरिका में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में राष्ट्रपति ट्रंप ने कश्मीर पर मध्यस्थता वाला राग क्यों छेड़ा था। यह सवाल अभी भी जस का जस बना हुआ है। हालांकि इससे पहले भी कई बार राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान का पक्ष ले चुका है। हालांकि अमेरिकी सरकारें भारत की तुलना में पाकिस्तान की ओर झुकीं रहे, जिसके उनके अपने सरोकार हैं। लेकिन कश्मीर में मध्यस्थता को लेकर दिए अपने बयान को लेकर ट्रंप की काफी फजीहत हो चुकी है। कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप और पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के बीच क्या खिचड़ी पकी थी इसका खुलासा होना अभी बाकी है।
उल्लेखनीय है राष्ट्रपति ट्रंप के कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर दिए गए बयान के बाद भारतीय विपक्ष को मोदी सरकार पर हमला करने का एक नया बहाना जरूर दे दिया था। बयान को लेकर विपक्ष संसद में खूब हंगामा किया, लेकिन मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने का प्रस्ताव पास करवाकर बहस का रूख ही बदल दिया। जम्मू-कश्मीर से स्पेशल स्टेट्स हटाने का प्रस्ताव भारतीय संसद में पास होते ही पाकिस्तानी पीएम इमरान खान पूरी तरह से बौखला गए। पाकिस्तान को उम्मीद नहीं थी कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में ऐसा कुछ करने जा रही है।
जम्मू-कश्मीर प्रदेश के विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठन के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ कूटनीतिक, राजनयिक, व्यापारिक रिश्तों के साथ-साथ दो देशों के बीच चल रही बस और ट्रेन सेवाओं पर पाबंदी लगा दी। इस्लामाबाद में मौजूद भारतीय राजनयिक वापस भारत भेज दिया गया।
जम्मू-कश्मीर पर भारत सरकार के फैसले से परेशान पाकिस्तान ने इस्लामिक राष्ट्रों के साथ-साथ उन सभी बड़े देशों से मामले पर दखल देने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन सभी ने कश्मीर मसले को दो देशों के द्विपक्षीय मामला बताकर हस्तक्षेप से मना कर दिया। पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान को आखिरी भरोसा पड़ोसी देश चीन पर था कि वो कुछ करेगा।
अंततः चीन ने कश्मीर मसले को यूएनएसई से सुनने की गुजारिश की और दवाब के बीच यूएनएसी ने बंद कमरे में चर्चा करने को तैयार हो गई, लेकिन यहां भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ीं, क्योंकि रूसी राष्ट्रपति समेत यूएनएसई के सदस्यों अधिकांश सदस्यों ने मामले को द्विपक्षीय बताकर अपना झाड़ लिया। इससे इस बार पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी फजीहत का सामना करना पड़ा।
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