कश्मीर निकाय चुनाव: 'रात के अंधेरे और फोन पर किया प्रचार'
ये पूछने पर कि आप लोग चुनाव मुहीम खुले तरीके से नहीं चला सके, तो जीतने पर काम कैसे करेंगे? इसपर वो कहती हैं, "हम ये नहीं कह सकते हैं कि कल क्या होगा? कश्मीर ऐसी जगह है कि कोई नहीं कह सकता कि कल क्या हो सकता है. ये सवाल तो हर एक उम्मीदवार के दिमाग में है. हर उम्मीदवार सोच रहा है कि अगर आज हम चुने गए तो कल हम कैसे अपना काम काज करेंगे.
भारत प्रशासित कश्मीर के अनंतनाग ज़िले की 35 वर्षीय रोमिसा रफ़ीक कश्मीर में हो रहे निकाय चुनावों में बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. बीते सोमवार को उनसे मेरी मुलाक़ात उनके सरकारी मकान पर हुई.
उनके पति भी राजनीति में हैं. वो अपने घर पर आए हुए अपने कार्यकर्ताओं के साथ इन चुनावों को लेकर चर्चा कर रही थीं.
रोमासा रफ़ीक दावा करती हैं कि उनकी चुनावी मुहिम अच्छे से शुरू हुई है. उनका ये भी कहना था कि बीते 13 वर्षों से उनके इलाके के गली-कूचे तक ठीक नहीं किए गए, इसलिए वह इन चुनावों में खड़ी हो रही हैं.
वह कहती हैं, "आप देखिए, बीते 13 वर्षों से यहाँ की सड़कों और गलियों की क्या हालत है. मैंने अपनी चुनावी मुहिम के दौरान देखा कि जिस इलाके से मैं चुनाव लड़ रही हूं, वहां कोई विकास नहीं हुआ है. सरकारों ने यहां कुछ भी नहीं किया है. मैं ये सोचकर चुनाव में उतरी हूं कि गरीबों की सेवा कर सकूं. मेरा मक़सद यही है कि विकास हो और शांति हो. मैं चुनाव प्रचार के दौरान जनसभा तो नहीं कर सकी लेकिन हर दरवाज़े पर वोट मांगने गई थी. "
'कश्मीर का हर व्यक्ति दहशत में'
रोमिसा रफ़ीक का कहना था कि उन्हें किसी भी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन साथ ही उनका ये भी कहना था कि कश्मीर में हर व्यक्ति दहशत में होता है.
उन्होंने कहा, "अपनी चुनाव मुहीम के दौरान मुझे किसी मुश्किल का सामना तो नहीं करना पड़ा, लेकिन जैसे मैंने आपसे कहा कि यहां एक आम इंसान के सर पर भी खौफ का साया रहता है, उम्मीदवार की तो बात ही नहीं है."
रोमिसा रफ़ीक दूसरी तरफ ये भी मानती हैं कि चुनावों के दौरान अपनी मुहीम को खुलकर कोई नहीं चला पाया है. वो कहती हैं, "कांग्रेस का उम्मीदवार हो या फिर बीजेपी का या फिर निर्दलीय उम्मीदवार हो, कोई खुलकर कुछ भी नहीं कर पा रहा है. सब चोरी छिपे मुहीम चला रहा है."
रोमिसा का कहना था कि उन्हें ना ही किसी का डर है और ना ही वह किसी से डरती हैं. रोमिसा 12वीं तक पढ़ी हैं.
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आम लोगों में चुनावों को लेकर दिलचस्पी कम
जम्मू -कश्मीर में तेरह वर्षों के बाद हो रहे निकाय चुनाव ऐसे समय में कराए जा रहे हैं जब बीते तीन वर्षों से कश्मीर के हालात अशांत हैं. एक तरफ चरमपंथी मारे जा रहे हैं तो दूसरी तरफ पुलिसकर्मी, राजनैतिक कार्यकर्ता और आम लोगों भी मर रहे हैं.
ऐसे में ये बात साफ़ नज़र आ रही है कि इन चुनावों के ऊपर खौफ मंडरा रहा है.
जम्मू-कश्मीर में निकाय चुनाव का पहला चरण आठ अक्टूबर को संपन्न हो चुका है. ये चुनाव चार चरणों में हो रहे हैं.
दूसरा चरण 10 अक्टूबर को था. दूसरे चरण में 1,000 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर में 2,990 उम्मीदवार भाग ले रहे हैं.
पहले चरण में 1204 उम्मीदवारों ने चुनाव में भाग लिया था. इन चुनावों में कश्मीर घाटी में कुल 110 महिलाएं मैदान में हैं.
कश्मीर में आम लोगों के बीच इन चुनावों के हवाले से कोई गर्म जोशी, खास चर्चा या दिलचस्पी देखने को अब तक नहीं मिली.
कश्मीरी पंडित क्यों नहीं डालना चाहते वोट?
कोई भी उम्मीदवार कश्मीर में खुलकर चुनाव प्रचार नहीं कर पा रहा. पुरुष उम्मीदवारों के लिए हालात और मुश्किल हैं.
जम्मू-कश्मीर में इन चुनावों को शान्तिपूर्ण तरीके से कराने के लिए सुरक्षाबलों की 400 कंपनियों को तैनात किया गया है.
कश्मीर घाटी के बाकी हिस्सों को छोड़कर बीते तीन वर्षों से दक्षिणी कश्मीर में हालात बहुत ज़्यादा तनावपूर्ण रहे हैं. दक्षिणी कश्मीर फिलहाल चरमपंथ का गढ़ माना जाता है.
ऐसे हालात में जो महिला उम्मीदवार दक्षिणी कश्मीर से चुनाव लड़ रही हैं, उनके लिए अपनी चुनावी मुहिम चलाना, लोगों से मिलना और वोट मांगना कोई आसान काम नहीं रहा है.
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अलगाववादियों का बहिष्कार
कश्मीर के अलगाववादियों ने लोगों से इन चुनावों का बहिष्कार करने की अपील की है. अलगाववादियों ने इन चुनावों को सैन्य अभियान बताया है.
जम्मू -कश्मीर की दो बड़ी राजनैतिक पार्टियों ने अनुछेद 35-A के मुद्दे को लेकर इन चुनावों का बहिष्कार किया है. पहले चरण पर अलगाववादियों ने कश्मीर बंद बुलाया था.
अधिकारियों के मुताबिक दक्षिणी कश्मीर के चार ज़िलों में कुल 50 महिलाएं इन चुनावों में भागीदारी कर रही हैं, जबकि उतरी कश्मीर में 63 महिलाएं मैदान में हैं.
दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में कुल 42 महिला उम्मीदवार हैं, जबकि कुलगाम ज़िले में चार और शोपियां ज़िले में चार उम्मीदवार हैं.
पुलवामा ज़िले में कोई भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रही हैं. शोपियां ज़िले में जो चार महिलाएं चुनाव मैदान में हैं वह सब कश्मीरी पंडित हैं, जिन्हें निर्विरोधी रूप से कामयाब क़रार दिया गया है.
दक्षिणी कश्मीर से चुनाव में भाग लेने वाली तीन महिलाओं से बीबीसी ने बात की है.
दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग में बिजबिहाड़ा मुन्सिपल कमिटी से निर्विरोधी रूप से कामयाब क़रार दी गई कांग्रेस पार्टी की उमीदवार 42 वर्षीया मसरत (नाम बदला हुआ) ने बीबीसी के साथ जम्मू से टेलीफोन पर बातचीत में बताया कि चुनाव लड़ना आसान नहीं रहा.
उन्होंने कहा, "सरकार ने कहा था कि चुनाव के लिए माहौल बहुत ही साज़गार है. लेकिन ऐसा नहीं था. हमने बहुत सारे मुश्किलात का सामना किया. चुनाव मुहीम के लिए हम रात के अंधेरों में निकलते थे. दिन में हम कभी नहीं निकले. ऐसा मैं कभी नहीं कर सकी कि लोगों के पास जाती और कहती कि चुनाव है तो मुझे वोट डालो."
हालांकि मसरत मानती हैं कि समाज को महिलाओं के चुनाव लड़ने से कोई आपत्ति नहीं है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता है हमारा समाज इतना गया-गुज़रा है कि एक महिला के चुनाव लड़ने पर शिकायत करे. मुझे लगता है कि महिलाओं के मसलों को एक महिला ही समझ सकती है."
ये पूछने पर कि आप लोग चुनाव मुहीम खुले तरीके से नहीं चला सके, तो जीतने पर काम कैसे करेंगे? इसपर वो कहती हैं, "हम ये नहीं कह सकते हैं कि कल क्या होगा? कश्मीर ऐसी जगह है कि कोई नहीं कह सकता कि कल क्या हो सकता है. ये सवाल तो हर एक उम्मीदवार के दिमाग में है. हर उम्मीदवार सोच रहा है कि अगर आज हम चुने गए तो कल हम कैसे अपना काम काज करेंगे. अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि हम क्या कर सकते हैं. ये अब सरकार को देखना होगा. जिन्होंने ये चुनाव करवाए हैं, अब उन्हीं को ये देखना होगा. अब हमें चुनाव के बाद ही पता चला कि माहौल साज़गार नहीं था."
मसरत का ये भी कहना था कि इन चुनावों में भाग लेने का मक़सद ये है कि वह अपने इलाके में वह सारे बुनयादी काम करें, जिनकी आम लोगों को ज़रूरत है.
अनंतनाग ज़िले से निर्दलीय उम्मीदवार ताहिरा (बदला हुआ नाम) भी मुझे अपनी सरकारी रिहाइशगाह पर मिलें. उन्होंने अपनी पहचान ज़ाहिर ना करने की गुज़ारिश की. वह कहती हैं कि उन्होंने मौजूदा हालात को देखते हुए टेलीफोन पर चुनावी मुहीम चलाई है.
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वो कहती हैं, "मैं चोरी छिपे एक दो लोगों के पास गई. दूसरे लोगों के साथ टेलीफोन पर संपर्क किया. जो अभी हालात हैं उन्हें देखकर मैं खुलकर चुनावी मुहिम नहीं चला सकी."
ताहिर बताती हैं, "जिस वार्ड से मैं चुनाव लड़ रही हूं, वहां मैं एक-दो बार गई. लेकिन मतदाताओं से बंद कमरे में बात करनी पड़ी. जनसभा करने की तो बात ही नहीं थी."
इस बात का जवाब ताहिरा के पास नहीं है कि कल अगर वो चुनी गई तो इस माहौल में कैसे अपना काम करेंगी.
ताहिरा कहती हैं की सरकार की तरफ से उन्हें दो निजी सुरक्षाकर्मी मिले हैं. वह कहती हैं कि जो दो पीएसओज़ मिले हैं वो हमें उम्मीदवारों के लिए दिए गए थे.
उनका कहना था, "मुझे एक सुमो गाड़ी भी मिली हुई है. जब मैंने इस का विरोध किया कि तीन उम्मीदवारों के लिए दो सुरक्षाकर्मी कम हैं, तो फिर मुझे दो सुरक्षाकर्मी दिए गए. मैं सरकार की तरफ से दी गई गाड़ी का भी कम ही इस्तेमाल करती हूं, क्योंकि हालात की वजह से डर लगता है."
कांग्रेस के स्टेट जनरल सेक्रेटरी हिलाल शाह ने बताया कि खौफ इतना है कि वह अपने उम्मीदवारों के साथ बंद कमरों में भी बैठक नहीं कर सकते. पब्लिक रैली की तो बात ही नहीं है. हमने मीटिंग्स के लिए कुछ लोगों को खास जगहों पर बुलाया और फिर बैठकें कीं. कई उम्मीदवारों को हमने स्टेशन से बाहर भेजा. कईयों को सुरक्षा में रखा गया है."
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चीफ इलेक्शन अफसर जम्मू-कश्मीर शैलियन काबरा से हमने इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने किसी भी फ़ोन कॉल का जवाब नहीं दिया और ना ही मैसेज का.
16 अक्टूबर को इन चुनावों का आखिरी चरण है. 20 अक्टूबर को इन चुनावों के नतीजे सामने आएंगे.
इस समय जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा है. राज्य में 19 जून 2018 को बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार टूट चुकी है.