In Depth: पाकिस्तान के लिए खालिस्तान का पुल न बन जाए करतारपुर साहिब कॉरिडोर
नई दिल्ली। गुरु नानक देव ने जब प्राण त्यागे तब उनका पार्थिव शरीर गायब हो गया था। पार्थिव शरीर के स्थान पर श्रद्धालुओं को कुछ फूल पड़े मिले थे। आधे फूल सिख अनुयायी ले गए और आधे मुस्लिम अनुयायी लेकर चले गए। चूंकि पार्थिव शरीर तो किसी को मिला नहीं था, तो भक्तों ने फूलों का ही अंतिम संस्कार किया। सिखों ने उनकी समाधि स्थापित कर दी तो मुसलमान भक्तों ने गुरु नानक देव की कब्र बना दी। पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में आज भी गुरु नानक देव की कब्र और समाधि दोनों हैं। गुरु नानक देव ने इसी जगह आखिरी सांस ली। सिखों के लिए करतारपुर साहिब बेहद पवित्र स्थल है, जहां पर अब कॉरिडोर खोलने को मंजूरी मिल चुकी है। नवजोत सिंह सिद्धू करतारपुर साहिब कॉरिडोर को शांति पथ बता रहे हैं तो वहीं, सुब्रमण्यम स्वामी ने इस कदम को गलत करार दिया है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद स्वामी का कहना है कि पाकिस्तान इसका गलत इस्तेमाल कर सकता है। सही और गलत को लेकर चल बहस के बीच पाकिस्तान से एक खबर आई है। यह खबर चिंता में डालती है।

ननकाना साहिब में लगवाए गए खालिस्तान समर्थक पोस्टर
करतारपुर साहिब कॉरिडोर की नींव रखे जाने के मौके पर पाकिस्तान के पीएम इमरान खान के अलावा पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला भी मौजूद था। वह पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा के साथ हाथ मिलाता हुआ भी नजर आया। मामला 18 अप्रैल 2018 का है, जब बैसाखी के अवसर पर ननकाना साहिब गए भारतीय सिख श्रद्धालुओं को भारतीय दूतावास के अधिकारी, जो कि जत्थे का स्वागत करने गए थे, उनसे मिलने नहीं दिया गया था। गुरुद्वारा पंजा साहिब में भारतीय दूतावास के अधिकारी गुरुदेव शर्मा और राजपाल श्रद्धालुओं से मिलने गए थे, लेकिन गोपाल सिंह चावला ने इन्हें भारतीय अधिकारियों से मिलने नहीं दिया। इतना ही नहीं, चावला ने श्रद्धालुओं को हाफिज सईद से मिलवाने का भी प्रयास किया था। हाफिज सईद के बेहद करीबी माने जाने वाले गोपाल चावला ने भारतीय जत्थे को भड़काने का पूरा प्रयास किया था। हाल में पाकिस्तान में स्थित गुरु नानक देव की जन्मस्थली ननकाना साहिब में खालिस्तान समर्थक पोस्टर लहराए गए। इसके अलावा ननकाना साहिब में खालिस्तान समर्थक पोस्टर लगाए जाने की भी खबर आई। ननकाना साहिब को सिख समुदाय में बेहद पवित्र स्थान माना जाता है। हर साल यहां लाखों लोग गुरुद्वारे में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। ननकाना साहिब में जो पोस्टर लगाए गए हैं, उनमें पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के महासचिव गोवाल सिंह की तस्वीरें लगी हैं।

सिखों के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम करने का प्रयास कर रहा पाकिस्तान
भारत-पाकिस्तान बंटवारे की सबसे कड़वी यादें सिखों के साथ ही जुड़ी हुई हैं। पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में सिखों के घरों पर कब्जे किए गए। खूनी संघर्ष भी हुए। आज भी पाकिस्तान के लाहौर में अगर कोई क्लीन शेव हिंदू जाए तो कोई उतनी हैरानी से नहीं देखता, लेकिन कोई सिख जाए तो यह कॉमन बात नहीं है। पाकिस्तान के पंजाब में सिखों के प्रति नफरत है। इसके बिल्कुल ठीक उलट पाकिस्तान सरकार सिखो के प्रति उदार रवैया दिखा रही है। दरअसल, उसका मकसद है खालिस्तान मूवमेंट को दोबारा हवा देना। कुछ दिनों पहले पंजाब में हुए हमला इसी कड़ी का हिस्सा था। अब करतारपुर साहिब कॉरिडोर के जरिए पाकिस्तान सिखों के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम करने का प्रयास कर रहा है। यही वजह है कि करतारपुर साहिब कॉरिडोर की नीवं रखे जाने के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री इमरान खान, उनके कई और मंत्री, सेनाप्रमुख कमर जावेद बाजवा तक की उपस्थिति तय की गई है। मतलब सिखों को पाकिस्तान एक संदेश देने जा रहा है।

बाजवा ने चली ऐसी चाल, भारत नहीं कह सका इनकार
पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का फैसला लेकर साबित कर दिया कि वह सेना के इशारे पर ही काम करते हैं। पाकिस्तान के सेनाप्रमुख कमर जावेद बाजवा ही वो पहले शख्स थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू से कॉरिडोर में बारे में वादा किया था। बाजवा का मकसद सिखों को पाकिस्तान के करीब लाना है, ताकि खालिस्तान मूवमेंट को गति मिले। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान सेना के इशारे पर इसी दिशा में बढ़ रहे हैं। पाकिस्तान के करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोले जाने के मामले में भारत सरकार ने इसलिए सकारात्मक फैसला लिया, क्योंकि मामला धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। भारत सरकार के पास ना कहने का विकल्प नहीं था, लेकिन पाकिस्तान के मंसूबों को भारत अच्छी तरह समझता है। यही कारण है कि कॉरिडोर से संबंधित कार्यक्रम में पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाकिस्तान को खुली चेतावनी देने के साथ ही पाकिस्तान जाने का न्योता भी अस्वीकार कर दिया। अगर अमरिंदर पाकिस्तान जाते तो यह भारतीय कूटनीति के बड़ा झटका होता।