#KarnatakaFloorTest: जानिए क्या होता है फ्लोर-टेस्ट?
बेंगलुरू। कर्नाटक की राजनीति के लिए आज का दिन काफी खास है क्योंकि राज्य की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार को आज फ्लोर टेस्ट से गुजरना है, ऐसे में अगर सीएम एचडी कुमारस्वामी विधानसभा में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए तो राज्य की मौजूदा सरकार गिर सकती है, हालांकि, कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन फ्लोर टेस्ट में पास होने का दावा कर रहा है, उसका कहना है कि उनके पास बहुतम का आंकड़ा है इसलिए सरकार बचाने को लेकर वो पूरी तरह से आश्वस्त हैं, आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला दिया कि सत्ताधारी गठबंधन के भविष्य के फैसले के लिए बागी विधायकों को विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ऐसे में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार कैसे अपना बहुमत साबित करती है, इसी पर पूरे देश की निगाहें हैं।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर फ्लोर टेस्ट होता क्या है, चलिए इसी को समझते है विस्तार से...
क्या होता है फ्लोर टेस्ट?
सरकार का विधानसभा या लोकसभा में बहुमत साबित करने को फ्लोर टेस्ट कहते हैं। फ्लोर टेस्ट तीन तरह से साबित होता है। पहला ध्वनिमत, दूसरा संख्याबल और तीसरा हस्ताक्षर के जरिए मतदान दिखाया जाता है।
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बहुमत तीन तरह से साबित होता है
- ध्वनिमत : बेंच को पीटकर मत देते हैं।
- हेड काउंट या संख्याबल : जब विधायक सदन में खड़े होकर अपना बहुमत दर्शाते हैं।
- लॉबी बंटवारा : इसमें विधानसभा सदस्य लॉबी में आते हैं और रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं. -हां' के लिए अलग लॉबी और 'न' के लिए अलग लॉबी होती है।
कर्नाटक विधानसभा का गणित
कर्नाटक की 225 सदस्यीय विधानसभा में गठबंधन सरकार के पक्ष में 118 विधायक थे, यह संख्या बहुमत के लिए जरूरी 113 से पांच ज्यादा थी, इसमें कांग्रेस के 79 विधायक (विधानसभा अध्यक्ष सहित), जेडीएस के 37 और तीन अन्य विधायक शामिल रहे हैं, तीन अन्य विधायकों में एक बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से, एक कर्नाटक प्रग्न्यवंथा जनता पार्टी (केपीजेपी) से और एक निर्दलीय विधायक है, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास 105 विधायक हैं। 225 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा (एक मनोनीत समेत) में वैसे तो जादुई आंकड़ा 113 है लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के 15 विधायकों की बगावत के बाद तस्वीर बदल गई है। अब सामान्य बहुमत हासिल करने के लिए मैजिक नंबर घटकर 106 पर पहुंच गया है।
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