कर्नाटकः ब्राह्मण पुजारी से शादी पर तीन लाख रुपये की योजना पर क्यों तन गई भौंहें?
कर्नाटक में ब्राह्मण महिला को पुजारी के साथ शादी करने पर तीन लाख रुपये देने के फ़ैसले से राजनीतिक और गैर-राजनीतिक हलके में कई लोगों की भौंहें तन गई हैं.
कर्नाटक ब्राह्मण विकास बोर्ड ने ग़रीब ब्राह्मण महिला को पुजारी के साथ शादी करने पर तीन लाख रुपये देने का फ़ैसला किया तो राजनीतिक और गैर-राजनीतिक हलकों में कई लोगों की भौंहें तन गईं.
वैसे तो यह रक़म छोटी सी दिखाई देती है जिसे शादी के तीन साल बाद ब्याज समेत देने का प्रावधान किया गया है. लेकिन पुजारी समुदाय के ब्राह्मणों के लिए यह प्रावधान केवल कर्नाटक तक ही सीमित नहीं है. यह पहले से ही आंध्र प्रदेश में मौजूद है और अन्य दक्षिणी राज्य केरल में भी चिंता का विषय है.
कर्नाटक बोर्ड के चेयरमैन एचएस सच्चिदानंद मूर्ति ने बीबीसी हिंदी को बताया, "क्या आपको पता है कि आर्थिक स्थिरता नहीं होने की वजह से पुजारियों को दुल्हन नहीं मिलती? शहरी क्षेत्रों में वे फिर भी भरणपोषण कर लेते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसा नहीं है. उनके लिए यह राशि तीन लाख की राशि भी बड़ी है."
केरल हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले ऐडवोकेट शंभू नामपुथिरै बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "पुजारियों को दुल्हन न मिलने की वजह केवल उनकी वित्तीय अस्थिरता नहीं बल्कि इसके सामाजिक कारण भी हैं."
इस योजना में क्या है?
बीते वर्ष कर्नाटक बोर्ड ने महिलाओं पर केंद्रित दो योजनाएं शुरू कीं. एक अरुंधति और दूसरा मैत्रेयी. अरुंधित योजना के तहत दुल्हन को शादी के समय 25 हज़ार रुपये दिए जाने का प्रावधान है.
इसके लिए शर्त है कि दुल्हन आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की हो, ब्राह्मण हो, कर्नाटक से हों और उनकी पहली शादी हो.
मूर्ति कहते हैं, "इससे उन्हें कुछ गहने ख़रीदने में मदद मिल सकेगी. हमने ऐसी 500 महिलाओं की पहचान की है."
मैत्रेयी योजना के तहत जोड़े को शादी के तीन साल बाद तीन लाख रुपये देने का प्रावधान है. शर्त ये है कि दोनों आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार के होने चाहिए, कर्नाटक से होने चाहिए और यह उनकी पहली शादी होनी चाहिए.
अगर इन तीन वर्षों के दौरान दोनों के बीच तलाक़ हो गया तो दोनों में से कौन यह रुपये लौटाएगा?
मूर्ति कहते हैं, "हम उन्हें शुरू शुरू में ये रुपये नहीं देते. बोर्ड उनके नाम पर बैंक में इस रक़म को फिक्स्ड डिपॉजिट करवाता है. तीन साल पूरे होने पर हम ब्याज समेत पूरी रक़म को उनके अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं."
मूर्ति कहते हैं कि, "यह योजना ख़ास कर उन लोगों की मदद करेगा जो ग्रामीण इलाकों से हैं. हमने अब तक 25 लोगों का चयन भी कर लिया है."
आंध्र प्रदेश ब्राह्मण निगम के प्रबंध निदेशक श्रीनिवास राव ने बीबीसी हिंदी को बताया कि, "ठीक इसी तरह आंध्र प्रदेश में भी एक योजना है जिसमें पुजारियों या अर्चकों से शादी के समय दुल्हन को 75 हज़ार रुपये सौंपे जाते हैं. बड़ी संख्या में पुजारियों की हर महीने एक नियमित आय नहीं होती है."
दोनों बोर्ड की ओर से आर्थिक रूप से कमज़ोर ब्राह्मण परिवार के छात्रों के लिए प्री-यूनिवर्सिटी, डिप्लोमा और प्रफेशनल कोर्स की पढ़ाई के लिए कई अन्य योजनाएं भी हैं.
ये दोनों राज्य और साथ में तेलंगाना दक्षिण भारत के तीन ऐसे राज्य हैं जहाँ जाति आधारित निगम या बोर्ड हैं और जो कई अलग अलग योजनाओं के तहत उद्यमियों को छोटे व्यवसाय के लिए सब्सिडी पर एक रक़म देने की योजना भी रखते हैं.
तेलंगाना ब्राह्मण समक्षेमा परिषद के उपाध्यक्ष वीजे नरसिम्हा राव कहते हैं, "गौरतलब है कि (तेलंगाना के) मुख्यमंत्री ने ब्राह्मण समक्षेमा परिषद के गठन की आवश्यकता महसूस की और बीते तीन वर्षों के दौरान इसके लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए. यह ओबीसी या अन्य समूहों की तरह ही उन ब्राह्मणों को सहायता प्रदान करने का प्रयास है जो ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं."
कर्नाटक में ब्राह्मण विकास निगम स्थापित करने का विचार सबसे पहले एचडी कुमारस्वामी ने किया था जब वे जेडीएस-काँग्रेस की गठबंधन सरकार का 2018 में नेतृत्व कर रहे हैं. बीजेपी के बीएस यदियुरप्पा के कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने के बाद बीते वर्ष इसे (निगम को) और अधिक निधि प्राप्त हुई.
तो आखिर भौंहें क्यों तनी हुई हैं?
किसी को भी ब्राह्मण पुजारियों की आर्थिक या उनके काम की स्थिति को लेकर कोई संदेह नहीं है.
शंभू नामपुथिरै कहते हैं, "एक पुजारी को ज़्यादा आज़ादी नहीं होती. वे अगर सरकारी नौकरी में हैं तो छुट्टी का विकल्प ज़रूर हो सकता है लेकिन जो नहीं हैं उनके लिए कई समस्याएं हैं. उनके पास न तो अपनी पत्नी के साथ बाज़ार जाने का वक्त है और न ही सिनेमा. वे या तो मंदिर से जुड़े होते हैं या फिर पुजारी की ड्यूटी से. ऐसे में कौन ब्राह्मण पुजारी से शादी करना चाहेगा?"
इतना ही नहीं है. गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ाइनेंस ऐंड टैक्सेशन के पूर्व निदेशक डॉक्टर डीडी नारायण कहते हैं, "यह पुजारी की ट्रेनिंग के दौरान उनके दिमाग में घुसा दिया जाता है कि जो एक बार पुजारी बन गया वो और कुछ नहीं कर सकता. केरल में कम से कम देवस्थानम बोर्ड है जहाँ नियुक्ति की नीति और एक सिस्टम है. "
वे कहते हैं कि पुजारियों का एक डेटाबेस होना आवश्यक है और फिर बोर्ड के माध्यम एक योजना के तहत इस वर्ग को सहायता पहुँचाना आसान किया जा सकता है.
कर्नाटक राज्य अर्चक एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस श्रीकांत मूर्ति बीबीसी हिंदी के कहते हैं, "राज्य के किसी भी शहरी इलाके की कोई भी लड़की पुजारियों से शादी के लिए राजी नहीं है जब तक कि वह (पुजारी) बेंगलुरु में नहीं रहता हो. वास्तव में ब्राह्मण लड़कों की स्थिति इतनी ख़राब है कि रामचंद्रपुरम मठ स्वामीजी तक को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और भारत के अन्य उत्तरी राज्यों से लड़कियाँ मिल रही हैं, यहाँ तक कि उसे भी जो कर्नाटक के मलनाड इलाके में सुपारी उगाते हैं."
हालाँकि श्रीकांत मूर्ति साथ ही ये भी कहते हैं कि बोर्ड से जो रक़म दी जा रही है वो बदलाव लाने के लिए बेहद कम है.
इंस्टीट्यूट फॉर सोशल ऐंड इकॉनमिक चेंज (आईएसईसी) के पूर्व निदेशक प्रोफ़ेसर आरएस देशपांडे कहते हैं, "दक्षिण राज्यों के महत्वपूर्ण और बड़े मंदिरों के कुछ पुजारियों को छोड़कर बाकी अधिकतर ग़रीब हैं. अगर कोई उनकी सहायता कर सकता है तो यह अच्छा है. लेकिन मेरा मानना है कि दहेज, ज़मीन, प्रॉपर्टी या धन से किसी भी विवाह को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए. शादी तो लड़का और लड़की के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट है."