कर्नाटक वोटिंग: मुख्यमंत्री कुमारस्वामी, स्पीकर, बागी विधायक, सुप्रीम कोर्ट कौन क्या कर सकता है?
कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का भविष्य तय होना है क्योंकि लंबी बहस के बाद विश्वासमत पर वोटिंग होनी है. हालांकि इस पर बहस अभी लंबी चलनी है क्योंकि कांग्रेस की ओर से 20 सदस्यों को बोलना है. अभी ये साफ़ नहीं है कि जेडीएस के कितने सदस्य इस बहस में हिस्सा लेंगे. दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से उस फैसले पर स्पष्टीकरण के लिए याचिका दायर की है.
कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का भविष्य तय होना है क्योंकि लंबी बहस के बाद विश्वासमत पर वोटिंग होनी है.
हालांकि इस पर बहस अभी लंबी चलनी है क्योंकि कांग्रेस की ओर से 20 सदस्यों को बोलना है. अभी ये साफ़ नहीं है कि जेडीएस के कितने सदस्य इस बहस में हिस्सा लेंगे.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता बीएस येद्दयुरप्पा ने पहले ही साफ़ किया है कि उनकी पार्टी वोटिंग को जल्द से जल्द संपन्न कराना चाहेगी.
उन्होंने शुक्रवार को सदन में कहा था, "हमारे लिए कुछ मिनट भी काफ़ी होंगे लेकिन हमें जल्द से जल्द वोटिंग करानी होगी."
विश्वासमत पर वोटिंग उसी सूरत में रुक सकती है, जब सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस और जेडीएस की ओर से दायर याचिका पर कोई फ़ैसला दे दे.
दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से उस फैसले पर स्पष्टीकरण के लिए याचिका दायर की है. एक सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि बाग़ी विधायकों को विश्वासमत के दौरान बहस में हिस्सा लेने के लिए मज़बूर नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस और जेडीएस को लगता है कि विधायकों को सदन की कार्रवाई से अनुपस्थित रहने की छूट देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से राजनीतिक पार्टी के अधिकारों का उल्लंघन होता है.
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इसका मतलब ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से व्हिप का कोई मतलब ही नहीं रह गया है.
फ़िलहाल 15 विधायकों ने सदन की कार्यवाही से अलग रहने का फ़ैसला किया है. इस तरह सदन में सदस्यों की संख्या 224 से घटकर 204 रह जाएगी.
ऐसा होने पर बीजेपी विधायकों की संख्या 107 हो जाएगी और कांग्रेस-जेडीएस की संख्या 98 तक आ जाएगी.
इसके अलावा दो स्वतंत्र विधायक भी बीजेपी की ओर चले गए हैं. इनमें एक विधायक के केपीजेपी का है जिसका कांग्रेस में विलय हो चुका है.
बीएसपी के विधायक एम महेश ने भी सदन की कार्यवाही से अलग रहने का फ़ैसला किया है, हालांकि मायावती ने उन्हें वोटिंग में मौजूद रहने और बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट करने का निर्देश दिया है.
स्पीकर क्या कर सकते हैं?
स्पीकर आज की कार्यवाही को इस तरह संचालित कर सकते हैं ताकि विश्वासमत पर बहस आज ही पूरी हो जाए.
कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता सिद्धारमैया की ओर से सोमवार को वोट कराए जाने का संकेत दिया गया है. इसमें एचडी कुमारस्वामी की भी सहमति है.
बहस पूरी होने के बाद स्पीकर मुख्यमंत्री को जवाब देने के लिए आमंत्रित करेंगे.
मुख्यमंत्री के भाषण के बाद वोटिंग की तैयारी होगी, सदस्य अपनी निर्धारित सीटों पर बैठेंगे और सदन के दरवाज़े बंद कर दिए जाएंगे.
इसके बाद विश्वास मत पर वोटिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. पहले ध्वनिमत से वोटिंग होगी.
इसके बाद स्पीकर सदस्यों से खड़ा होने को कहेंगे ताकि गिनती की जा सके. अंत में स्पीकर पक्ष और विपक्ष में पड़े वोटों की घोषणा करेंगे.
मुख्यमंत्री क्या कर सकते हैं?
अगर विश्वास मत में हार मिलती है तो मुख्यमंत्री कुमारस्वामी राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप सकते हैं.
अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें राज्यपाल बर्ख़ास्त कर सकते हैं.
राज्यपाल क्या कर सकते हैं?
ऐसे संकेत मिले हैं कि जब तक वोटिंग नहीं हो जाती, तब तक राज्यपाल वजुभाई कुछ नहीं करेंगे. वोटिंग कराए जाने को लेकर वो पहले ही दो निर्देश दे चुके हैं. इसको चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में पहले ही याचिका दायर कर रखी है.
विश्वासमत में मात खाने के बाद अगर मुख्यमंत्री इस्तीफ़ा नहीं देते तो राज्यपाल सरकार को बर्ख़ास्त कर सकते हैं और बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का आमंत्रण दे सकते हैं. विश्वासमत हासिल करने के लिए वो उन्हें समय दे सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की क्या भूमिका है?
सुप्रीम कोर्ट के सामने इससे संबंधित दो याचिकाएं हैं. पहली याचिका राजनीतिक पार्टियों के अधिकारों से संबंधित है जिसमें विप जारी करने को लेकर स्पष्टीकरण मांगा गया है.
अगर सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका के पक्ष में फ़ैसला आता है तो वोटिंग में देरी हो सकती है क्योंकि विधायकों को मुंबई से आना पड़ेगा. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
इसके अलावा दूसरी याचिका राज्यपाल के निर्देश देने के अधिकार को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट का इस बारे में भी फ़ैसला आ सकता है कि विश्वासमत की प्रक्रिया शुरू करने के बाद क्या राज्यपाल को अधिकार है कि वो मुख्यमंत्री को वोटिंग के लिए निर्देश दें.
बाग़ी विधायकों का क्या होगा?
विप के मुद्दे पर अगर सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला आता है तो हो सकता कि बाग़ी विधायकों को बेंगलुरु आना पड़े.
अगर वो अयोग्य घोषित होने को प्राथमिकता देते हैं तो सदन में मौजूद रहने के बावजूद वोटिंग में भाग नहीं ले सकते हैं.
स्पीकर विप के उल्लंघन का संज्ञान ले सकते हैं और दोनों पार्टियां भी उन सदस्यों को अयोग्य घोषित करने की अपील कर सकती हैं.
अगर कुमारस्वामी सरकार गिर जाती है तो नए मुख्यमंत्री की सलाह पर नए स्पीकर को चुना जाएगा और वो बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़े स्वीकार कर सकते हैं.