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आसान नहीं होगी दुश्मन से दोस्त बने कांग्रेस-जेडीएस की राह, आगे हैं 3 चुनौतियां

By Yogender Kumar
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Kumaraswamy की मौकापरस्त Politics पड़ेगी Rahul Gandhi पर भारी । वनइंडिया हिंदी

बेगलूरु। कर्नाटक में बीएस येदुरप्‍पा की सरकार आखिरकार सोमवार को गिर गई। अब कांग्रेस-जेडी-एस गठबंधन के नेता कुमारस्‍वामी को 23 मई को शपथ लेनी है। कांग्रेस के 78 और जेडी-एस के 37 विधायक मिलाकर बहुमत का नंबर आसानी से पार हो जाता है, लेकिन यहां सवाल सिर्फ मैजिक नंबर का नहीं है। कांग्रेस-जेडी-एस गठबंधन का इतिहास और कुमारस्‍वामी की मौकापरस्‍ती की राजनीति कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है। आइए डालते हैं कांग्रेस के सामने खड़ी तीन बेहद कठिन चुनौतियों पर एक नजर:

पहली चुनौती-

पहली चुनौती-

कांग्रेस के लिए जेडी-एस बीजेपी से भी ज्‍यादा खतरनाक साबित हो सकती है। कांग्रेस-जेडी-एस कर्नाटक की पर 2004 में भी काबिज हो चुके हैं। उस वक्‍त बीजेपी 79 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि कांग्रेस 65 और जेडी-एस 58 सीटों पर काबिज थी। उस वक्‍त कांग्रेस एसएम कृष्‍णा को सीएम बनाना चाहती थी, लेकिन जेडी-एस के दबाव में उसे धरम सिंह को मुख्‍यमंत्री बनाना पड़ा था। दबाव की राजनीति में कुमारस्‍वामी और देवगौड़ा अव्‍वल नंबर पर आते हैं। ऐसे में गठबंधन को संभालकर चलना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा।

दूसरी चुनौती-

दूसरी चुनौती-

कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता है सिद्धारमैया। उन्‍होंने 5 साल कांग्रेस की सरकार चलाई और टिकट बंटावरे में भी कांग्रेस ने उन्‍हें खुली छूट दी थी। 2018 में सिद्धारमैया के नेतृत्‍व में कांग्रेस 78 सीटें जीतकर आई। इनमें से ज्‍यादातर विधायक सिद्धारमैया के विश्‍वासपात्र हैं। यह बात सच है कि बीजेपी को सत्‍ता से दूर करने के लिए सिद्धारमैया ने कांग्रेस हाईकमान के कहने पर येदुरप्‍पा सरकार गिराने में बड़ी भूमिका अदा की, लेकिन कुमारस्‍वामी के साथ उनका छत्‍तीस का आंकड़ा है। कभी जेडी-एस में रहकर कर्नाटक के डिप्‍टी सीएम तक पहुंचने वाले सिद्धारमैया ने कुमारस्‍वामी से अदावत के चलते ही जेडी-एस छोड़ कांग्रेस ज्‍वॉइन की थी। ऐसे में सिद्धारमैया बिगड़े तो कांग्रेस-जेडी-एस गठबंधन टूटने में एक पल की भी देरी नहीं होगी।

सत्‍ता के लिए किसी भी वक्‍त मुंह मोड़ सकती है जेडी-एस

सत्‍ता के लिए किसी भी वक्‍त मुंह मोड़ सकती है जेडी-एस

तीसरी चुनौती- कांग्रेस के लिंगायत विधायक नाराज हैं। वे जेडी-एस को समर्थन से खुश नहीं हैं। दूसरी ओर जेडी-एस की मूल विचारधारा एंटी लिंगायत है। अपने कोर वोटर वोक्कालिंगा समुदाय को खुश करने के लिए जेडी-एस सरकार बनाते ही फैसले ही लेगी। ऐसे में टकराव होना तय है और जेडी-एस का इतिहास बताता है कि सरकार बनाने के लिए उसे बीजेपी से भी परहेज नहीं रहा है। यह बात और है कि जेडी-एस से बीजेपी भी धोखा खा चुकी है, लेकिन कांग्रेस को भी जेडी-एस ने कई बार राजनीति की एबीसीडी पढ़ाई है। ऐसे में राह कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है।

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English summary
Karnataka elections 2018: On the ground, some tension; a Cong-JD(S) reality check, here are three major challenges for congress .
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