आखिर येदियुरप्पा ने फिर साबित किया वो ही हैं कर्नाटक के असली चाणक्य
नई दिल्लीः साल 2011 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहते भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद अचानक पद से हटाए गए येदियुरप्पा के लिए ये किसी झटके से कम नहीं था। लोकायुक्त संतोष हेगडे की रिपोर्ट में नाम आने के बाद जिस तरह उनकी पार्टी ने अचानक उनसे किनारा किया उससे येदियुरप्पा काफी आहत थे इसलिए कुछ महीनों बाद ही उन्होंने भाजपा से अलग होकर केजेपी के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली।
साल 2013 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली थी 40 सीटें
कहा जाता है अपमान और प्रतिशोध की आग में जल रहे येदियुरप्पा का उस समय केवल एक ही मकसद था किसी भी तरह भाजपा को कर्नाटक की सत्ता से बेदखल करना, उसी भाजपा को जिसे उन्होंने पहली बार दक्षिण के राज्य में अपने दम सत्ता पर काबिज कराया था। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में वही हुआ जैसा येदियुरप्पा चाहते थे और भाजपा न केवल सत्ता से बाहर हुई बल्कि 112 से सिमटकर मात्र 40 सीटों पर पहुंच गई।
कर्नाटक राजनीति में बढ़ा येदियुरप्पा का कद
वक्त ने एक बार फिर पलटी खाई और दस साल बाद एक बार फिर भाजपा आज कर्नाटक में सरकार बनाने की ओर है और एक बार फिर उसके तारणहार येदियुरप्पा ही बने हैं। राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता, इसी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं येदियुरप्पा। उन्होंने साबित किया की मौजूद दौर में कर्नाटक की राजनीति के सबसे बड़े चाणक्य वही हैं, कद और लोकप्रियता के मामले में कोई भी नेता उनके सामने नहीं ठहरता। वो राज्य के चुनावी समीकरणों को बदलने की हैसियत रखते हैं तो सत्ता तक पहुंचने का सीधा रास्ता भी उन्हें पता है।
भाजपा से नाराज होकर येदियुरप्पा ने बनाई थी नई पार्टी
राज्य के सबसे प्रभावशाली और राजनीतिक रूप से सक्रिय लिंगायत समुदाय के वो एकमात्र नेता हैं, येदियुरप्पा जिस ओर चलते हैं उनके समुदाय का वोट बिना कहे उनके पीछे चल पड़ता है। इसका नजारा भाजपा ने साल 2013 के विधानसभा चुनावों में देखा था, जब येदियुरप्पा के हटते ही पार्टी 112 से सिमटकर मात्र 40 सीटों पर आ गई थी। येदियुरप्पा की बनाई कर्नाटक जनता पक्ष पार्टी (केजेपी) ने 9.8 फीसदी वोटों के साथ राज्य की 6 सीटों पर कब्जा जमाया था। जबकि भाजपा को मात्र उससे दोगुने यानि 20 फीसदी वोट ही मिल सके थे। यही कारण था कि येदियुरप्पा के पार्टी से अलग होने के बाद भाजपा को उनकी कमी शिद्दत से महसूस हो रही थी और दक्षिण में अपना दुर्ग मजबूत करने के लिए पार्टी किसी भी कीमत पर उनकी वापसी चाहती थी।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे येदियुरप्पा
साल 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले ही भाजपा येदियुरप्पा को एक बार फिर अपने पाले में लाने में कामयाब भी हो गई, खास बात ये है कि पार्टी में उनकी वापसी उनकी अपनी शर्तों पर ही हुई। इसका बड़ा उदाहरण ये भी है कि लोकसभा टिकट देने के बाद येदियुरप्पा को पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण पद दिया गया। साल 2016 में पार्टी ने उन्हें खुलेहाथ छोड़ते हुए राज्य इकाई का अध्यक्ष भी बना दिया और एक साल बाद ही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी।
येदियुरप्पा ने कर्नाटक में भाजपा की जीत की पटकथा तैयार कर दी
गौर करने वाली बात ये है कि भाजपा ने येदियुरप्पा के लिए अपने तमाम नियम कानून भी किनारे कर दिए, जिसमें 75 साल से ज्यादा वालों को सक्रिय राजनीति से दूर रखने का मुद्दा भी था, जिसके कारण भाजपा के कई बड़े नेताओं का कॅरियर अचानक खत्म हो गया। लेकिन येदियुरप्पा के लिए ये फार्मूला भी दरकिनार कर दिया गया और कर्नाटक में भाजपा पूरी तरह उनके पीछे आ गई। इसके बाद अकेले दम येदियुरप्पा ने कर्नाटक में भाजपा की जीत की पटकथा तैयार कर दी।
येदियुरप्पा ने भाजपा की जीत के लिए बनाया माहौल
येदियुरप्पा ने बीते साल अक्टूबर में पार्टी की युवा इकाई भाजयुमो के कार्यकर्ताओं की 7500 किमी लंबी नव कर्नाटक निर्माण परिवर्तन यात्रा की शुरूआत की। जिसमें हजारों कार्यकर्ता बाइक के माध्यम से राज्य के लगभग 200 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों से गुजरे और पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया। येदियुरप्पा जानते हैं कि जनता की नब्ज किस तरह पकड़ी जाती है, इसलिए मौजूदा सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा और एंटी इनकंबेंसी न होने के बावजूद भी उन्होंने माहौल को उलटकर भाजपा के पक्ष में कर दिया। कहना गलत न होगा कि ये येदियुरप्पा के व्यक्तित्व का ही कमाल है कि भाजपा इस बार पिछली बार के मुकाबले ज्यादा बड़े अंतर से जीत दर्ज करती दिख रही है।
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