कर्नाटक चुनावः जब जनता ने अपना घोषणापत्र खुद बनाया
हमेशा चुनाव से पहले राजनेता आपके दरवाज़े पर दस्तक देते हैं, अपना घोषणापत्र आपको थमाते हैं और बदले में आपका कीमती वोट मांगते हैं.
लेकिन क्या आपने कभी अपना घोषणापत्र यानि अपनी मांगे राजनेताओं को थमाई हैं?
ऐसा ही कुछ बेंगलुरू की जनता अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले करने जा रही है. बेंगलुरू के आम लोगों ने मिलकर अपना एक घोषणापत्र तैयार किया और उसे उन सभी राजनीतिक
हमेशा चुनाव से पहले राजनेता आपके दरवाज़े पर दस्तक देते हैं, अपना घोषणापत्र आपको थमाते हैं और बदले में आपका कीमती वोट मांगते हैं.
लेकिन क्या आपने कभी अपना घोषणापत्र यानि अपनी मांगे राजनेताओं को थमाई हैं?
ऐसा ही कुछ बेंगलुरू की जनता अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले करने जा रही है. बेंगलुरू के आम लोगों ने मिलकर अपना एक घोषणापत्र तैयार किया और उसे उन सभी राजनीतिक दलों को दिया जो राज्य के चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं.
'सिटिज़न्स फॉर बेंगलुरू' नामक एक स्वतंत्र समूह ने शहर के अलग-अलग हिस्सों से लोगों को एकजुट किया और उसके साथ होने वाली रोज़ाना की मुश्किलों पर चर्चा की.
इस चर्चा के बाद बेंगलुरू की जनता की मांग पर जारी हुआ उनका अपना घोषणापत्र जिसे नाम दिया गया 'बेंगलुरू बेकु', इस शब्द का मतलब है 'बेंगलुरू यह चाहता है.'
इस घोषणापत्र में ट्रैफिक नियम, प्रदूषण नियंत्रण, कचरा प्रबंधन से लेकर नई नीतियों को लागू करने के लिए बेहतर योजनाओं जैसे मुद्दों की बात रखी गई है.
बेंगलुरू निवासी और इस घोषणापत्र में अपने विचार रखने वाली डॉक्टर अर्चना प्रभाकर कहती हैं, ''चुनाव से ठीक पहले नेता आते हैं और वोट के लिए हाथ फैलाने लगते हैं, यही वो वक्त होता है जब वे हमें बताते हैं कि उन्होंने हमारे लिए क्या क्या किया. लेकिन ये सभी काम उनके कार्यकाल के पांच सालों में नहीं किए जाते, बल्कि चुनाव से कुछ महीने पहले जल्दबाज़ी में पूरे किए जाते हैं. दुर्भाग्य है कि हमें इन नेताओं को ही वोट देना होता है.''
जनता के इस अलग घोषणापत्र का मकसद है नेताओं तक आम जनता की आवाज़ पहुंचाना. अर्चना कहती हैं कि यह घोषणापत्र जनता की तरफ से राजनेताओं के लिए है.
इस घोषणापत्र में कुल 13 मुद्दे उठाए गए हैं जिसमें कचरा प्रबंधन, स्वच्छता, पैदल चलने वाले लोगों के अधिकार, प्रदूषण, आवास, सार्वजनिक स्थानों की उपलब्धता और बेहतर शासन आदि शामिल हैं.
अर्चना मुस्कुराते हुए कहती हैं, ''नेताओं को यह समझना चाहिए कि आम जनता चुप नहीं बैठी रहेगी. अपने हक़ की मांग करना हमारा अधिकार है.''
अर्चना बताती हैं कि पिछले चुनावों तक उनका राजनीति, नेता और चुनावों के प्रति बड़ा ही उदासीन नज़रिया था. लेकिन फिर उन्हें एहसास हुआ कि महज नेताओं पर उंगली उठाना बहुत ही आसान काम है, जबकि किसी समस्या के समाधान में भागीदार बनना एक मुश्किल चुनौती है.
अर्चना कहती हैं, ''जब नेताओं ने देखा कि जनता अपना घोषणापत्र खुद तैयार कर उनके पास ला रही है तो वे हैरान रह गए, उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि जनता उनके 'चलता है' वाले रवैये से खुश नहीं है.
इस हफ्ते की शुरुआत में ही अर्चना उनके पति और कई अन्य लोग मिलकर बेंगलुरू में विभिन्न राजनीतिक दलों के दफ्तरों में गए और वहां अपना घोषणापत्र जमा करवाया. राजनीतिक दलों ने भी इस घोषणापत्र का संज्ञान लिया है.
अब देखना होगा कि राजनीतिक दल इस घोषणापत्र में शामिल कितने मुद्दों को अपने घोषणापत्र में जगह देते हैं.
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