Karnataka Election Results: कांग्रेस-JDS साथ लड़ते चुनाव तो 68 सीटों पर ही सिमट जाती भाजपा
बेंगलुरू: कर्नाटक में विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश में है तो बीजेपी भी कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए एक नयी रणनीति पर काम कर रही है। वहीं कांग्रेस ने डीके शिवकुमार को अपने सभी विधायकों को सुरक्षित ठिकाने तक ले जाने का जिम्मा सौंपा है। जेडीएस पूरी ताकत अपने विधायकों को किसी भी लालच से बचाने में लगा रही है।
लेकिन कांग्रेस को इस स्थिति से क्यों गुजरना पड़ा है इसपर भी नजर डालने की जरुरत है। वोट शेयर के मामले में कांग्रेस ज्यादा रहते हुए भी कम सीटों पर सिमट गई जिसके कारण अब उन्हें जेडीएस को समर्थन देने का फैसला करना पड़ा और सत्ता में बने रहने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
2013 के मुकाबले कांग्रेस को मिला ज्यादा वोट
कर्नाटक में कांग्रेस की सीटों की संख्या देखकर ऐसा लगता है कि राज्य में सिद्धारमैया सरकार के खिलाफ लोगों ने वोट किया जिसके कारण कांग्रेस की सीट 122 से 78 पर सिमट गई। लेकिन कांग्रेस के खाते में आये मतदान प्रतिशत कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में 38 फीसदी वोट मिले जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस को 36.6 फीसदी वोट मिले थे।
दोनों दल मिलकर बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोक सकते थे
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि अगर इन दोनों दलों ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया होता तो कहानी कुछ और होती। इसकी बदौलत ये दोनों दल मिलकर बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोक सकते थे। वहीं इन दोनों के गठबंधन को करीब 156 सीटें हासिल हो सकती थीं। वोट प्रतिशत के आधार पर ये दोनों दल बीजेपी को महज 68 सीटों पर रोकने में सफल होते और फिर वो आसानी से सरकार बना सकते थे। अगर सबकुछ ठीक रहा तो कांग्रेस और जेडीएस का ये गठबंधन लोकसभा चुनाव 2019 में भी जारी रहेगा जो कि बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।
अलग-अलग चुनाव लड़ने का हुआ जेडीएस-कांग्रेस को नुकसान
कर्नाटक की स्थिति लगभग उत्तर प्रदेश की तरह है जहां सपा-बसपा ने बीजेपी की ताकत को कम कर आंका और अलग-अलग चुनाव लड़ा था। उसी प्रकार कर्नाटक में भी कांग्रेस और जेडीएस ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व को नजरअंदाज कर अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया और इसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।